Jan 7, 2009
इंडिया की मृत्यु
प्रिय पाठको!
आज हम आपको बहुत दुखी हृदय से यह सूचना दे रहे हैं कि इंडिया की मृत्यु हो गई है । मृत्यु जीवन की अन्तिम परिणति है । जो पैदा हुआ है वह अवश्य मरेगा । पर हमें तो इसी बात का दुःख हैं कि जहाँ उसकी मृत्यु हुई है वहाँ किसी प्रकार के इलाज़ या अन्य सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी । बड़ा लाड-प्यार और सार-संभाल थी फिर भी मृत्यु हो गई । अब हम क्या कर सकते हैं । अब तो बस श्रद्धांजलि ही दी जा सकती है । दो मिनट का मौन ही रखा जा सकता है । इंडिया को दुनिया के सबसे समर्थ व्यक्ति का संरक्षण प्राप्त था । जब समय बुरा आता है तो समर्थ से समर्थ व्यक्ति पर कोई अदना सा आदमी जूता तक फ़ेंक देता है और लोग तमाशा देख कर रह जाते हैं ।
इंडिया की मृत्यु की सूचना हमें फॉक्स न्यूज़ से मिली जिसमे व्हाइट हॉउस के लारा बुश के कार्यालय के सेली मेक्डोनो के हवाले से बताया गया कि इंडिया की १८ वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई । तो क्या इंडिया की उमर केवल १८ वर्ष ही थी । अब साहब १८ वर्ष पहले जनम हुआ तो उम्र १८ वर्ष से ज़्यादा कैसे हो सकती है । खुश होने की बात यह है कि इंडिया को लारा बुश ने अपने परिवार के सदस्य के समान बताया है ।
इंडिया को १८ वर्ष होने के कारण वोट का अधिकार भी मिलने वाला था । हो सकता है सुरक्षा परिषद् की सदस्यता भी मिल जाती । अमेरिका चाहे तो क्या नहीं हो सकता । पर क्या किया जाए अब तो इंडिया की मृत्यु ही हो चुकी । आप कहेंगें कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इंडिया मर जाए और हम जिंदा रहें ? ऐसा बहुत बार हुआ है । स्वर्णिम चतुर्भुज के इंजीनीयर पांडे की ठेकेदारों ने हत्या करवा दी और कुछ नहीं हुआ । नेता के जन्म दिन के लिए लाखों का चन्दा नहीं देने पर मनीष गुप्त की हत्या कर दी गई और कुछ नहीं हुआ । ताज़ा उदहारण ही देख लीजिये कि आतंकवादी पाकिस्तान के थे, सारी दुनिया जानती है, पाकिस्तान आँखों-आँखों में हँसता हुआ कह रहा कि आतंकवादी उसके यहाँ के नहीं थे । आगे भी यही कहता रहेगा । आपने सबूत दिए और वह कह रहा है कि सबूत पर्याप्त नहीं हैं । आगे भी यही कहता रहेगा । दुनिया तमाशा देख रही है । यह मरना नहीं है तो क्या है ?
बने फिरो जगद्गुरु, बने फिरो आर्थिक महाशक्ति ।
अब चलो आपको बता ही देते हैं कि यह इंडिया और कोई नहीं - लारा बुश की प्रिय बिल्ली है जिसको भारत प्रेम के कारण मेडम ने इंडिया नाम दिया था ।
आप में से कुछ ज़्यादा राष्ट्रवादी होने का नाटक करने के कारण कहेंगे कि बिल्ली को इंडिया नाम देने से भारत के सम्मान को ठेस लगी है । अब इसका क्या किया जाए । ऐसा तो होता ही रहता है । अमरीका में तो शिव, गणेश और काली आदि को सेंडिल पर छाप दिया था ।
वैसे बिल्ली, कुत्ते से ज़्यादा निकट होती है मालिक के ।
बिल्ली का नाम इंडिया रखने का किस्सा आज का नहीं बल्कि २४ जुलाई २००१ का है । हमने उस समय अपनी प्रतिक्रिया में दो कुण्डलिया छंद लिखे थे (कुण्डलिया संग्रह 'अपनी-अपनी लंका') जो आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहें हैं ताकि सनद रहे ।
नौकर के होते सदा रामू, भोला नाम ।
भोले शंकर,राम पर ना होते नाराज़ ।
ना होते नाराज़, उड़ेगी काहे खिल्ली ।
कुत्ते से हर तरह श्रेष्ठ होती है बिल्ली ।
जोशी जिनके कुत्ते बन, वे पूँछ हिलाएँ ।
तो उनकी बिल्ली बनकर हम क्यों शरमाएँ ।
बुश की बिल्ली बन गया अगर इंडिया देश ।
तो क्यों होते हो दुखी, क्यों खाते हो तैश ।
क्यों खाते हो तैश, बड़ों के कुत्ते बिल्ली ।
सब सुख भोगें, रहें सदा कलकत्ता, दिल्ली ।
कह जोशी कवि म्याऊँ बोलें उन्हें रिझाएँ ।
तो चूहा क्या, चिकन केन्टकी वाला खाएँ ।
६ जनवरी २००९
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Jhootha Sach
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अफ़सोस इंडिया मर गई . पर मेरा अमरीका तो अभी कुछ ही महीने का है प्यारा लेकिन अपने पर ही भोकता है मेरा पिल्ला
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