Jul 16, 2020

बाह्य कुम्भक प्राणायाम



बाह्य कुम्भक प्राणायाम 


पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जोन्सन को हुआ फिर कनाडा के प्रधानमंत्री त्रूदो की बेगम को हुआ, अब ब्राजील, जिसे वे ब्रासीलिया कहते हैं, के राष्ट्रपति को हो गया |लोग कहते हैं कालों, गंजों, बूढ़ों,लापरवाह, तबलीगियों,  वेद विरोधियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों को कोरोना की संभावना अधिक रहती है लेकिन आस्थावान, धार्मिक, पक्के पंडित, वैदिक-ज्ञान-संपन्न, वास्तव में दवा-दारू वाले डॉक्टर, काले घने बालों वाले, गौरवर्ण और युवा संबित पात्रा तक को कोरोना हो गया |यह तो परिवार के स्वयंसेवकों की दुआ का परिणाम था जो शीघ्र हो ठीक हो गए |खैर, भगवान उन्हें देश को २२ वीं शताब्दी में ले जाने और अर्थव्यवस्था को पाँच ट्रिलियन डॉलर की बनाने के लिए शतायु करे |

ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो. (फोटो: रॉयटर्स)

ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो 

हम और तोताराम पेंशन का १०% पानी, साबुन और सेनेटाइज़र पर खर्च करने लगे हैं | इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए ५००/- रु. महिने का च्यवनप्राश खर्च और पाल लिया है | अब तोताराम के कहने पर रामदेव वाला काढ़ा और तेल भी ले आए हैं | कोई आता है तो कमरा बंद कर लेते हैं और अन्दर से ही कह देते हैं कोरोना के बाद आना | 

कल एक बहुत पुरानी और प्रतिष्ठित पत्रिका का मनीऑर्डर आया |मनीआर्डर आना ही उसके प्रतिष्ठित और प्राचीन होने का प्रमाण है |नहीं तो, कई अखबार कई-कई बार खाली चेक की फोटो और बैंक के डिटेल्स मंगवाकर भी या तो पैसे बैंक में ट्रांसफर करने में बरसों लगा देते हैं या फिर लेखक दुखी होकर बैठ जाता है |

तीन बार सेनेटाईज़र से 'अपवित्रोपवित्रो वा ...' करके पैसे लिए |फिर धूप में रख दिए तो आँधी में एक नोट उड़ गया |बड़ी मुश्किल से कूदकर मंडी में से कूड़े में से उठाकर लाये |तभी शायद नीतिकारों ने कहा है- 

पर् यो अपावन ठौर में कंचन ताजे न कोय |

कोरोना से सुरक्षा का यह अनुष्ठान इसलिए कि बचेंगे तो ही पेंशन पूरी मिलेगी नहीं तो एक तिहाई कम हो जाएगी | और २०२२ में यदि मोदी जी की कृपा हुई तो कोरोना के नाम पर बंद किए गए महँगाई भत्ते की किश्त भी ले लेंगे |किसी तरह हिम्मत बाँधे हुए हैं |

इस धर्म संकट के तोताराम ने हमारे भय को और बढ़ाते कहा- मास्टर, पहले तो किसी तरह मुँह पर गमछा लपेटकर हिम्मत बाँधे हुए थे लेकिन अब तो हाथ, नाक, कान से उछलकर यह ससुर कोरोना हवा में फ़ैल गया है |अब क्या साँस लेना बंद कर दें ?

हमने कहा- तो क्या अब तक तेरी साँस चल रही थी ?

बोला- साँस चले बिना क्या कोई जिंदा रह सकता हैं ? 

जानिये हर प्राणायाम को करने की विधि ... 
 

हमने कहा- हमें तो लगता है कई सालों से साँस बंद ही है |

बोला- राजनीतिज्ञों की तरह यह आड़ी-तिरछी और प्रतीकात्मक बात मत कर |साँस से मेरा मलतब केवल साँस है, और कुछ नहीं |अब हवा तो हवा है |कभी भी, किधर भी बह सकती है |साँस लेते भी डर लगता है, पता नहीं कब अमरीकी, ब्राजीली हवा इधर बह जाए और हमारी नाक में घुसकर बीमार कर डाले |और जहां वेंटीलेटर और जाँच भी नकली चल पड़े हों तो किस पर भरोसा करें |

हमने कहा- रामदेव जी ने खोज तो ली कोरोना की दवा | 

बोला- देश और वेद भक्ति के नाम पर च्यवनप्राश बेच लेना और बात है लेकिन जब दुनिया के प्रमाण-प्रयोग के आधार पर आना पड़ता है तब झूठी भावुकता काम नहीं आती |वैसे कोरोना-महाभारत को १८ दिनों की बजाय २१ दिनों में निबटा देने वाले मोदी जी अब १२१ दिन बाद भी राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी डालकर चुप हैं | इसलिए रामदेव वाला प्रयोग आजमाने की हिम्मत नहीं होती |हाँ, जब तक कोरोना न हो तब तक तो राष्ट्र और वेदभक्ति के नाम पर पाँच-चार सौ रुपए फूंके जा सकते हैं | 

हमने कहा- लेकिन यह हवा से फैलने वाला मामला भी तो वेद-विज्ञान वाली 'प्राणायाम पैथी' के पास ही है |पहले भी हमारे ऋषि हजारों साल की समाधि लगा सकते थे तो क्या हम साँस छोड़कर साल-दो साल का 'बाह्य कुम्भक प्राणायाम' नहीं कर सकते ? बाहर ही हवा बाहर |जब सब कुछ ठीक हो जाएगा तब फिर साँस अन्दर ले लेंगे |

तब तक विश्व में तेल गिरती कीमतों के बावजूद भारत में बढ़ती तेल की कीमतों के कारण और लॉक डाउन के कारण प्रदूषण भी कुछ कम हो जाएगा |



 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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