Dec 9, 2020

चक्कर उर्फ़ लोकतंत्र की घूमर


चक्कर उर्फ़ लोकतंत्र की घूमर 



सच्चा और प्रतिबद्ध धावक अपनी खेल भावना के कारण जिस चोर को पकड़ने के लिए दौड़ता है उससे आगे निकल जाता है. जनता को कन्फ्यूज़ करने वाला सेवक जब अपने सेवा भाव से आत्मसात हो जाता है तो वह खुद ही कन्फ्यूज़ होकर पूरे देश-काल को कन्फ्यूज़ कर देता है. इतिहास में दुनिया के सभी समाजों और देशों में  ऐसे कन्फ्यूज़न-काल आते-जाते रहते हैं. आजकल दुनिया में ऐसा ही अष्टग्रही अभिजित योग चल रहा है. अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप और बेडेन में से रूस और चीन किसके पक्ष-विपक्ष में क्या भूमिका निभा रहे हैं यह चीन-रूस और बेडेन-ट्रंप किसी को भी नहीं मालूम. और तो और, अमरीका की जनता को भी नहीं मालूम कि पहले ट्रंप क्यों जीत गया और अब मोदी जी के 'अब की बार : ट्रंप सरकार' के नारे के बावजूद बेडेन कैसे जीत गए. शायद अगले चुनाव तक अमरीका की जनता यह समझ न पाए कि अमरीका का राष्ट्रपति कौन है- बेडेन या ट्रंप. 

ऐसे में यदि तोताराम हमसे पूछे तो हम क्या ज़वाब दें. वैसे जहां तक ज़वाब की बात है तो मोदी जी प्रश्न पूछने वालों को मुंह नहीं लगाते फिर भी यदि कभी रात में नींद खुल जाती होगी और सोचते होंगे तो वे भी समझ नहीं पाते होंगे कि 'नोट बंदी' क्यों की ? 

सो तोताराम ने पूछा- मास्टर, यह क्या चक्कर है ? 

हमने कहा- तोताराम, चक्कर ही एक ऐसी पहेली है जो किसी को समझ नहीं आती. हम पूरी तरह श्योर तो नहीं हैं फिर भी यदि किसी भगवान ने यह दुनिया, गृह-नक्षत्र बनाए हैं तो वह भी सोचता होगा कि यह क्या चक्कर है ? चन्द्रमा अपनी धुरी पर घूमता हुआ भी पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा है.  पृथ्वी अपने चारों ओर घूमते चाँद को साथ  लिए-लिए अपनी धुरी पर घूमती हुई सूरज के चारों और भी घूम रही है. यही हाल सूरज का है. वह भी अपने सौर-मंडल के साथ किसी और के चारों तरफ घूम रहा है. अंततः यह आकाश गंगा भी पता नहीं किसके चारों ओर घूम रही है ? और फिर चक्र तो एक ही है. वही रास्ता, वे ही स्टेशन. घूमने-घुमाने वाले सब बोर लेकिन सिलसिला बदस्तूर चालू है. 





बस, यह चक्र ही चक्कर है. कोई एक सिरा नहीं, कोई अंत नहीं. जैसे शून्य. शून्य बनाओ तो कुछ पता ही नहीं चलता. कहीं से शुरू और कहीं भी ख़त्म. फिर भी ख़त्म नहीं. यह कोई भारतीय लोकतंत्र थोड़े ही है जो एक सेवक से शुरू होकर एक सेवक पर ही समाप्त हो जाता है. यह तो लोकतंत्र की अनंत घूमर है. लोग घूम-घूमकर चक्कर खाकर गिरते हैं, नए लोग शामिल होते है. घूमर चलती रहती है. कभी नायिका घूँघट में होती है तो कभी घूमते-घूमते घूँघट उघड़ जाता है. नायिका फिर घूँघट कर लेती है. 

तोताराम हमारे चरणों में गिर पड़ा, बोला- आदरणीय, आपके इस घुमावदार शब्दों के घाघरे की घूमर में मेरा तो दिल-दिमाग सब घूम गए हैं. अब यह जीवनचक्र आपके चरणों में अपने अंत को प्राप्त हुआ चाहता है. 

हमने कहा- बंधु, हम भारत के आध्यात्मिक प्राणी हैं. हम पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. जैसे ही एक देह छूटी तत्काल दूसरी देह प्राप्त. और पुनः जीवन चक्र शुरू. अतः उठ और महानायक की तरह पुनः-पुनः 'अग्नि पथ.......अग्नि पथ....

बोला- लेकिन यह चक्राकार चक्कर ? 

हमने पूछा- कौन-सा चक्कर ? जन्म-मरण का, घूमर का, लोकतंत्र का, ट्रंप और बेडेन का, 

बोला- मेरा चक्कर इतना बड़ा नहीं है, मैं तो जानना चाहता हूँ कि पहले नोट बंदी, फिर तालाबंदी, फिर नज़रबंदी, और अब भारत-बंदी. आखिर किसे, क्या चाहिए ? 

हमने कहा- किसान इतना अनाज उपजाते हैं कि सरकार कितना ख़रीदे, कहाँ रखे. अब सरकार कहती है जहां चाहे बेचो, हमने तुमको मुक्त किया.  शास्त्री जी ने नारा दिया- जय जवान, जय किसान. फिर अटल जी जोड़ा 'जय विज्ञान' अब मोदी जी ने तुक मिलाई- 'जय अनुसन्धान' . अब इतने अनुसन्धान हो गए कि उत्पादन संभल ही नहीं रहा है. अब तो इसे बदलकर कर देना चाहिए-

जा किसान : छोड़ जान' . 

बोला- लेकिन किसान कोई यहीं थोड़े हैं, सारी दुनिया में किसान हैं. सभी उत्पादन करते हैं. उद्योग प्रधान देश भी अपने किसानों को सब्सीडी देकर अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कोई भी देश हथियार, मोबाइल और कम्प्यूटर तो नहीं खा सकता. और भारत तो वैसे भी कृषि प्रधान देश है. कोई भी सरकार सभी लोगों को नौकरी नहीं दे सकती. खेती में छोटे-बड़े सभी का गुज़ारा हो जाता है. भगवान राम तक के राज्य में क्या सबको नौकरी मिल जाती थी ? अब ये किसान दिल्ली आकर बैठे हैं. सब अपनी-अपनी पेले जा रहे हैं. बात होती है, गतिरोध होता है, वार्ता भंग होती है, फिर शुरू होती है. कभी बात बंद, कभी भारत बंद. यह क्या चक्कर है ?आखिर यह कृषि बिल है क्या ? 

हमने कहा- हमने तो पहले ही तुझे कह दिया था यह खुद दोनों फरीकों तक को समझ नहीं आता.

बोला- फिर भी तू मास्टर है, तू ही नहीं समझ-समझा सकता तो किसी से क्या उम्मीद करें 

हमने कहा- नए कृषि कानून में किसानों के लिए क्या-क्या अच्छी बातें हैं उन्हें समझने के लिए कपिल सिब्बल का ४ दिसंबर २०१२ का संसद में दिया भाषण सुन ले और इस बिल में किसानों के लिए क्या नुकसानदायक है इसे समझने के लिए उसी दिन कपिल सिब्बल को दिया गया अरुण जेटली का ज़वाब सुन ले.

बोला- यह क्या बात हुई ? बात आज की और ज़वाब भूतकाल में. २०१२ में तो कांग्रेस की सरकार थी और यह बिल अब लाई है भाजपा.  कांग्रेस का ज़वाब भाजपा का ज़वाब कैसे हो सकता है ? 

हमने कहा- यही तो लोकतंत्र की घूमर के चक्कर की विशेषता है. पलट-पलट कर वे ही मुद्दे और वे प्रश्न. कभी भाजपा की ओर से तो कभी कांग्रेस की ओर से. उत्तर किसी के पास नहीं है. सबको अपनी प्रशंसा करनी है और दूसरे की निंदा. काम वही करना है क्योंकि कोई भी वास्तव में खेती नहीं करता. सब खेत में से चोरी का अन्न खाने वाले चूहे हैं. 

और चूहे कहाँ रहते हैं ?

बोला- बिल में. 

हमने कहा- यही इस चक्कर का उत्तर है. अगर अब भी समझ नहीं आता तो बैठ, एक कविता सुनाते हैं.

बोला- क्षमा करें, अभी २९ नवम्बर को सुनी 'मन की बात'  का भावार्थ समझना ही शेष है.  




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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