Dec 7, 2020

उलटा जुआरी चौकीदार को डांटे


उलटा जुआरी चौकीदार को डांटे

जैसे ही तोताराम के हाथ में चाय का गिलास दिया तो बोला- क्या ज़माना आ गया है, उलटा जुआरी चौकीदार के डांटे. 

हमने कहा- लगता है आजकल तेरे जैसे हिंदी अध्यापक उत्तर प्रदेश में हिंदी पढ़ा रहे हैं जो वहाँ इस साल अंग्रेजी और गणित से भी अधिक बच्चे हिंदी में फेल हुए हैं. पता नहीं तू ने क्या पढ़ाया होगा बच्चों को चालीस साल ? इस मुहावरे को सुनकर तो सरकार को तेरी पेंशन बंद कर देनी चाहिए.

बोला- मुझे मुहावरे से ज्यादा सत्य की फ़िक्र है. हमारी सरकार का तो ध्येय वाक्य ही है- सत्यमेव जयते. मोदी जी ऐसे प्रतिबद्ध चिकित्सक हैं कि कोई मर्ज़ लेकर अस्पताल आए या नहीं लेकिन वे किसी को भी पकड़कर ज़बरदस्ती उसका ओपरेशन कर देते हैं. यदि व्यक्ति सावधान नहीं रहे तो दांत दर्द के मरीज के साथ आने वाले की ही दाढ़ निकला दें.   जब से चौकीदार बने हैं. किसी की हिम्मत नहीं कि इस देश की तरफ कोई आँख उठाकर भी देख सके. ऐसे भले चौकीदार को देशद्रोही राजनीतिक दल, विदेशी दुश्मन और हमारी उन्नति से जलने वाले विदेशियों के बहकाने पर ये जुआरी दिल्ली पर कब्ज़ा करने आ गए. अरे, जब जनता ने हमें सब कुछ कर सकने लायक बहुमत दिया है तो जो हम उचित समझते हैं कर रहे हैं. जब जनता तुम्हें बहुमत दे तो तुम भी कर लेना अपने मन की.

हमने कहा- तोताराम, मोदी जी प्रतिबद्ध सेवक हैं और ज़बरदस्ती सेवा भी कर रहे हैं और आगे भी हर हाल में सेवा करते ही रहेंगे लेकिन जो दिल्ली में आन्दोलन, धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं वे तो किसान हैं, जुआरी थोड़े ही हैं. 


 






बोला- तू ने पढ़ा नहीं, खेती को मानसून का जुआ कहा गया है और किसान कौन होता है. उस जुए को खेलने वाला. इन्हें तो जुआ खेलने के अपराध में जेल भेज देना चाहिए. चलो माफ़ भी कर दें लेकिन जुआ खेलेंगे खुद मगर उसमें कम से कम एक निश्चित कमाई ज़रूर होनी चाहिए. अब जुआ तो भाग्य की बात. हार जीत होती रहती है. जुआ खेला है तो भुगतो भी तुम खुद ही. कभी कोई दारू बनाने वाला, पीने वाला, फिल्म वाला, बिल्डर, मोबाईल वाला कभी समर्थन मूल्य के लिए नहीं आता. किसने कहा है खेती करो. कहते हैं सरकार ने उनसे बिना पूछे कानून बना दिए. और कोई पूछे, तुमने क्या सरकार से पूछकर खेती करना शुरू किया था ? 

हमने कहा- तोताराम, हमें लगता है यह सब नेहरू और इंदिरा की गलती है. जब देश आज़ाद हुआ था तब इतना अनाज पैदा ही नहीं होता था कि बेचने के लिए दर-दर भटकना पड़े. तब कभी किसी ने समर्थन मूल्य जैसी बात ही नहीं की. आन्दोलन की तो  बात ही दूर. उन्होंने सिंचाई के लिए बाँध, नहरें, खाद, कीटनाशक, उन्नत बीज आदि हजार खुराफातें करके किसानों को इतना अन्न उपजाने योग्य और समर्थ बना दिया कि ये ट्रेक्टरों, कारों में लद कर, छह महिने का राशन-पानी लेकर आ डटे हैं. ये तो भूखे मरते ही भले थे. जब इनको बाज़ार और बड़ी-बड़ी कंपनियों के हवाले कर दिया जाएगा तब नानी याद आ जाएगी.

बोला- मास्टर, तू वास्तव में जीनियस है. यह तर्क तो खुद मोदी जी के ध्यान में भी नहीं आया होगा. कहे तो बात करूं तुझे मंत्रीमंडल में शामिल करने के लिए. 

हमने कहा- हमसे बोले बिना रहा नहीं जाएगा तो मंत्रिमंडल कितने दिन टिक पाएंगे ? अच्छा है, यहीं बने रहें. जैसी भी है, इज्ज़त तो है बची हुई है. हाँ, यदि चाहे तो किसानों तक हमारी एक राय ज़रूर पहुंचा दे. शायद उन्हें समझ आ जाए.  सरकार और किसानों दोनों का भरम ढंका रह जाए. 

बोला- किसी ज़माने में अपने राजस्थान के भैंरोंसिंह शेखावत संकट मोचक हुआ करते थे, अब पीयूष गोयल हैं जिन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है. हो सकता है, तेरी राय से सरकार का संकट दूर हो जाए तो वह निश्चिन्त होकर मनमाना विकास कर सके. 

हमने कहा- किसानों से कह दे कि वे गेहूँ और चावल की खेती बंद कर दें तो सब्सीडी का चक्कर ही नहीं रहेगा. ये दोनों अनाज नेहरू-इंदिरा के षड्यंत्र के कारण ज़रूरत से ज्यादा हो गए हैं. सरकार के पास गोदामों में रखने के लिए जगह नहीं है. बेकार सड़ा-सड़ा फिंकवाना पड़ता है. यदि कभी ज़रूरत हुई तो दुनिया में अनाज की कमी है क्या ? मंगवा लेंगे. 

बोला- तो फिर किसान किसकी खेती करें ?

हमने कहा- कमल की खेती करें. उसके लिए किसी तैयारी की ज़रूरत नहीं है. देश में जगह-जगह, तरह-तरह का कीचड़ फैला हुआ है. बस, उसे सूखने मत दो तो कमल अपने आप ही खिलने लगेंगे. देश के जिन राज्यों में कमल की खेती होती है वहाँ से कोई विरोध, आन्दोलन नहीं. लोग मज़े से लव-जिहाद प्रतिषेध, मंदिर-मूर्ति निर्माण, दीप प्रज्ज्वलन प्रतियोगिता कर रहे हैं. अपराध, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी सब समाप्त.  कमल पर लक्ष्मी आ बैठेगी तो समृद्धि का कोई ओर-छोर नहीं रहेगा. 

बोला- लेकिन कमल भी कई तरह के होते हैं. किस रंग के कमल की खेती ठीक रहेगी ?

हमने कहा- देखो हरा रंग तो देशद्रोहियों का है, नीला नीचों का है, लाल रंग नक्सलियों का है, सफ़ेद कोई रंग होता नहीं. मेरे ख़याल से भगवा रंग के कमल की खेती ठीक रहेगी. 

बोला- लेकिन भगवा रंग का कमल तो आज तक देखा-सुना नहीं. 

हमने कहा- जब काला गुलाब विकसित किया जा सकता है तो भगवा कमल विकसित करना क्या मुश्किल है. आदमी लगा रहे तो समुद्र और आकाश, वनस्पति सभी को नीले और हरे से बदल कर भगवा किया जा सकता है. 

बोला- तो चलता हूँ. अब तो चाय दिल्ली से लौटकर ही पिऊंगा. 

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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