Dec 1, 2020

देव दिवाली की चकाचौंध

देव दिवाली की चकाचौंध 
 


आजकल हमारे यहाँ का शीतमान ५ डिग्री चल रहा है. शीतमान इसलिए कि ५ डिग्री में ताप कहाँ होता है ?  हमने कुछ तो अपनी उम्र और कुछ मोदी जी की नसीहत को ध्यान में रखते हुए घर से निकलना बंद कर रखा है. सर्दी का अतिरिक्त एहतियात बरतते हैं. क्या पता कब जुकाम की आड़ में कोरोना लपक ले. हालाँकि हम सीकर में रहते हैं.  हमारे लोक विशेषज्ञों ने बताया हुआ है- 

'सीयाळो सीकर भलो, ऊन्याळो अजमेर.' मतलब सर्दी सीकर की अच्छी और गरमी अजमेर की. कारण अजमेर में अनासागर के कारण गरमी अधिक नहीं होती और सीकर में दिन में बढ़िया धूप निकलती है तो ठण्ड ज्यादा परेशान नहीं करती.  

बड़े लोगों और यदि वे सेवक हों तो बात ही क्या, उनके लिए तो हर ऋतु सुहावनी होती है. हर मौसम मनमाना होता है और हमारे लिए हर मौसम बेगाना. बड़े-बड़े शेफ उन्हें बताते हैं कि किस ऋतु और मौसम में कौनसी डिश का आनंद लिया जा सकता है, किस मौसम में किस काट, रंग और डिजाइन का वस्त्र पहना जाना चाहिए. हमारे लिए तो वही भोजन श्रेष्ठ है जो समय पर मिल जाए और वे ही कपड़े सुन्दरतम हैं जो हमने बीस-पच्चीस बरस पहले सिलवाए थे. 

बड़े लोगों को संबंधित विशेषज्ञ बताते हैं कि इस मौसम में कहाँ का पर्यटन किया जाए. 

हम अपनी औकात के अनुसार आज कमरे में ही थे. पूर्व की तरफ की खिड़की से सुबह-सुबह की धूप आ चुकी थी. 

तोताराम भी कमरे में ही आ गया. बैठते ही बोला- भाई साहब, आप की आज्ञा हो तो खिड़की बंद कर दूँ ?

हमने कहा- कौन-सी हवा आ रही है जो खिड़की बंद कर दें. धूप का आनंद ले ले. 

बोला- सो तो ठीक है लेकिन धूप में आँखें चुंधिया रही हैं. 



हमने कहा- तू तो ऐसे कह रहा है जैसे बनारस की देव दिवाली देखकर कर आ रहा है. 

बोला- बनारस तो नहीं गया लेकिन टी वी पर ज़रूर देखी थी. क्या नज़ारा था ! लगता था जैसे आसमान की धरती पर उतर आया. 

हमने कहा- तब तो खिड़की बंद ही कर दे. बनारस की देव दिवाली की चमक देखकर अंधा नहीं हो गया यही गनीमत है. सुनते हैं इस दिन सभी देवता बनारस में इकट्ठे होते हैं. सो तेंतीस करोड़ देवताओं के तेज की चमक, मोदी जी के त्याग-तपस्या-देशप्रेम की सात्विक चमक, योगी जी का महंती तेज़ की चमक, देशी घी के १५ लाख दीयों की चमक. लगता है कई दिनों तक धूप का मोटे लेंस वाला चश्मा लगाना पड़ेगा. फिर भी ख़ुशी है कि तूने यह दृश्य देखा. अब तो तेरी स्वर्ग में सीट पक्की. 

वैसे एक बात समझ नहीं आई. पंद्रह दिन पहले दिवाली मनाई तो थी, छह लाख दीये जलाए तो थे. भारत में जन्म लेने वाला और वह भी हिन्दू के घर,  क्या देवता से कम होता है ?  ऐसे में यह देवताओं की दिवाली अलग से मनाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी ? 

बोला- इन दो पांच दिन से न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर पंजाब के किसानों का आन्दोलन जो चल रहा है. यदि गुरु नानक के प्रकाश-पर्व पर दीये जला दिए तो हो सकता है इससे आन्दोलन का जोर कुछ कम पड़ जाए.  

हमने कहा- तोताराम, ये टोटके कब तक चलेंगे. रोटी-पानी की जगह माला-आरती काम नहीं आते. झुनझुने से भूखे बच्चे को कब तक चुप कराओगे. एक फकीर और एक महंत- सदा दिवाली संत के आठों पहर आनंद.  लेकिन किसान को तो खेती का ही सहारा है. मन की बात और मोबाइल से चुनाव तो जीते जा सकते हैं लेकिन पेट नहीं भरता. 

बोला- फिर भी एक बात तो माननी पड़ेगी. मोदी जी हैं बड़े खुशमिजाज़ और सकारात्मक व्यक्ति. खुश होने, उत्सव मनाने का कोई न कोई अवसर निकाल ही लेते हैं. लोग तो राम के वन से लौटने वाली दिवाली पर छह लाख दीये देखकर खुश हो ही लिए थे. अब जैसे ही कोरोना का संक्रमण और किसान असंतोष बढ़ा तो मोदी जी की कृपा से फिर खुश होने का बहाना मिल गया. देव-दिवाली.

हमने कहा- देखते जाओ. जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है. न कोरोना का डर. न बेकारी की चिंता. हो सकता है देव दिवाली की तरह ब्राह्मण दिवाली, क्षत्रिय दिवाली, वैश्य दिवाली, हरिजन दिवाली, दलित दिवाली आदि-आदि करते-करते ३६५ दिन में ७१० दिवालियाँ हो जाएँगी. 

नो दिवाला, दिवाली ही दिवाली. 





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