Jan 13, 2009
पादरी पिस्तौलवाला
(सन्दर्भ: अंग्रेजी अखबार में एक ख़बर छपी कि केरल के कुछ पादरियों ने विदेशी पिस्तौलें खरीदीं हैं । कुछ ने लाइसेंस ले लिए हैं और कुछ ने लाइसेंस के लिए अर्जी दे रखी हैं । इसीसे सम्बंधित हमारा एक अनुभव आपकी सेवा में प्रस्तुत है । )
रविवार को सुबह सूर्योदय के साथ ही दरवाजे पर खट-खट हुई । हमने सोच अखबारवाला पैसे लेने आया होगा । दरवाजा खोल कर उनींदी आँखों से कहा- देखो भई, इस महीने में दो नागा थी सो ये रहे २८ दिन के दो रुपये के हिसाब से छप्पन रुपये । अखबारवाले की 'अच्छा मास्टर जी 'की जगह सुनाई दिया- मूर्ख मास्टर, हम अखबार वाले नहीं हैं । हम केरल के कोट्टायम जिले से पधारे हैं, पादरी पिस्तौलवाला । पादरी पिस्तौलवाला ? हमारी खोपड़ी को एक सुनामी टाइप झटका लगा । अचानक आँखें पूरी खुल गईं - कुछ भय से ,कुछ विस्मय से । देखा तो देखते रह गए- सफ़ेद चोगा, सफ़ेद टोपी, एक हाथ में पिस्तौल और दूसरे हाथ में गोलियों का पट्टा । पादरी के एक हाथ में पवित्र पुस्तक और दुसरे हाथ में माला वाली छवि एक ही झटके में ध्वस्त हो गई । हमने ईसा, डेसमंड टूटू, मदर टेरेसा, सेंट जेवियर की तस्वीरें देखी थीं पर ऐसा भयानक सौंदर्य किसी में नहीं पाया । हमने अपने गिरते मनोबल, काँपती टाँगों, भर्रायी आवाज़, और रुकती साँस को सँभाला और हिम्मत करके पूछा- महोदय, ऐसा पवित्र और प्रेमपूर्ण वेश आपने ही धारण किया है या कोई और भी हैं ? उन्होंने कहा- नहीं, और बहुतसों ने भी ले रखा है लाइसेंस । दर्जनों लाइन में लगे हुए हैं ।
हमने परिचय का दायरा और बढ़ाते हुए पूछा- आदरणीय, इस प्रेम-प्रसारक यन्त्र- पिस्तौल के बारे में और कुछ बताइए न ! उन्होंने बताया- यह पिस्तौल मेड इन बेल्जियम है, इसकी कीमत एक लाख पचास हज़ार रुपये है । हमने सुझाव दिया- हुजूर, इतने रुपये खर्च करने की क्या ज़रूरत थी । एटा, इटावा के कट्टे हज़ार बारह सौ में मिल जाते । भक्तों और हमारे जैसे मास्टर को तो खिलौने वाले पिस्तौल से भी डराया जा सकता है । उन्होंने समाधान किया- बात केवल डराने की ही नहीं, रौब की भी तो होती है । जो रुतबा ऐ.के.४७ और ऐ.के.५६ का है वह देसी कट्टे का नहीं हो सकता । और फिर तेरे जैसे मास्टरों से पाला थोड़े पड़ता है । हमें बड़ी-बड़ी खूँख्वार आत्माएँ भी मिल जाती हैं । उनके लिए विदेशी पिस्तौल ज़रूरी है ।
अब हमारी हिम्मत थोड़ी-थोड़ी बढ़ने लगी, कहा- ऐसी बात तो नहीं है मान्यवर, भगवान बुद्ध ने तो बिना पिस्तौल के ही अंगुलिमाल से भेंट कर ली और उसका हृदय-परिवर्तन कर दिया । बाल्मीकि की आँखें भी केवल शब्दों से ही खुल गईं । जयप्रकाश नारायण ने बिना पिस्तौल के ही डाकुओं से आत्मसमर्पण करवा लिया । हमारे यहाँ और भी बहुत से धार्मिक नेता, समाज सुधारक और साधु-संत हुए हैं- महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य, रामानंद, वल्लभाचार्य, कबीर, तिरुवल्लुवर, नामदेव, नानक, गाँधी, रामसुखदास जी - सबके मुख में राम तो देखा पर बगल में छुरी किसी के नहीं देखी । और आप हैं कि पवित्र पुस्तक और माला के स्थान पर पिस्तौल और गोलियों के पट्टे के साथ पधारे हैं । वे कुछ और खुले और बोले- हम इन लोगों की तरह फक्कड़ नहीं हैं । हमारे पास अरबों रुपये की विदेशी और देशी संपत्ति है । हमें अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए हथियार चाहियें ।
हमने भी अपना ज्ञान बघारा- ऐसी बात नहीं है पादरी जी, हमारे संतों के पास भी अपार संपत्ति है । उनकी एक एक बात लाखों की होती है । ज़्यादा तो नहीं, हम तो आपको अपने सीकर जिले के बारे में बता सकते हैं । यहाँ कई संत वेद-विद्यालय चलाते हैं, आश्रम चलाते हैं, गौशाला चलाते हैं पर पिस्तौल एक भी नहीं रखता । अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से लोगों का दिल जीत लेते हैं । वे हँसे । जिसके हाथ में पिस्तौल हो और वह ठहाका लगाए तो और ज़्यादा डर लगता है । वे बोले ये जो गौशाला और वेद-विद्यालय चलाते हैं इनमें तो खर्च ही खर्च है । हम तो स्कूल और अस्पताल चलाते हैं जिनमें हाड-फोड़ कर पैसे लेते हैं । दवा, खाना, किताबें, नोटबुक, ड्रेस, जूते, मोजे, टाई सब कुछ हमारे यहीं से लेना पड़ता है, सो यह फायदा अलग । और इसके लिए लोग हमें सेवाभावी मानते है सो अलग ।
अब आगे हमें कुछ नहीं सूझा तो हमने पूछ लिया- महाशय, आपके आने का प्रयोजन क्या है ? वे बोले हम तुम्हारे उद्धार के लिए आए हैं । हमने कहा- तो आप वे ही हैं जो पिछले हज़ार साल से हमारे उद्धार के लिए एक महान मिशन लेकर योरप से आते रहे हैं ? हमारे प्राण-पखेरू तो आपकी पिस्तौल को देख कर ही उडूं-उडूं होने लग गए थे । यदि झूठ-मूठ ही खटका दबा देते तो उड़ ही जाते । सस्ते में ही उद्धार हो जाता । वैसे हम अभी उद्धार नहीं चाहते, क्योंकि हमारे नेता आतंकवाद, विदेशी हस्तक्षेप, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बेरोज़गारी, पश्चिमी अपसंस्कृति के बावजूद २०२० तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इंडिया को शाइनिंग बनाना चाहते हैं, भारत-निर्माण करना चाहते हैं । बस हम उसी घड़ी के लिए जीवित रहना चाहते हैं । वे बोले ठीक है, २०२० में फिर आऊँगा तेरा उद्धार कराने के लिए । मतलब कि पीछा छूटना संभव नहीं ।
१२ जनवरी २००९
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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आजकल हर धार्मिक नेता सशस्त्र हो हो गया . जान किसको प्यारी नही होती दादा जी . आपका चिन्ता वैसे है सही...
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