Dec 30, 2020


खूबसूरती की कद्र 


हे अमरीका के लोकतंत्र द्वारा सताए गए, गलत तरीके से हराए गए, तथाकथित झूठे बताए गए, अब भी खुद को अमरीका का राष्ट्रपति मानने वाले, रसिक और साहसी ट्रंप जी,

नमस्ते. हैप्पी न्यू ईयर भी.

चूंकि पत्र आपको लिख रहे हैं, न कि आपके अनुसार अमरीका की सबसे खूबसूरत 'राष्ट्रपत्नी' अर्थात फर्स्ट लेडी ५५ वर्ष की आयु में भी कहर ढाती मेलानिया को, इसलिए आप उन्हें भी हमारी तरफ से नये वर्ष की शुभकामनाएं दे दें. हमें उनसे सहानुभूति है कि उन्हें आपके राष्ट्रपति रहते हुए किसी बड़ी मैगज़ीन ने अपने कवर पेज पर स्थान नहीं दिया और आपको वहाँ की लोकतांत्रिक संस्थाओं ने जीतने के बाद भी वाइट हाउस से विदा करवाने का एहसानफ़रामोशी वाला काम किया है, आपको देश का हित करने मतलब अमरीका को ग्रेट बनाने से ज़बरदस्ती रोक दिया, तो खुद भुगतेगी. 

हमारे यहाँ तो 'सरपंच पति' या 'सरपंच पत्नी' का भी उतना ही पॉवर होता है जितना उसके अर्द्धांग का. लालू जी जितना साहस दिखाते तो मेलानिया को ही राष्ट्रपति बना सकते थे. एक बार तो धमाका किया ही जा सकता था. फिर की फिर देखी जाती.  

यदि हमारे यहाँ होते तो आप जैसे दृढ़ संकल्पित जन हितैषी को जनता का हित करने से कोई नहीं रोक सकता था. अब देखिये ना, हमारे यहाँ सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में तीन कानून बनाकर ज़बरदस्ती हित किये जाने से दुःखी किसान देश के कई भागों से आकर इस ठण्ड में दिल्ली की सीमाओं पर पड़े हैं लेकिन सरकार उनका हित करने से बाज़ नहीं आ रही है. आपको भी ऐसा ही कोई जनहित का कदम उठा लेना चाहिए था. लेकिन क्या करें आप जैसे दयालु और लोकतांत्रिक व्यक्ति से ऐसा होना संभव नहीं था.  





हीरे की परख जौहरी ही जानता है. अमरीका के टटपूंजिए पत्रकार क्या जानेंगे ! हमारे यहाँ होते तो बड़े-बड़े मीडिया वाले मेलानिया से उनके पिज़्ज़ा खाने की तकनीक जैसे जाने किस-किस गंभीर विषय पर चर्चा कर सकते थे, उनका फोटो अपने अखबारों और पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर छापकर धन्य हो जाते. हमारे यहाँ तो अब भी मलाइका अरोड़ा बड़े-बड़े अखबारों के पाठकों को मास्क पहनने का सही तरीका सिखाती है. सत्तर वर्ष की हेमामालिनी 'स्वप्नसुंदरी' सिद्ध की जाती है. मेलानिया और आप भारत की नागरिकता ले लें. हमारे यहाँ केवल पड़ोसी देशों से आए मुसलमानों को नागरिकता और शरण देने में थोड़ा लोचा है. फिलहाल ईसाइयों को नागरिकता देने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. और फिर आप तो हमारे मोदी जी द्वारा सार्वजनिक रूप से घोषित मित्र हैं. कोरोना काल में भी अहमदाबाद में सौ-डेढ़ सौ करोड़ खर्च करके सम्मानित किये गए 'नमस्ते ट्रंप'  वाले परम प्रिय मित्र हैं. 


आप चाहें तो मेलानिया सहित क्या, अपनी दोनों पूर्व पत्नियों, बेटियों, दामादों और सम्पूर्ण परिवार सहित भाजपा में शामिल हो सकते हैं. आजकल हमारे यहाँ किसी को किसी भी पार्टी में शामल करने का 'आत्मा की आवाज़' और 'घर वापसी' का कायक्रम चल रहा है.  बस, इस बात का ध्यान रहिएगा कि यहाँ आकर किसी हिन्दू लड़की की ओर आकर्षित होकर उसे पटा मत लेना. वैसे हमारे यहाँ इस 'लव जिहाद' के लिए दस साल की सजा से लेकर मोब लिंचिंग तक की कठोर सजा का प्रावधान है लेकिन वह विशेषरूप से मुसलमानों के लिए है. कोई हिन्दू लड़का किसी मुसलमान लड़की से शादी कर ले तो नहीं. फिर भी कोई ईसाई हिन्दू लड़की से शादी करे इसे भी हमारी सरकार स्वीकार नहीं करेगी, भले ही फिलहाल कोई सजा न दे. यह हम इसलिए कहते हैं कि हम आपकी सौन्दर्य-प्रियता  को जानते हैं. तीन सुंदरियों को उलझा लेने के बाद भी आपके बारे में कई ऐसी-वैसी बातें सुनने में आती रही हैं.  


मेलानिया यदि यहाँ भगवा कपड़े पहन लें, तिलक लगाने लगें, राम नामी दुपट्टा डाल लें तो साध्वी मेलानिया कहलाने लगेंगी और कहीं से भी चुनाव जीत सकेंगी क्योंकि इस समय आपके मित्र की पार्टी कहीं से भी धडाधड चुनाव जीत रही है. मंत्रीमंडल में जगह भी पा ही जाएंगी. फिर तो रोज मुखपृष्ठ पर छपेंगी. हमारे यहाँ तो यदि वे रेडियो या टीवी पर अपना 'मन की बात' सुनते हुए फोटो खिंचवा लेंगी तो भी मुखपृष्ठ पर जगह मिल जाएगी.

और फिर आपके कार्यकाल में मेलानिया का फोटो टाइम मैगजीन के मुख पृष्ठ पर न छप पाने से दुखी न हों. टाइम मैगजीन कौन बड़ी बात है. उस पर तो हमारे यहाँ की परवीन बोबी, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा आदि कई छप चुकी हैं. और तो और मलाला और ग्रेटा जैसी बच्चियां भी. और अब तो भारत मूल की एक पंद्रह वर्ष की लड़की गीतांजलि राव भी 'टाइम' के कवर पेज पर आ गई. भारत मूल की ही कमला व्हाईट हाउस  में घुसने से पहले ही 'टाइम' मैगजीन के कवर पर आ गई . 'टाइम' न हुआ तमाशा हो गया. ऐसी मैगजीन के कवर पर छपना कौन बड़ी बात रहा गई है. छोड़िये टेंशन लेना. हमारे मोदी जी की तरह मस्त रहिये. भले ही किसान दिल्ली के बाहर ठण्ड में  ट्रेक्टर ट्रोलियों के नीचे पड़े हैं लेकिन वे अपने मन की बात और मन की करने में मुग्ध हैं.  कोई स्टैण्डर्ड है टाइम मैगजीन का ? गाँधी, नेहरू, सचिन जाने कौन कौन छप चुके हैं. 


लगता है आपको विशेष कष्ट इस बात से भी है कि वह काली मिशेल कई बार, कई मैगजीनों के कवर पर छप चुकी है. हमारे हिसाब से तो कोई फर्क नहीं पड़ता. हाँ, बराबरी वालों के मामले में थोड़ी हेठी ज़रूर होती है.  मिशेल, ओपरा विनफ्रे की तस्वीरें कौन संजो कर रखता है लेकिन मर्लिन मुनरो और मेलानिया की तस्वीरें तो लोग अपने दिल में संजो कर रखते हैं.  वैसे मज़े की बात देखिये कि मर्लिन मुनरो, मिशेल और मेलानिया की राशि एक ही है. 

आपने अपनी अहमदाबाद यात्रा के दौरान हिंदी के कई शब्दों का उच्चारण करके हिंदी की जो सेवा की है उससे यहाँ के हिंदी सेवी बहुत धन्य हुए पड़े हैं. मेलानिया भी 'नमस्ते' बोल ही लेती हैं. अभी ९-१० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस आ रहा है, कहें तो हमारे यहाँ की किसी हिंदी सेवी संस्था द्वारा आप दोनों को 'विश्व हिंदी रत्न' का सम्मान दिलवा दें. आजकल तो सारे काम 'वेबीनार'  से हो रहे हैं. मंच शामियाने लाइट का कोई खर्च नहीं. आप दोनों के  शाल और श्री फल जब कभी यहाँ पधारेंगे तो ले लीजिएगा. 

मेलानिया को तो खैर किसी बड़ी मैगजीन ने अपने कवर पर नहीं छापा लेकिन आपके साथ तो अमरीका की जनता ही नहीं, नोबल कमिटी वालों ने भी बड़ा अन्याय किया है. न सही उत्तरी कोरिया से बात करने पर शांति का नोबल लेकिन कोरोना के लिए लाइजोल और डिटोल जैसी अचूक दवाओं की उपयोगिता बताने के लिए मेडिसिन का नोबल तो दिया ही जा सकता था. 


अब जनवरी २०२१ में शांतिपूर्वक व्हाईट हाउस छोड़ देने पर, यदि आप छोड़ देंगे तब, तो कोई न कोई पुरस्कार बनता ही है. 


कहीं कोई कम्यूनिस्ट आपको और पाठकों को आन्दोलनकारी भारतीय किसानों की तरह  खूबसूरती के मामले में भ्रमित न कर दे इसलिए हम यहाँ अमरीका की दो फर्स्ट लेडीज़  फ्रांसेस फाल्सम क्लीवलैंड और जैकलीन केनेडी के  फोटो देखने की सलाह देना चाहते हैं.देखें..   

आपका 

रमेश जोशी 

 

  


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