Jul 21, 2020

यह कौन बिलबिला रहा है ?



यह कौन बिलबिला रहा है ?

आज अखबार जल्दी आ गया |और तोताराम भी जल्दी ही आ गया |

हमने मोदी जी की तरह चीन का नाम लिए बिना ही इशारे में कहा- तोताराम, अखबार भी कैसी फालतू की चीज है |ज्ञान और विचार कुछ नहीं, विज्ञापन दाताओं की आत्मप्रशंसा और अखबार द्वारा सत्ता की हाँ में हाँ मिलाने के सिवाय |कुछ लोग भी ऐसे होते हैं जिनकी आदत अखबारों और खैनी की तरह हो जाती |फायदा कुछ नहीं और रोज का मीठा खर्च ऊपर से |

बोला- एक चाय के पीछे विश्वसनीय अखबार की आड़ में मुझे लपेट रहा है !

हमने कहा- हम तो वैसे ही मजाक कर रहे थे |अभी चाय में देर है तो क्यों न 'कोरोना के साथ जीते हुए' बिना मास्क के 'स्वच्छ भारत की स्वच्छ हवा' ग्रहण करने थोड़ा जयपुर रोड़ की तरफ चक्कर लगा आएँ |

बोला- मन तो नहीं है लेकिन लॉक डाउन में स्मृति ईरानी की अन्त्याक्षरी की तरह यही सही |लेकिन यह देख क्या है ? लिखा है-' ऐप बैन से चीन हुआ बेहाल' | 

हमने कहा- लेकिन अभी तो चल, विस्तार से बाद में पढ़ लेंगे |

रात को हुई बरसात, जल निकासी व्यवस्था के अभाव और सड़क पर गड्ढे के कारण ट्रांस्फोर्मर के पास पानी भरा हुआ था तो बाईं तरफ कोई गिट्टी का बड़ा ट्रक खाली कर गया था, दिन में ट्रेक्टर ट्रालियों से शहर में सप्लाई करने के लिए | किसी तरह नगर परिषद् की वैतरणी पार की |तभी कूड़े के डिब्बे के पास से कराहने की सी आवाज़ आई |

वैसे तो हम वसुधैव कुटुम्बकम वालों को न तो कोरोना काल के प्रथम लॉक डाउन में प्रवासी मजदूरों और न ही लगभग उसी समय अमरीका में काले जोर्ज की गोरे पुलिसमैन द्वारा हत्या से कोई करुणा उपजी थी लेकिन अब वैसे ही उत्सुकतावश पास गए तो देखा,  छोटी-छोटी आँखों वाला, पीले से रंग का व्यक्ति पड़ा हुआ कराह रहा है |कहीं कोई बाहरी चोट तो दिखाई नहीं दे रही थी फिर भी पीड़ा उसके रोम-रोम से टपक रही थी |

हमने कहा- नैन नक्श से तो चीनी लग रहे हो |यहाँ क्यों पड़े हो ? क्या किसी मार्शल नस्ल के युवा ने जोश में भरकर अपनी किस्तों पर ली नई नई जीप से टक्कर तो नहीं मार दी ? 

बोला- जी नहीं, यह तो मेरे अपने ही कर्मों का फल है |

आज के ज़माने में कौन अपनी गलती मानता है ? किसी पार्टी ने राज्य में सत्ता में रहते सत्यानाश कर दिया तो पिछली सरकार का दोष और यदि केंद्र में हुए तो गाँधी-नेहरू हैं ही दोषारोपण के लिए |लेकिन यह व्यक्ति अपनी गलती मान रहा है तो हमें उससे  अतिरिक्त सहानुभूति हुई | पूछा- क्या गलती हो गई तुमसे ?

बोला- जी, विस्तारवाद के चक्कर में विकासवाद से टकरा गया |पुराने अनुभव के चक्कर में कमजोर मानकर थोड़ी छेड़खानी कर ली |

तोताराम ने कहा- छेड़खानी बुरी बात है |हमारा तो मानना है जब तक कोई पक्का और विश्वसनीय रिश्ता न बने तब तक छेड़खानी तो दूर; गले मिलना और संग-संग झूला भी नहीं झूलना चाहिए |अनावाश्यकरूप से बार-बार मिलाना भी ठीक नहीं |बिना बात लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं |वैसे तुम हो कौन ?

बोला- जी, सारी दुनिया जान-समझ गई है |अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनना तो आसान है लेकिन अपने मुंह से अपनी फजीहत सहित परिचय देना बड़ा कष्टकर होता है |इसलिए जिस प्रकार मोदी जी ने बिना नाम लिए सब कुछ समझा दिया वैसे ही आप मेरे कहे बिना समझ लो |


चीन को अब ऐसे 'शॉक' देने की तैयारी में भारत

हमने कहा- कोई बात नहीं |तुम कष्ट में हो |चलो, उठो |हमारे साथ चाय पीकर जहां जाना हो, चले जाना |

बोला- कैसे उठूँ |बिना एक्सीडेंट या पिटाई के मेरी तो कमर टूट गई |
हम दोनों को आश्चर्य हुआ |अच्छा भला, हट्टा-कट्टा आदमी; बाहर कोई चोट नहीं और कह रहा है कमर टूट गई |

हमने कहा- हमें तो कुछ समझ नहीं आया |साफ़-साफ़ बताओ |

बोला- मान गए तुम चाणक्य के वंशजों को ! कुछ करते हुए दिखे भी नहीं और तोड़ दी कमर |अब तो माफ़ करो |मैं तो तुम्हारे इस 'ऐप बैन' से ही बिलबिलाने लगा हूँ |जब-

वास्तव में आँखें लाल करोगे
तो पता नहीं क्या हाल करोगे ?

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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