Dec 16, 2020

किछु कहिये, किछु सुनिए


किछु कहिये, किछु सुनिए 


आज तोताराम चुपचाप आकर बरामदे में बैठ गया. यह ठीक है कि हमारे साथ उसके संबंध नितांत अनौपचारिक हैं लेकिन इतने भी नहीं आजकल के पक्के मित्रों की तरह गाली-गलौज करे. कभी सुबह-शाम नमस्ते, प्रणाम कुछ नहीं करता. हम भी बुरा नहीं मानते. हम सब समझते हैं. 

वैसे मौन की भी एक भाषा होती ही है. जैसे कि चाहे गौ सेवकों द्वारा मोब लिंचिंग हो या 'गोली मारो सालों को' जैसा सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने वाला मन्त्र हो या किसी को वन्दे मातरम न कहने पर कब्रिस्तान भेजने जैसा प्रेम-सन्देश हो या पानी की बौछार सहकर और बेरिकेड और खंदक-खाइयां पार करके दिल्ली पहुंचे किसानों की समस्या हो मोदी जी मनमोहन जी से भी दो कदम आगे बढ़कर अपने मौन से ही उत्तर दे देते हैं. पता नहीं, वे वास्तव में कितना समझे हैं, समझते हैं या नहीं समझे; कुछ भी कह कर हम किसीको  उनकी संवेदनशीलता और समझ पर शंका का अवसर देकर अपने लिए आफत मोल नहीं लेना चाहते. ठीक भी है, हम कौन 'आई प्लस' सुरक्षा प्राप्त कंगना रानावत हैं.  

हमें मोदी और मनमोहन जी की तरह इस मौन की भाषा में संवाद करने का अभ्यास नहीं है सो अहंकार छोड़ अपनी ओर से ही शुरुआत की, कहा- क्या बात है ? क्या मौन  विरोध-प्रदर्शन के लिए आया हुआ है ? तुझे पता होना चाहिए कि संवाद ही लोकतंत्र का प्राण है. संसद के नए भवन का शिलान्यास करते हुए मोदी जी ने गुरु नानक को क्या खूब कोट किया है- 
जब लग दुनिया रहिये नानक 
किछु सुनिए , किछु कहिये.





बोला- कहना सरल है, आचरण बहुत कठिन है. कबीर कहते हैं- 

कथनी मीठी खांड सी करनी बिस की लोय
कथनी तज करनी करे तो बिस अमरित होय.

और तू कौन सा मोदी जी से कम है. उन्होंने किसानों के लिए अध्यादेश लाते समय किसी किसान से नहीं पूछा. यह कौनसा सर्जिकल स्ट्राइक की तरह अर्जेंट था. पूछ लेते, बात कर लेते और फिर यदि कोई ज़रूरी और देश हित की बात है तो बना लेते कानून. किसान भी तो इसी देश के नागरिक हैं. कोई दुश्मन थोड़े ही हैं. और दुश्मन से भी बात नहीं करोगे तो वह दुश्मन ही बना रहेगा. अरे, 'हंड्रेड ईयर्स वार' वाले फ़्रांस और इंग्लैण्ड दोस्त हो सकते हैं लेकिन अपने ही देश-भाइयों से बात करने का समय नहीं और अब भी कौन सुलह-संवाद का सन्देश दे रहे हैं. 

हमने कहा- लेकिन हमने ऐसा क्या कर दिया जो तू नाराज़ है ?

बोला- मैंने घर में घुसने से पहले सुन लिया, तू भाभी से कह रहा था कि आज से चाय में चीनी मत डाला कर. मेरी सहमति के बिना मेरे बारे में इतना बड़ा निर्णय ले लेना क्या छोटी बात है ? जब तक फीकी चाय के इस अध्यादेश को वापिस नहीं लिया जाएगा मैं इसी तरह बरामदे में सिर झुकाए बैठा रहूँगा.   

हमने पत्नी से कहा- हम तो सोचते थे कि अब चीनी बंद करने का टाइम आ गया लेकिन कोई बात नहीं डाल देना दो चम्मच, इस सत्याग्रही की चाय में. सरकार की तरह हमारे लिए यह कौन-सा नाक का सवाल है. 




 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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