Nov 4, 2010

श्रम और संबंधों की आराधना का रामराज्य : दीपावली



दुनिया की सभी प्राचीन सभ्यताएँ प्रकृति के सान्निध्य में कृषि-जीवन से उपजी हैं । उनके सभी उत्सव भी उसी से जुड़े हुए हैं । यूँ तो होली भी फसल के समय ही आती है । संसार के सभी स्थानों में एकाधिक फसलें नहीं होतीं किन्तु दीपावली पर घर आने वाली फसलें तो संसार के सभी भागों में होती हैं इसलिए विभिन्न नामों से सर्वत्र ही यह श्रम-सिद्धि के उत्सवों का समय है ।

समस्त भारत में दीपावली श्रम और संबंधों की आराधना का एक उत्सव-संकुल है जिसमें अर्जन और विसर्जन का एक अद्भुत अध्यात्मिक समन्वय है । दुर्गापूजा, दशहरा, धनतेरस, नर्क-चतुर्दशी, रूप-चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन-पूजा, अन्नकूट, भैया-दूज, यम-द्वितीया और सूर्य-षष्ठी इस शृंखला के प्रमुख पर्व हैं । और इन सबसे ऊपर है भगवान राम का चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटना और रामराज्य की स्थापना । यह रामराज्य ही भारत की चिन्तना का चरमोत्कर्ष है ।



इस उत्सव-शृंखला के सभी दिनों में निहित श्रम और संबंधों पर विचार करें तो दुर्गा-पूजा, जिसका सन्देश है कि बहुत बड़ी नकारात्मक शक्ति का विनाश सब के सामूहिक प्रयत्न के बिना नहीं हो सकता । इसी सामूहिक शक्ति से उपजती है दुर्गा । 

दशहरे पर रावण-वध, केवल भोग पर आधारित सभ्यता के अपने की दुष्कर्मों से नष्ट हो जाने का एक आँख खोल देने वाला आख्यान है । 

समाज के ईमानदार श्रम का पुण्य-फल है धनतेरस पर घर आई फसल । तभी 'कराग्रे वसते लक्ष्मी' माना गया है और राजस्थानी में मेहनत की कमाई को 'दशों नाखूनों की कमाई' कहा गया है । श्रम करने वाले को ही अपने श्रम के पुरस्कार स्वरूप रूप सँवारने का अधिकार है मगर इसके साथ ही कैसा कटु सत्य भी जोड़ दिया गया है कि नर्क चतुर्दशी भी आज ही है । इसप्रकार श्रमसाध्य भोग को भी जीवन का अंतिम सत्य नहीं बनने दिया । फिर दिवाली । 


अंदर-बाहर के तम को मिटा कर ही रामराज्य आता है । अगले दिन मानव समृद्धि की आधार गौवंश की पूजा- मानवेतर प्राणियों तक के प्रति कृतज्ञता का पर्व । और साथ ही अन्नकूट भी- समृद्धि में सब की साझेदारी की स्वीकृति । मंदिरों में नई फसल के अन्न से बना प्रसाद 'अन्नकूट' बँटता है और प्रतीकात्मक रूप से उस प्रसाद की लूट भी होती है- 'समान वितरण का दर्शन' । भैया-दूज और यम द्वितीया भी- सहोदरी संबंधो से लेकर मृत्यु के देवता तक से नाता जोड़ने का दिन । और फिर समस्त सृष्टि के आधार सगुण, साक्षात् देव सूर्य की आराधना । इस सन्दर्भ में यह भी याद कर लें कि क्या हमने कभी सुबह उठकर सूर्य के दर्शन करने, उसके प्रति कृतज्ञता और पूजा निवेदित करने की सोची है ? यदि नहीं, तो फिर इस पर्व को कैसे आत्मसात कर सकेंगे ?



अब देखें कि कैसे ये सब रामराज्य में समाहित हैं । राम वन गमन से लेकर अयोध्या लौटने तक, अकेले न तो सेतुबंध का निर्माण करते हैं और न ही अकेले रावण को मारते हैं । इसमें गिलहरी से गीधराज तक, शबरी से शिव तक, निषाद से नल-नील तक समाज के सभी वर्गों का सहयोग लेते हैं । वे वशिष्ठ जी को कहते भी हैं कि ये सब उस संकट-सागर मेरे लिए बेड़े के समान थे । विभीषण पर रावण द्वारा छोड़ी गई शक्ति को वे अपने ऊपर ले लेते हैं । लक्ष्मण-मूर्छा के समय वे कहते हैं कि अब विभीषण को दिए गए वचन का क्या होगा ? वन-गमन के समय सरयू पार करते समय उन्हें केवट को कुछ भी न दे पाने पर संकोच होता है । घर में अनेक सेवकों के होते हुए भी सीता घर के काम स्वयं करती हैं । वन से लौट कर सबसे पहले कैकेयी के आवास पर जाते हैं । वनवास से आकर वे भरत की जटाएँ खुद अपने हाथ के खोलकर धोते हैं । अंगद को अयोध्या से जाते समय वे अपने गले की माला निकाल कर पहनाते हैं । संबंधों की इतनी सूक्ष्म समझ ।

राम के राज्य में सब अपने -अपने धर्म का निर्वाह करते हैं । यहाँ तक कि पनघट पर पुरुष स्नान भी नहीं करते । राम जब 'उत्तरकांड' में अपनी प्रजा से बातें करते समय वे कहते हैं-

जो अनीति कछु भाखौं भाई । तो मोहू बरजहु भयय बिसराई ।।

मतलब कि सबकी सच्ची सहमति । राजा का कोई आतंक नहीं ।

अंत में वे तुलसी के शब्दों में रामराज्य का सार इस प्रकार माना जा सकता है-
राज नीति बिनु, धन बिनु धरमा । प्रभुहि समरपे बिनु सतकरमा ।।

इस प्रकार नीति बिना चलने वाले राज्य, बिना धर्माचरण के प्राप्त किए किए गए धन और सर्वहिताय समर्पित कर्मों के बिना न तो सच्ची दिवाली हो सकती है और न ही हमारे आदर्शों के रामराज्य की स्थापना ।


सच्ची लक्ष्मी की आराधना के लिए दिवाली का प्रकाश हमें यही चेतना और मार्ग दर्शन प्रदान करे ।


३-११-२०१०पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

3 comments:

  1. सुन्दर रचना है!
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    प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
    आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
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    आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

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  2. सार्थक आलेख। आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।।

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  3. और नासमझ बनने का ्दिखावा करने वाले इन्हें गालियां देते हैं.

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