2025-06-21
मिलेगा, नोबल भी मिलेगा उस्ताद !
हैलो मिस्टर ट्रम्प,
कैसे हैं ? शुरू करने से पहले हम कई देर सोचते रहे । कई संबोधन ध्यान में आए लेकिन अंत में हमने ‘मिस्टर’ को ही सुरक्षित पाया । मोदी जी आपको क्या संबोधन करते हैं, पता नहीं । पहले तो ‘माई फ्रेंड ट्रम्प‘ कहा करते थे । ओबामा को तो वे ‘बराक’ कह कर संबोधित करते हैं ।
पहले तो हमने सोचा कि जब कभी आप हमें डिनर के लिए बुलाने के लिए फोन करेंगे तो 35 मिनट बात करेंगे और तभी आपसे अगले शांति के नोबल के बारे में भी कुछ बात कर लेंगे । लेकिन आपकी बेचैनी और निराशा को देखते हुए हमें लगा कि हालत गंभीर है, तत्काल सलाह और मार्गदर्शन की आवश्यकता है । आपका फोन नंबर था नहीं सो पत्र लिख रहे हैं । फोन नंबर तो हमारे पास मोदी जी का भी नहीं है । वैसे हमें पता है कि सुनने वाले न तो आप है और न मोदी जी । आप दोनों भगवान की नहीं सुनते तो हम तो केन्द्रीय विद्यालय के एक सामान्य रिटायर्ड मास्टर हैं जिनसे मोदी जी ने ‘सरकारी ‘ तक का दर्जा छीनकर आठवें पे कमीशन से बाहर कर दिया है । खैर, आपको इससे क्या मतलब ? आप तो खुद प्रवासियों को धक्के मारने में लगे हुए हैं ।
बात नोबल की है तो सुनें । मोदी जी को भले ही अंग्रेजी नहीं आती और आपके सामने उनकी बोलती बंद हो जाती है लेकिन आदमी काम के हैं ।हमने नेहरू, इंदिरा को किसी राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान मिलते नहीं सुना लेकिन मोदी जी को अब तक फिलिप्स कोटलर सम्मान तथा सूरीनाम, मरीशस, पापुआ न्यू गिनी, फीजी, बुर्किना फासो, क्रोएशिया, साइप्रस जैसे दुनिया के 21 बड़े बड़े और शक्तिशाली देशों ने अपने सर्वोच्च सम्मान दिए हैं । कोई तो बात होगी मोदी जी में वरना आपको अब तक हमारा ‘बरामद रत्न सम्मान‘ तक नहीं मिला । इसलिए रोज ‘मैंने युद्ध विराम करवाया‘ कह-कहकर मोदी जी की भद्द पीटना छोड़कर उनसे सम्मान प्राप्ति के कुछ टिप्स लीजिए । सब कुछ संभव है ।
1939 में हिटलर का नाम भी नोबल के लिए प्रस्तावित हुआ था । हमारे यहाँ मस्जिद गिरवाने और मुसलमानों के प्रति आग उगलने वालों को देश के विशिष्ट पद्म सम्मान दिए गए हैं । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 74वीं पुण्य तिथि पर रविवार को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हिन्दू महासभा ने नाथूराम गोडसे और नारायण ऑप्टे के नाम स्थापित पहला ‘गोडसे-ऑप्टे भारत रत्न’ गाँधी को गाली देने वाले संदिग्ध और तथाकथित संत कालीचरण को जा सकता है कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती तो आपको नोबल मिलने के भी कई रास्ते हो सकते हैं । वैसे ‘बरामदा रत्न’ तो आप जब कहें हाजिर है । हम और तोताराम दोनों ही हैं उसकी चयन समिति में । तोताराम को तो मुनीर की तरह डिनर करवाने की भी जरूरत नहीं, चाय में ही मान जाएगा । पुरस्कार लेने के लिए अगर आप न आ सकें हम दोनों आ जाएंगे । हाँ, टिकट आप बनवाएंगे लेकिन अहमदाबाद से किसी एयर इंडिया के प्लेन की न बनवाएं । और अगर इस फ्लाइट के अलावा कोई रास्ता न हो तो सीट 11 ए वाली दिलवाइएगा जो बच पाने की संभावना बची रहे ।
वैसे एक और मनोवैज्ञानिक तरीका है । हमारे यहाँ अगर कोई सेना में न जा सके या सेना में किसी बड़े पद पर नहीं पहुँच सके तो वह अपने बेटे का नाम कप्तान सिंह, मेजर सिंह आदि रख लेता है । हमारे एक परिचित हैं। कभी बीबीसी में थे । उनके पिताजी ने तो आजादी से पहले ही उनका नाम पद्म श्री क्या सीधे ही भरत रत्न रख लिया था ।
कहें तो ‘न्यू इंडिया’ की तरह कोई ‘न्यू नोबल’ स्थापित करवा देते हैं और पहला आपको ही दिलवा देते हैं ।
और फिर शांति तो शांति है । क्या जरूरी है दो देशों के बीच ही हो । हम तो कहते हैं कि अगर कोई लड़ रहे गली के कुत्तों के दो झुंडों को भी पत्थर मारकर भाग देता है तो उसे शांति का नोबल दिया जा सकता है ।
आपने अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए कहा है कि मैं चाहे कुछ भी कर लूँ मुझे नोबल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा । दिल छोटा न करें । नोबल कौन बड़ी चीज है । गाँधी को ही कौनसा नोबल मिला था । आप भी अपने तरीके से कौन कम हैं ।
हमारे पास और भी कई योजनाएं हैं आपको नोबल दिलवाने की । हम इस बारे में नोबल क्या ‘एनटायर नोबल’ दिलवाने के लिए मोदी जी से बात कर सकते हैं लेकिन पहले आप बार बार ‘मैंने युद्ध विराम करवाया’ कहकर मोदी जी को चिढ़ाना बंद करें । इस चक्कर में बेचारों के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की और हवा निकल गई ।
आपके उत्तर के इंतजार में
रमेश जोशी
आजीवन अध्यक्ष ‘बरामदा विष्ठा‘
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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