बहुत भोला है बेचारा ...ट्रंप का दिल आज तोताराम 'है अपना दिल तो आवारा ...' की आधी पंक्ति 'बहुत भोला है बेचारा ......' नाक में गुनगुनाता हुआ प्रकट हुआ लेकिन पंक्ति के अंत में तीन शब्द भी बोल रहा था- 'ट्रंप का दिल' | हमने कहा- तोताराम, यह धुन तो देवानंद और वहीदा रहमान की प्रसिद्ध फिल्म 'सोलहवाँ साल' के प्रसिद्ध गीत- है अपना दिल तो आवारा .... की है लेकिन अंत में यह ट्रंप कहाँ से आगया ? बोला- 'दिल' और वह भी 'आवारा दिल' हो तो सलमान रुश्दी, ट्रंप और शशि थरूर न आएँगे क्या मोदी जी आएँगे ? बड़े रसिक और दिल फेंक हैं ये तीनों ही प्राणी | लोगों से ज़िन्दगी भर एक नहीं पटती और ये लोग माशा अल्लाह .....|और अभी तो क्या बिगड़ा है ? हफीज जालंधरी की तरह 'अभी तो मैं जवान हूँ' | हमने कहा- तोताराम, तू चाहे कुछ भी कर लेकिन किसी साहित्यिक रचना की दुर्गति मत कर |तुलसीदास जी ने 'हनुमान चालीसा' लिखा भक्तशिरोमणि हनुमान जी के लिए और अब उसकी तर्ज़ पर लोग जाने किस-किस पर चालीसा लिख मारते हैं ? इससे उन तथाकथित नेताओं और उनके टुच्चे और स्वार्थी भक्तों का तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन इससे हनुमान जी का अपमान ज़रूर होता है | तुलसी बाबा के दिल पर क्या गुजरती होगी, इसे तो समझने वाला ही कौन है ? यह गंगाजल को गटर में मिलाना है, गाँधी को गोडसे से जोड़ना है |ऐसे टुच्चे, स्वार्थी और नकली भक्त-कवि केवल हनुमान की जगह उस घटिया आराध्य नेता का या किसी पार्टी आदि का नाम मात्र जोड़कर काम चला लेते हैं |फिर भी छंद दोष | यदि नाम ही लेना है तो तीनों का ले |अकेले ट्रंप के पीछे क्यों पड़ा है ? बोला- रुश्दी अपने लेखकीय स्टेंड और शशि थरूर अपनी पार्टी के प्रति ईमानदार हैं लेकिन ट्रंप का तो ३० दिन में २८ झूठ बोलने का रिकार्ड है | हमने कहा- आज चाहे राजनीति हो, चाहे इश्क; एक वाक्य में चार झूठ बोले काम नहीं चलता |राजनीति को तो हमारे मनीषियों ने कहा ही 'वारांगना' है |और श्रेष्ठ वारांगना वह होती है जो एक साथ बाप और बेटे दोनों को उलझाकर रखती है |ट्रंप और शी जिन पिंग तो इस कला के मास्टर हैं | बोला- कैसे ? हमने कहा- कल ट्रंप चीन को भारत की ओर से हड़का रहे थे और जैसे ही ७५ लाख करोड़ रुपए के सिक्योरिटी सिस्टम की बात पक्की हो गई तो अब कह रहे हैं- भारत-चीन दोनों से प्यार है | इधर जितनी देर ट्रंप भारत के प्रति प्यार की कसमें खा रहे थे तब तक उधर शी जिन पिंग ने पिछवाड़े में जाकर भारत से ईरान को चाबहार बंदरगाह में महबूब के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपए के फूल बेचने का सौदा हथिया लिया | अब फिर वही 'नमस्ते ट्रंप' और 'बिरज में झूला झूलें नन्दलाल' |मतलब बेशर्मी से लिपटम चिपटम |यथास्थिति और वार्ता | बोला- बातों की बात और है लेकिन इस मामले में फ़्रांस का राष्ट्रपति मेक्रों पक्का संत है |अपने से २५ साल बड़ी अपनी टीचर से इश्क किया, ब्याह किया और शान से निभा रहा है |
मेलानिया की मूर्ति अब तो खैर, चीन ने मोदी जी को थोड़ा व्यस्त और मौन कर दिया अन्यथा तो जहां जाते थे वहीँ ले शेल्फी और ले शेल्फी | उसी तरह से तोताराम, जब से बच्चों ने स्मार्ट फोन दे दिया है, कोई न कोई फोटो हमें दिखाता रहता है | अभी जब तोताराम आया सुबह के सात बजे रहे थे और अमरीका में इस समय रात के साढ़े नौ बज रहे हैं | हम अपने अमरीकी मित्रों को अमरीका के स्वतंत्रता दिवस की बधाई दे रहे थे |तभी तोताराम ने व्यवधान डाला और बोला- मास्टर, जब ट्रंप साहब से बात करे तो बधाई ज़रा कम उत्साह से देना और संवेदना ज़रा गहराई से व्यक्त कर देना | हमने कहा- शुभ-शुभ बोल |अमरीका तो पहले ही कोरोना से परेशान है |यह तो ट्रंप साहब का खिलंदड़ा और मनमौजी स्वाभाव है जो बिना ताली, थाली और दीवाली के लोगों का मनोबल बनाए हुए है अन्यथा कोई और होता तो शर्म और दहशत से ही मर जाता | और देख लेना, भले ही लाख दो लाख मर जाएं लेकिन ट्रंप साहब अमरीका की ग्रेटनेस में कोई कमी नहीं आने देंगे और किसी देश का स्वतंत्रता दिवस संवेदना व्यक्त करने का दिन होता है ? बोला- यह कोरोना से भिन्न दुःख का समाचार है | हमने कहा- अब और क्या समस्या आ गई ? तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में एक तस्वीर दिखाते हुए बोला- यह क्या है ? हमने कहा- ऐसी फालतू चीजों का कोई नाम होता है क्या ? यह किस खेत से डरावा (खेत में पक्षियों को डराने के लिए खड़ा किया गया बिजूका, अंग्रेजी में स्कारक्रो ) उठा लाया ? वैसे जब टिड्डियाँ सब कुछ साफ़ कर गईं तो फिर खेत में इसकी क्या सजावट करनी थी ? या फिर यह किसी घटिया कलाकार द्वारा बनाई गई कोई सड़ियल कठपुतली है | बोला- तेरे जैसे मास्टर का कला बोध इससे अधिक हो भी कैसे सकता है ? यह कोई कठपुतली नहीं, दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क के आत्ममुग्ध राष्ट्रपति ट्रंप साहब की तीसरी पत्नी, अपने समय की एक मशहूर मॉडल, ५० की उम्र में भी आकर्षण से भरपूर मेलानिया ट्रंप की मूर्ति है | हमने कहा- लेकिन यदि इसे किसी रात में दिखा दो तो बेचारा इसे भूतनी समझकर डर जाएगा | यदि मेलानिया वास्तव में ही ऐसी दिखती है तो ट्रंप वास्तव में ही सहानुभूति के अधिकारी हैं |लेकिन क्या जब ट्रंप ने मेलानिया को दिल दिया था तब भी वे ऐसी ही दिखती थी ? यदि हाँ, तो हमें ट्रंप की अक्ल पर तरस आता है |वैसे हमने तो ट्रंप की तीनों बीवियों की जो तस्वीरें देखी हैं, अच्छी ही हैं |
(बीवी नंबर ३ मेलानिया , ५० वर्ष | बीवी नंबर २ मारला मेपल्स,५७ वर्ष | बीवी नंबर १ इवाना, ६० वर्ष ) बोला- यह इम्प्रेशनिस्ट आर्ट है जिसे अमरीकी कलाकार ब्रेड डाउनी ने लकड़ी से बनाया है |इसकी ब्यूटी को तू नहीं समझेगा |इसे मेलानिया के मूल राष्ट्र स्लोवानिया में लगाया गया है |अब ट्रंप से नाराज़ लोगों ने इसे अमरीका के स्वतंत्रता दिवस ४ जुलाई २०२० के अवसर पर फूंक दिया | हमने कहा- अच्छा किया जो फूंक दिया |यह कहीं से भी मेलानिया नहीं लगती | अपने यहाँ भी तो होली पर गली-मोहल्ले का कूड़ा-कबाड़ फूँकते ही हैं | बिना बात बेचारी एक सुन्दर मॉडल की छवि खराब हो रही थी |तभी तो ट्रंप या मेलानिया ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है |कोई बनाने वाला हो तो क्या लकड़ी की सुन्दर मूर्तियाँ नहीं बनतीं ? विश्वास नहीं हो तो अपने इम्प्रेशनिस्ट कलाकार ब्रेड डाउनी को कृष्ण की इस मूर्ति का फोटो भेज दे | बोला- ट्रंप साहब से इस दुखद अवसर पर संवेदना भी व्यक्त कर देना |क्या जाता है ? क्यों सलाम के लिए मियाँ जी को नाराज़ किया जाए |मोदी जी की तरह चीन को ध्यान में रखकर दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई तक न देने जितना गणित भी नहीं लगाना चाहिए | वैसे तेरा मेलानिया की मूर्ति को भद्दी कठपुतली कहना मुझे ठीक नहीं लगा |वे सुन्दर हैं और ट्रंप से २१ साल छोटी हैं तो उन्हें कौन कठपुतली की तरह नचा सकता है | जो महाबली ट्रंप को नाचती हो उसे कोई क्या नचाएगा ? पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
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Jhootha Sach
यह कौन बिलबिला रहा है ? आज अखबार जल्दी आ गया |और तोताराम भी जल्दी ही आ गया | हमने मोदी जी की तरह चीन का नाम लिए बिना ही इशारे में कहा- तोताराम, अखबार भी कैसी फालतू की चीज है |ज्ञान और विचार कुछ नहीं, विज्ञापन दाताओं की आत्मप्रशंसा और अखबार द्वारा सत्ता की हाँ में हाँ मिलाने के सिवाय |कुछ लोग भी ऐसे होते हैं जिनकी आदत अखबारों और खैनी की तरह हो जाती |फायदा कुछ नहीं और रोज का मीठा खर्च ऊपर से | बोला- एक चाय के पीछे विश्वसनीय अखबार की आड़ में मुझे लपेट रहा है ! हमने कहा- हम तो वैसे ही मजाक कर रहे थे |अभी चाय में देर है तो क्यों न 'कोरोना के साथ जीते हुए' बिना मास्क के 'स्वच्छ भारत की स्वच्छ हवा' ग्रहण करने थोड़ा जयपुर रोड़ की तरफ चक्कर लगा आएँ | बोला- मन तो नहीं है लेकिन लॉक डाउन में स्मृति ईरानी की अन्त्याक्षरी की तरह यही सही |लेकिन यह देख क्या है ? लिखा है-' ऐप बैन से चीन हुआ बेहाल' | हमने कहा- लेकिन अभी तो चल, विस्तार से बाद में पढ़ लेंगे | रात को हुई बरसात, जल निकासी व्यवस्था के अभाव और सड़क पर गड्ढे के कारण ट्रांस्फोर्मर के पास पानी भरा हुआ था तो बाईं तरफ कोई गिट्टी का बड़ा ट्रक खाली कर गया था, दिन में ट्रेक्टर ट्रालियों से शहर में सप्लाई करने के लिए | किसी तरह नगर परिषद् की वैतरणी पार की |तभी कूड़े के डिब्बे के पास से कराहने की सी आवाज़ आई | वैसे तो हम वसुधैव कुटुम्बकम वालों को न तो कोरोना काल के प्रथम लॉक डाउन में प्रवासी मजदूरों और न ही लगभग उसी समय अमरीका में काले जोर्ज की गोरे पुलिसमैन द्वारा हत्या से कोई करुणा उपजी थी लेकिन अब वैसे ही उत्सुकतावश पास गए तो देखा, छोटी-छोटी आँखों वाला, पीले से रंग का व्यक्ति पड़ा हुआ कराह रहा है |कहीं कोई बाहरी चोट तो दिखाई नहीं दे रही थी फिर भी पीड़ा उसके रोम-रोम से टपक रही थी | हमने कहा- नैन नक्श से तो चीनी लग रहे हो |यहाँ क्यों पड़े हो ? क्या किसी मार्शल नस्ल के युवा ने जोश में भरकर अपनी किस्तों पर ली नई नई जीप से टक्कर तो नहीं मार दी ? बोला- जी नहीं, यह तो मेरे अपने ही कर्मों का फल है | आज के ज़माने में कौन अपनी गलती मानता है ? किसी पार्टी ने राज्य में सत्ता में रहते सत्यानाश कर दिया तो पिछली सरकार का दोष और यदि केंद्र में हुए तो गाँधी-नेहरू हैं ही दोषारोपण के लिए |लेकिन यह व्यक्ति अपनी गलती मान रहा है तो हमें उससे अतिरिक्त सहानुभूति हुई | पूछा- क्या गलती हो गई तुमसे ? बोला- जी, विस्तारवाद के चक्कर में विकासवाद से टकरा गया |पुराने अनुभव के चक्कर में कमजोर मानकर थोड़ी छेड़खानी कर ली | तोताराम ने कहा- छेड़खानी बुरी बात है |हमारा तो मानना है जब तक कोई पक्का और विश्वसनीय रिश्ता न बने तब तक छेड़खानी तो दूर; गले मिलना और संग-संग झूला भी नहीं झूलना चाहिए |अनावाश्यकरूप से बार-बार मिलाना भी ठीक नहीं |बिना बात लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं |वैसे तुम हो कौन ? बोला- जी, सारी दुनिया जान-समझ गई है |अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनना तो आसान है लेकिन अपने मुंह से अपनी फजीहत सहित परिचय देना बड़ा कष्टकर होता है |इसलिए जिस प्रकार मोदी जी ने बिना नाम लिए सब कुछ समझा दिया वैसे ही आप मेरे कहे बिना समझ लो | हमने कहा- कोई बात नहीं |तुम कष्ट में हो |चलो, उठो |हमारे साथ चाय पीकर जहां जाना हो, चले जाना | बोला- कैसे उठूँ |बिना एक्सीडेंट या पिटाई के मेरी तो कमर टूट गई | हम दोनों को आश्चर्य हुआ |अच्छा भला, हट्टा-कट्टा आदमी; बाहर कोई चोट नहीं और कह रहा है कमर टूट गई | हमने कहा- हमें तो कुछ समझ नहीं आया |साफ़-साफ़ बताओ | बोला- मान गए तुम चाणक्य के वंशजों को ! कुछ करते हुए दिखे भी नहीं और तोड़ दी कमर |अब तो माफ़ करो |मैं तो तुम्हारे इस 'ऐप बैन' से ही बिलबिलाने लगा हूँ |जब- वास्तव में आँखें लाल करोगे तो पता नहीं क्या हाल करोगे ? पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
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Jhootha Sach
आते ही तोताराम ने असामान्य स्वर में कहा- मास्टर, विकास..... इसके बाद उसने अटल जी की तरह एक लम्बा ब्रेक ले लिया |हम पायल निगोड़ी......के बाद के रहस्य के उद्घाटन की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे |जब सहन नहीं हुआ तो कहा- आगे भी तो बोल ! क्या हुआ हमारे प्यारे विकास को ? बोला- खल्लास ! हमने पूछा- कैसे ? कोरोना से ? बुलेट ट्रेन तो अभी तक चालू ही नहीं हुई अन्यथा उससे गिरकर भी खल्लास हो सकता था | बोला- कानपुर से उज्जैन जाते हुए कई राज्यों में से होकर गुज़रा लेकिन कुछ नहीं हुआ लेकिन उज्जैन से कानपुर पहुँचने ही वाला था कि पुलिस की गाड़ी पलट गई | कुछ पुलिस वाले घायल हुए लेकिन विकास को कोई चोट नहीं आई |वह दोनों पैरों में रोड डली होने के बावजूदएक पुलिस वाले का रिवाल्वर छीनकर तीव्र गति से दौड़ने लगा |ऐसे में पुलिस क्या करती ? आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी |मज़े की बात यह कि भागते हुए भी गोली विकास की छाती पर लगी |चलो, पुलिस का कानून-व्यवस्था की रक्षा का कर्त्तव्य पूरा हुआ और छाती पर गोलियां लगने से विकास की वीरता की भी लाज भी रह गई |
हमने कहा- तोताराम, तुम सबसे पहले किसी भी बात में छुपी संदेह और भ्रांतिमान अलंकार की सभी संभावनाओं से होने वाली गलफहमी को ध्यान में रखते हुए जितना हो सके उससे बचते हुए बोला करो |सबसे पहले यही कहते कि मैं कानपुर वाले विकास दुबे की बात कर रहा हूँ तो हमें इतना टेंशन तो नहीं होता | हमारी तो ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे रह गई |अरे, ६७ साल इंतज़ार करते-करते भारत माता की गोद हरी हुई और विकास का जन्म हुआ था | अभी तो सातवाँ साल ही लगा था |दूसरी क्लास में ही आया था |नटखट तो खैर, उसे होना ही था क्योंकि बुढ़ापे की औलाद जो ठहरा |शुरू में लोग इसे समझ नहीं पाए |इसीलिए गुजरात में कुछ लोग कहने लगे- विकास गांडो थई गयो |
बोला- विकास कभी 'गांडा' नहीं होता |वह और उसे जुड़े सभी पक्ष और लोग बहुत चतुर होते हैं |बिना चतुराई और सबके साथ और सबके विश्वास के विकास का होना संभव ही नहीं |जब तक पुलिस और राजनीति का सहयोग नहीं होता, विकास पैदा ही नहीं हो सकता |यह तो राजनीति, बाहुबलियों और अपराध के नाजायज संबंधो के फलस्वरूप ही पैदा होता है |वरना जब उसने थाने में पुलिस वालों के सामने एक नेता का क़त्ल किया और एक भी पुलिस वाला गवाही देने का साहस नहीं जुटा सका तभी उसके 'सबके साथ' का भाव समझ में आ जाना चाहिए था | वही विकास दुबे आज एक हफ्ते में ही पकड़ में आ गया और मारा भी गया |ऐसे में क्या सब कुछ समझना मुश्किल है ?
बाह्य कुम्भक प्राणायाम पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जोन्सन को हुआ फिर कनाडा के प्रधानमंत्री त्रूदो की बेगम को हुआ, अब ब्राजील, जिसे वे ब्रासीलिया कहते हैं, के राष्ट्रपति को हो गया |लोग कहते हैं कालों, गंजों, बूढ़ों,लापरवाह, तबलीगियों, वेद विरोधियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों को कोरोना की संभावना अधिक रहती है लेकिन आस्थावान, धार्मिक, पक्के पंडित, वैदिक-ज्ञान-संपन्न, वास्तव में दवा-दारू वाले डॉक्टर, काले घने बालों वाले, गौरवर्ण और युवा संबित पात्रा तक को कोरोना हो गया |यह तो परिवार के स्वयंसेवकों की दुआ का परिणाम था जो शीघ्र हो ठीक हो गए |खैर, भगवान उन्हें देश को २२ वीं शताब्दी में ले जाने और अर्थव्यवस्था को पाँच ट्रिलियन डॉलर की बनाने के लिए शतायु करे | ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो हम और तोताराम पेंशन का १०% पानी, साबुन और सेनेटाइज़र पर खर्च करने लगे हैं | इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए ५००/- रु. महिने का च्यवनप्राश खर्च और पाल लिया है | अब तोताराम के कहने पर रामदेव वाला काढ़ा और तेल भी ले आए हैं | कोई आता है तो कमरा बंद कर लेते हैं और अन्दर से ही कह देते हैं कोरोना के बाद आना | कल एक बहुत पुरानी और प्रतिष्ठित पत्रिका का मनीऑर्डर आया |मनीआर्डर आना ही उसके प्रतिष्ठित और प्राचीन होने का प्रमाण है |नहीं तो, कई अखबार कई-कई बार खाली चेक की फोटो और बैंक के डिटेल्स मंगवाकर भी या तो पैसे बैंक में ट्रांसफर करने में बरसों लगा देते हैं या फिर लेखक दुखी होकर बैठ जाता है | तीन बार सेनेटाईज़र से 'अपवित्रोपवित्रो वा ...' करके पैसे लिए |फिर धूप में रख दिए तो आँधी में एक नोट उड़ गया |बड़ी मुश्किल से कूदकर मंडी में से कूड़े में से उठाकर लाये |तभी शायद नीतिकारों ने कहा है- पर् यो अपावन ठौर में कंचन ताजे न कोय |
कोरोना से सुरक्षा का यह अनुष्ठान इसलिए कि बचेंगे तो ही पेंशन पूरी मिलेगी नहीं तो एक तिहाई कम हो जाएगी | और २०२२ में यदि मोदी जी की कृपा हुई तो कोरोना के नाम पर बंद किए गए महँगाई भत्ते की किश्त भी ले लेंगे |किसी तरह हिम्मत बाँधे हुए हैं | इस धर्म संकट के तोताराम ने हमारे भय को और बढ़ाते कहा- मास्टर, पहले तो किसी तरह मुँह पर गमछा लपेटकर हिम्मत बाँधे हुए थे लेकिन अब तो हाथ, नाक, कान से उछलकर यह ससुर कोरोना हवा में फ़ैल गया है |अब क्या साँस लेना बंद कर दें ? हमने कहा- तो क्या अब तक तेरी साँस चल रही थी ? बोला- साँस चले बिना क्या कोई जिंदा रह सकता हैं ? हमने कहा- हमें तो लगता है कई सालों से साँस बंद ही है | बोला- राजनीतिज्ञों की तरह यह आड़ी-तिरछी और प्रतीकात्मक बात मत कर |साँस से मेरा मलतब केवल साँस है, और कुछ नहीं |अब हवा तो हवा है |कभी भी, किधर भी बह सकती है |साँस लेते भी डर लगता है, पता नहीं कब अमरीकी, ब्राजीली हवा इधर बह जाए और हमारी नाक में घुसकर बीमार कर डाले |और जहां वेंटीलेटर और जाँच भी नकली चल पड़े हों तो किस पर भरोसा करें | हमने कहा- रामदेव जी ने खोज तो ली कोरोना की दवा | बोला- देश और वेद भक्ति के नाम पर च्यवनप्राश बेच लेना और बात है लेकिन जब दुनिया के प्रमाण-प्रयोग के आधार पर आना पड़ता है तब झूठी भावुकता काम नहीं आती |वैसे कोरोना-महाभारत को १८ दिनों की बजाय २१ दिनों में निबटा देने वाले मोदी जी अब १२१ दिन बाद भी राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी डालकर चुप हैं | इसलिए रामदेव वाला प्रयोग आजमाने की हिम्मत नहीं होती |हाँ, जब तक कोरोना न हो तब तक तो राष्ट्र और वेदभक्ति के नाम पर पाँच-चार सौ रुपए फूंके जा सकते हैं | हमने कहा- लेकिन यह हवा से फैलने वाला मामला भी तो वेद-विज्ञान वाली 'प्राणायाम पैथी' के पास ही है |पहले भी हमारे ऋषि हजारों साल की समाधि लगा सकते थे तो क्या हम साँस छोड़कर साल-दो साल का 'बाह्य कुम्भक प्राणायाम' नहीं कर सकते ? बाहर ही हवा बाहर |जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तब फिर साँस अन्दर ले लेंगे | तब तक विश्व में तेल गिरती कीमतों के बावजूद भारत में बढ़ती तेल की कीमतों के कारण और लॉक डाउन के कारण प्रदूषण भी कुछ कम हो जाएगा | पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
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Jhootha Sach
दिल्ली में टिड्डे-टिड्डियाँ बाहरी दिल्ली के सभी गाँवों में खेती की ज़मीन पर अवैध कोलोनियाँ कट गई हैं जिन्हें अब नियमित कर दिया गया है | जब कोई गलत शब्द बहुत प्रचलित हो जाता है तो अंततः उसे स्वीकृति मिल ही जाती है जैसे अंग्रेजों के समय में सेना में कम पढ़े लिखे सिपाहियों ने all correct को ओल करेक्ट और फिर संक्षिप्तीकरण के तहत OK बना दिया तो उसे भी ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में स्थान मिल ही गया | तो चलो खेती नहीं तो पर्यावरण मंत्री ही सही, पद तो चाहिए | वैसे पर्यावरण भी बेचारे पर्यावरण मंत्री के पास कहाँ होता है ? उसमें प्रदूषण फ़ैलाने वाले तो परिवहन और उद्योग मंत्री होते हैं और बदनाम होता है बेचारा पर्यावरण मंत्री |हाँ, कुछ उत्साही मंत्री ही ऐसे होते हैं जो गंगा सफाई का बजट दीये जलवाने और आरती उतारने के लिए तेल में ही खर्च कर देते हैं |अब नापने कौन जाएगा कि एक दीये में पचास मिलीलीटर तेल डाला या पाँच मिलीलीटर और दीये भी पाँच लाख जलवाए या डेढ़ लाख ? अगर कोई हिम्मत करके पूछ ले तो विधर्मी, अधर्मी और अंततः देशद्रोही | तो जी, दिल्ली में टिड्डियाँ आ गई बताते हैं |हमारे यहाँ तो कल शाम को आई थीं |घर के ऊपर का 'सारा आकाश' चितकबरा हो गया |मंडी के बबूलों पर डेरा जमाया और हमारे ग्वार, भिन्डी और बैंगन के कुछ पौधों का सफाया कर गईं लेकिन मुआवज़ा किसके माँगें |सरकार ने तो कोरोना से मरने वालों का पूर्व घोषित चार लाख रुपए का पॅकेज ही चुपचाप केंसिल कर दिया | ऊपर से लोगों को कोरोना से इतना डरा दिया है कि बेचारे पेट्रोल दरों की रोजाना गुपचुप बढ़ोतरी के विरोध में आवाज़ उठाने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं | अड़ोस-पड़ोस के लोगों ने, जिन्हें मोदी जी की ताली-थाली तकनीक पर विश्वास था, यह टोटका भी किया |टिड्डियाँ भी उतनी ही भागीं जितना कोरोना भागा |उसके बाद से तो कोरोना ने इतनी स्पीड पकड़ ली है कि सरकार ने बदनामी से डरकर जाँच करवाना ही बहुत कम कर दिया है |इसके बावजूद हम चौथे नंबर पर आ गए हैं | यह बात और है कि अखबार पहले पेज पर सारे आँकड़े दिखाते हैं लेकिन संक्रमित देशों की लिस्ट से भारत को गायब किए हुए हैं |यहाँ तक कि स्वघोषित 'विश्वसनीय' अखबार भी | तो टिड्डी दल राजधानी में प्रवेश कर गया है सभी ५६ इंच के सीने वालों, आँख में आँख डालकर बात करने वालों, घर में घुसकर मारने वालों की उपस्थिति के बावजूद |सभी तरह के सीमा सुरक्षा बालों के होते हुए भी टिड्डियाँ पाकिस्तान की तरफ से घुस ही आईं |क्या किया जाए ? यह कांग्रेस और यह केजरीवाल पता नहीं स्पष्ट बहुमत वाली, धुआँधार काम करने वाली, एक मिनट भी चैन से न बैठने वाली सरकर को बदनाम करने के लिए क्यों पीछे पड़े हुए हैं | क्या करें बेचारे दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय |अपने नाम के अनुरूप गायों का पालन ही नहीं कर पा रहे हैं |केंद्र में काबिज़ गौभक्त सरकार की कृपा से आवारा गायें दिल्ली की सड़कों की शोभा बढ़ा रही हैं |अपने सरनेम 'राय' के अनुरूप सभी की राय मानने को विवश | और फिर भारत-भक्तों की वैदिक तकनीक न मानें, ऐसा कैसे हो सकता है ? भारत में रहना नहीं है क्या ? सो जारी कर दिया ढोल और डीजे बजाने का विज्ञान सम्मत आदेश |
एक बात समझ नहीं आई कि जब दिल्ली में खेती नहीं होती तो ये टिड्डियाँ पाकिस्तान से उड़कर यहाँ क्या करने आई हैं |लगता है बीस लाख करोड़ की फाइलों में उगी खेती को चरने आई हैं |
वैसे टिड्डियों से बचाव के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्त्व मानने वाली पार्टी के शासन में गुजरात के बनासकांठा जिले में अध्यापकों को टिड्डियाँ भगाने की ज़िम्मेदारी दी गई है | ठीक भी है, जब शिक्षा का उद्देश्य, शिक्षा का दर्शन, इतिहास और संविधान लिखने की ज़िम्मेदारी सरकार के मंत्रियों ने ले ली है तो मास्टरों के लिए और काम ही क्या रह जाता है |सरकार का ढोल बजाएं और टिड्डियाँ भगाएँ |हालाँकि तथाकथित देशभक्तों द्वारा टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोहियों का अड्डा प्रचारित की जाने वाली जे एन यू अब भी रेंकिंग में नंबर दो है |
हेल्प अस टू हेल्प यू ६ जून २०२० को मोदी जी का मेल आया |भिड़ते ही बाईं तरफ लिखा था 'myGov' और नीचे हिंदी अनुवाद 'मेरी सरकार' |प्रेमी अपनी अपनी प्रेमिका को और फिर बाद में बीवी को उल्लू बनाने के लिए कूटनीतिकली 'सरकार' कहते हैं | अब यह मोदी जी की 'सरकार' कहाँ से आ गई ? वे भी खुद को फकीर कहते हैं और जनता ने भी स्वीकार कर लिया है |बाद में लोगों ने बताया कि 'मोदी जी की सरकार' का मतलब 'भारत सरकार' होता है | वैसे भी सच्चे सेवक सरकार के साथ 'चन्दन और पानी' की तरह इतने एकाकार हो जाते हैं कि उन्हें अलग करना, देखना और समझना संभव नहीं होता |अब मोदी जी भी 'इंदिरा इज इण्डिया' की तरह साक्षात चलते-फिरते भारत हो गए हैं |भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं तो इण्डिया तो हो नहीं सकते |फिर भी जैसे परमात्मा में सभी आत्माएं समाई रहती हैं वैसे ही हम भी खुद को भारत और मोदी जी दोनों में मान लेते हैं | जैसे आजकल सेवक जनता से मिलने की बजाय ट्वीट कर देते हैं वैसे ही जब से स्मार्ट फोन मिला है, तोताराम भी विस्तार से बताने की बजाय किसी ट्वीट या मेल का सन्दर्भ दे देता है |आज बोला- मोदी जी का ६ जून वाला ट्वीट देखा ? हमने कहा- छह जुलाई आने वाली है और तू ६ जून के मेल की बात कर रहा है ! अब तक तो मोदी जी जाने कितने ट्वीट, स्टेटमेंट, वक्तव्य और सन्देश दे चुके होंगे |कोई नई बात कर | बोला- हम केवल बात करने वाले नहीं हैं |हम वही बात करते हैं जिस पर एक्शन लेना होता है |जैसे मोदी जी घर में घुसने और आँख दिखाने की बात ही नहीं करते घर में घुस कर मारते भी हैं और लाल आँख दिखाते भी है |परिणाम साफ़ दिखाई दे रहा है |चीन, पाकिस्तान और नेपाल को पतले दस्त क्या ऐसे ही लगने लगे हैं ? हमने कहा- छोड़, लाल आँखें |तू तो मोदी जी की छह जून वाली बात बता | हमें कुछ याद नहीं पड़ रहा है |
बोला- उसमें कोरोना में लॉक डाउन के बाद अनलॉक-१ के सन्दर्भ में बताते हुए मोदी जी ने सरकार की हेल्प करने की बात लिखी थी जिससे कि सरकार हमारी मदद कर सके- 'help us to help you' . हमने कहा- हेल्प करने का यह कौनसा तरीका है ? हमीं से लेकर, हमारी हेल्प | जब सब कुछ ही हमारा है तो सरकार का कैसा एहसान ? हम खुद ही ना अपने साधनों से अपनी हेल्प कर लेंगे |सरकार जब हेल्प करेगी तो कौन सी सीधे-सीधे हेल्प करेगी | हेल्प के साथ भी अपना चुनाव चिह्न चिपकाएगी |देखा नहीं, बनारस में एक सज्जन मोदी जी द्वारा सुझाए गए मास्क के विकल्प के रूप में गमछे बाँट रहे थे लेकिन उन गमछों पर 'कमल का निशान' बना था और लिखा था 'मोदी गमछा' | बोला- देख मास्टर, मैं किसी सरकार को नहीं जानता |मैं तो मोदी जी को जानता हूँ |वे गंगा की तरह पवित्र और सूर्य की तरह निष्कलंक हैं |भ्रष्टाचार करेंगे भी तो किसके लिए ? वैसे भी वे परिवारवाद में विश्वास नहीं करते |उनके लिए तो कांग्रेस को छोड़कर सब 'वसुधैव कुटुम्बकम' है |कांग्रेस को छोड़ना इसलिए ज़रूरी है कि उसने इस देश का विनाश और अहित विदेशी आततायियों से भी अधिक किया है |इसलिए मैं तो सरकार की हेल्प ज़रूर करूँगा | हमने कहा- हम तुझे किसी की भी हेल्प करने से मना नहीं कर रहे हैं | हमारी तो स्थिति ऐसी है नहीं कि सरकार की हेल्प कर सकें |सरकार ने तो पहले ही हमारा डी.ए. बंद करके ज़बरदस्ती हेल्प ले ही ली |वैसे तुझे पता होना चाहिए कि यह दुनिया हेल्प के चक्कर में ही दुखी और परेशान है, और लुट रही है |जंगल में कोई भ्रष्टाचार नहीं होता क्योंकि वहाँ कोई किसी की सेवा करने का धंधा नहीं करता | बोला- आज तू यह क्या कह रहा है, मास्टर ? आदमी आदमी की हेल्प नहीं करेगा तो फिर कौन करेगा ? हमने कहा- तोताराम, समाज के चतुर, मक्कार और हरामखोर लोगों ने हेल्प करने का एक विकट धंधा और बड़ा शक्तिशाली तंत्र खड़ा कर लिया है |तुझे पता होना चाहिए देश में ३१ लाख एन जी ओ हैं और अगर एक में दस-दस मुफ्तखोर भी घुसे हुए हैं तो तीन करोड़ हो गए |कम से कम इतने ही सभी धर्मों के धार्मिक स्थान भारत में हैं |इसी तरह ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं, परिषदों और निगमों में जन सेवा के लिए चुने गए लाखों सेवकों के अतिरिक्त माननीय विधायक, सांसद आदि भी सेवारत हैं | इससे दोगुने भूतपूर्व होंगे तो चारगुना भावी जनसेवक होंगे |फिर इन सबके चमचे भी होंगे क्योंकि सभी लोकप्रिय और हृदय सम्राट जो होते हैं | देश में सेवा के नाम पर हेल्प करने वाले कम से कम बीस करोड़ लोग सक्रिय हैं | इन सबका का खर्च जनता द्वारा दिए गए पैसे से ही तो चलता है |सेवा करने वाले को मेहनत-मजदूरी करने का समय ही कहाँ मिलता है ? फिर भी यदि तेरा मन है तो दे दे प्रधान मंत्री राहत कोष में एक दिन की पेंशन | बोला- मैं किसी प्रधानमंत्री को नहीं जानता | लोग कांग्रेस को नहीं, गाँधी जी को जानते थे और उन्हीं के नाम से कुछ देते और काम करते थे |एक बार प्रसिद्ध लेखक और क्रांति में विश्वास करने वाले शरच्चंद्र चटर्जी को कांग्रेस अधिवेशन में सूत कातते देखकर गाँधी जी ने कहा- शरत बाबू, आप तो बहुत बारीक सूत कातते हैं ! शरत बाबू ने कहा- बापू, यह तो मैं आपको प्रेम करता हूँ इसलिए कात रहा हूँ वैसे मेरा खादी -वादी में कोई खास विश्वास नहीं है |सो मुझे भी सरकारों में कोई विश्वास नहीं है लेकिन मेरा विश्वास है कि मोदी जी को देश सेवा के लिए दिया गया सब कुछ सुरक्षित है और उसका सदुपयोग होगा | इसलिए मैं जो दूँगा वह प्रधानमंत्री राहत कोष में नहीं, 'पी एम केयर' फंड में दूँगा | हमने पूछा- इन दोनों में क्या अन्तर है ? बोला- 'पी.एम केयर्स' में इतनी औपचारिकताएं नहीं हैं | और उसका 'प्रधानमंत्री राहत कोष ' की तरह किसी ऑडिट का भी चक्कर नहीं है | सीधा और तत्काल जनता तक पहुंचेगा | हमने फिर शंका की- तो फिर इसमें PM क्यों लगा हुआ है ? बोला- इसका फुल फॉर्म है- प्रिय मोदी जी केयर्स | मतलब मोदी जी सबकी केयर करते हैं | फिर इसके बाद सोचने विचारने को क्या रह जाता है ? निश्चिन्त होकर 'हेल्प देम, टू हेल्प यू' | हमने फिर पूछा- तो फिर यह भी बता दे कि तेरे पास देने के लिए है क्या ? बोला- तीन चीजें हैं- मेरी बत्तीसी, दोनों आँखों के दो लेंस और एक स्टेंट |किसी आयुष और प्रधानमंत्री स्वास्थ्य बीमा में कवर न होने वाले के काम आ जाएँगे | हमने कहा- ठीक है, अपने पास दिमाग जैसा तो कुछ दान देने के लिए न पहले था और न अब; तो यही सही |