Dec 19, 2020

किसानों से चर्चा


किसानों से चर्चा 


आज तोताराम बहुत व्यस्त नज़र आ रहा था. गली के मोड़ पर ही दिखाई दे गया.  गरदन को दाईं तरफ झुकाए हुए कान और कंधे के बीच मोबाइल को टिकाये हुए बतियाता हुआ चला आ रहा था.  वैसे मोदी जी के डिजिटल भारत में तो सुबह-सुबह दूधवाला तक दोनों तरफ दो दो ड्रम दूध के लटकाए हुए  चलती मोटर साइकल पर स्मार्ट फोन पर नंबर मिलाते हुए चैट करता दिख जाता है. 


नज़दीक आकर हमारी तरफ हाल-चाल पूछने के अंदाज़ में हाथ को कार के वाइपर की तरह दो बार इधर-उधर हिलाया.

हमने कहा- ठीक है. 

बोला- मोदी जी से बात करनी है है ?

हमने पूछा- तो क्या अभी मोदी जी को ही कोई मार्ग दर्शन दे रहा है ?

बोला- उसके लिए तो उन्होंने २०१४ में ही एक निर्देशक मंडल बना दिया था लेकिन वे खुद इतने सक्षम हैं कि मार्ग दर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी. वे अपना मार्ग खुद बनाते हैं जो इतना नया होता है कि किसी 'चाणक्य के बाप' को भी पता नहीं होता कि यह मार्ग कहाँ जा रहा है ? इसलिए निर्देशक मंडल वाले किसी पद्म पुरस्कार की प्रतीक्षा में उबासियाँ ले रहे हैं. 

अभी तो मैं रवि शंकर प्रसाद जी से बात कर रहा था. 

हमने कहा- वे तो भोलेभाले किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने वाले देशद्रोहियों को दहाड़-दहाड़ कर चुनौती दे रहे हैं. उन्हें तेरे फोन का उत्तर देने के लिए समय कहाँ से मिल गया 

बोला- आजकल उन्हें किसानों को ओपन मार्किट की टेकनोलोजी समझाने और उसके अनुसार उन्हें अधिक से अधिक लाभ दिलाने का काम भी तो मिला हुआ है. सुना नहीं, कल ही उन्होंने पटना के एक किसान की गोभी दस गुना दामों में बिकवा दी. तो मैंने सोचा क्यों न मेरे यहाँ लगी दस-बीस मूलियाँ उनके थ्रू अमरीका में बेच कर कुछ डालर ही कमा  लूँ. 

हमने कहा- लेकिन तू जो मोदी जी से हमारी बात करवा रहा था उसका क्या हुआ ?






बोला- वैसे जहां मोदी जी से बात की बात है तो उनसे बात होती ही रहती है. पहले तो उन्हें अपने  'मन की बात' सुनाने से ही फुर्सत नहीं मिलती थी लेकिन अब उनसे ठण्ड में दिल्ली के बोर्डर पर कष्ट उठा रहे किसानों का दर्द देखा नहीं जाता. इसलिए वे लगातार किसानों से बात कर रहे हैं.  ११ दिसंबर को मन की बात में महाराष्ट्र और राजस्थान के दो किसानों से बात की, १५ दिसंबर को गुजरात में कच्छ के किसानों से चर्चा की और आज मध्य प्रदेश के किसानों से, कोरोना काल में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, वर्चुअल मीटिंग कर रहे हैं .

हमने कहा- तो फिर अपने दरवाजे पर आए हुए पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के किसानों से बात क्यों नहीं कर लेते. वहाँ तो घूमते-घामते ही जा सकते हैं. यदि उनके लिए संभव नहीं है तो ज़रा पुलिस को अश्रु गैस, पानी की बौछार बंद करने को कह दें तो किसान अपने कल्याण के लिए खुद 'लोक कल्याण मार्ग' तक चलकर आ जाएंगे. राम मंदिर का शिला पूजन, बिहार में रैलियाँ और अब सेंट्रल विष्ठा परियोजना का शिलान्यास करने भी तो गए ही थे. किसानों से मिलने में कोई खतरा तो नहीं होना चाहिए. 

बोला- वे किसानों के हित चिन्तक है. उनका उद्धार करने की योजना बचपन से ही उनके दिल में थी. इसलिए उस चिरप्रतीक्षित किसान कल्याण योजना के तीन कानूनों को तो छोड़ नहीं सकते. इसलिए जब तक ये आतंकवादियों, अर्बन नक्सलियों और देशद्रोहियों द्वारा बहकाए गए किसान बात समझ नहीं जाते तब तक वे देश के अन्य किसानों को समझाने के बहाने इन किसानों को समझाते रहेंगे. ज़रूरत पड़ी तो भाजपा शासित राज्यों के किसानों को ही नहीं, ह्यूस्टन में जहां उनका 'हाउ डी मोदी' कार्यक्रम हुआ था वहाँ के किसानों को भी अपने तीनों किसान कल्याणअध्यादेशों के बारे में समझाते रहेंगे. 

हमने कहा- तोताराम, वास्तव में दूसरों का हित साधने वाले ऐसे दृढ संकल्पित लोगों से पीछा छुड़ाना कोई आसान काम नहीं है. सेवा करने वाला बहुत बुरा होता है. भले ही सेवा करवाते-करवाते  'सेव्य' (जिसकी सेवा की जाती है ) मर ही क्यों न जाए. लेकिन हम तो किसान नहीं हैं. हम उनसे क्या बात करेंगे ? 

बोला- है क्यों नहीं. क्या तू शारदीय और चैत्र नवरात्र में झावली में गेहूँ के झवारे उगाता है या नहीं ?   इनमें भी तो अधिकतर गेहूँ उगाने वाले किसान ही तो हैं. गेहूँ पर ही तो सबसे ज्यादा सबसीडी खर्च होती है. वही तो सबसे ज्यादा खाया जाता है. वही तो सरकारी गोदामों में सबसे ज्यादा सड़ाया जाता है.  कहे तो तुझसे किसी 'अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण किसान सभा' के दुर्गादास कॉलोनी, सीकर अध्यक्ष के नाते बात करवा दें.

हमने कहा- लेकिन हम तो किसी ऐसी संस्था से पदाधिकारी नहीं हैं.

बोला- बात तो कर ले. संस्था का क्या है बनती रहेगी. अभी किसान कल्याण अध्यादेशों को किसान-हितैषी समझने वाली जिन दस किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों से केंद्रीय कृषि मंत्री से बात की है वे भी तो कल ही बनी हैं. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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