मनमोहन जी भाई साहब,
सत् श्री अकाल । यह ‘भाई साहब’ संबोधन आर.एस.एस. वाला नहीं है यह तो अपने डिपार्टमेंट वाला है क्योंकि आप भी मास्टर रहे और हमने भी जीवन भर राष्ट्र निर्माण ही किया । हुआ या नहीं या कितना हुआ यह तो भगवान जाने पर हमने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी । साठ के होते ही छुट्टी हो गई मगर तभी ऊपर स्वर्ग में सीट का निर्माण करने में जुट गए । कितना क्या हो पाएगा यह तो वहाँ जाकर पता चलेगा । आपको तो नौकरी से छुट्टी मिलते ही नरसिंह राव साहब ने पकड़ लिया और जोत दिया राष्ट्र निर्माण में । अच्छा भला अमरीका की तरह भारत का निर्माण करने में लगे हुए थे कि अब ये बी.जे.पी. वाले आपकी परीक्षा लेने पर उतर आए लेकिन अपने वाले बच्चे को नहीं देखते जो नक़ल करते पकड़ा गया । और परीक्षा भी ऐसी वैसी नहीं, हाईस्कूल वाली । आजकल इसे सेकेंडरी स्कूल परीक्षा कहते हैं । अपने जमाने में इसी को मेट्रिक भी कहा जाता था । तब यह बहुत बड़ी चीज हुआ करती थी । उस ज़माने में कहते हैं कि आठवीं पास भी मास्टर और यहाँ तक कि तहसीलदार बन जाया करता था । आजकल तो चपरासी बनने के लिए भी कम से कम दसवीं पास चाहिए । तभी दसवीं पास की कद्र भी चपरासी जितनी ही रह गई है ।
वैसे तो अध्यापन आपने भी किया है इसलिए परीक्षा पास करने के गुर जानते ही होंगे । पर बात यह है कि आपने कालेजों में पढ़ाया है और हमने स्कूल मास्टरी में ही जिंदगी गुजारी है सो जब २१ नवंबर के अखबार में पढ़ा कि आपको लग रहा है कि आप दसवीं की तरह एक के बाद एक टेस्ट दे रहे हैं तो सोचा कि क्यों न आपकी कुछ मदद की जाए । लोग तो तमाशा देख रहे हैं पर जो संकट के समय मदद करे वही सच्चा मित्र होता है-
धीरज, धरम, मित्र अरु नारी । आपत काल परखिए चारी । ।
तो एक सच्चे मित्र और शुभचिंतक की तरह से आपको सलाह दे रहे हैं । आशा है कुछ काम आएँगी ।
वैसे कई चीजें जो जवानी में इतना तकलीफ नहीं देतीं जितनी बुढ़ापे में, जैसे कि शादी, संतान, इश्क, परीक्षा आदि । अब सलमान रुश्दी को ही देख लीजिए, उमर साठ से ऊपर है मगर इश्क फरमाने से बाज़ नहीं आते । जवान और चालू औरतें आती हैं और उल्लू बनाकर खिसक लेती हैं । बुढ़ापे की औलाद ज्यादा लाड़-प्यार के कारण बिगड़ जाती है और बड़ी होकर बहुत दुःख देती है । वैसे आजकल तो छोटे बच्चों को भी कूट-पीट कर सुधारने का अधिकार नहीं रहा फिर जवान बेटा आप पर ही हाथ छोड़ दे तो क्या कर लेंगे । बुढ़ापे में शादी करने पर जवान पड़ोसियों का आना-जाना बढ़ जाता है और कहीं जाओ तो पीछे से चिंता लगी रहती है कि पता नहीं नई बीवी क्या गुल खिला रही होगी । बुढ़ापे की बीवी की फरमाइशें भी ज्यादा होती हैं । खुद को जवान दिखाने के लिए रोज़ बाल रँगने पड़ते हैं और अकड़ कर भी चलना पड़ता है जिससे कमर में दर्द होने लग जाता है । और बुढ़ापे में परीक्षा देना भी कम कष्ट का काम नहीं है ।
आपने तो लगातार ही सारी पढ़ाई और परीक्षाएँ निबटा दीं । हम तो बारहवीं पास करते ही मास्टर बन गए थे और फिर बी.ए., एम.ए. और बी.एड. सभी नौकरी करते हुए पास कीं । बी.ए. और एम.ए. तो खैर सत्ताईस बरस की उम्र तक निबटा दीं मगर बी.एड. काफी देर से की । हम जानते हैं कि कैसे, क्या नैया पार लगी । वैसे याद तो सब कर लेते थे मगर चूँकि लिखने का अभ्यास छूट गया था सो लगता था कि पेपर पूरा ही नहीं कर पाएँगे तीन घंटे में । अब आपको सतत्तर साल की उम्र में हाई स्कूल की परीक्षा देनी पड़ रही है । बात तो चिंता की है । एम.ए. में तो एक ही सब्जेक्ट होता है पर हाई स्कूल अर्थात मेट्रिक में तो पाँच-सात सब्जेक्ट होते हैं । इसीलिए पुराने लोग मेट्रिक को बहुत बड़ी चीज मानते थे । हमसे मास्टर बनने के बाद एक बार एक बुजुर्ग ने पूछा- कहाँ तक पढाई की रे छोरे ? हमने कहा- ताऊ. एम.ए. कर ली है । तो कहने लगे- ठीक है बेटा, अब हिम्मत करके मेट्रिक भी कर ले तो और भी अच्छी नौकरी मिल जाएगी । एक ही वाक्य में उन्होंने हमारी मेरिट से पास की एम.ए. की ऐसी-तैसी कर दी । अब कहाँ तो आपकी हार्वड या ओक्सफोर्ड की एम.ए. और डी.लिट. और कहाँ अब विपक्ष के चक्कर में मेट्रिक की परीक्षा ।
वैसे अब भी आपको कोई न कोई यूनिवर्सिटी पी.एच.डी. दे सकती है मगर ये उससे संतुष्ट होने वाले नहीं हैं । लाने को तो नकली सर्टिफिकेट भी लाया जा सकता है मगर ये स्विस बैंक की सूचना कबाड़ने वाले 'स्वामी' उस नकली सर्टिफिकेट का भी भंडा-फोड़ कर सकते हैं । एक ओपन स्कूल जैसी भी चीज आजकल चल निकली है जिसमें सुनते हैं बहुत नक़ल चलती है और परीक्षा में सारे सब्जेक्ट एक साथ पास होने का झंझट भी नहीं है । एक साल में एक सब्जेक्ट पास कर लो, वह आपका जमा हो जाएगा । इस तरह आप पाँच साल में भी मेट्रिक कर सकते हैं मगर विपक्ष वालों को तो इतना धैर्य नहीं है । वे तो अभी सर्टिफिकेट देखना चाहते हैं । इससे पहले भी हर साल रिपोर्ट कार्ड देखा करते थे ।
अपने जमाने में तो मास्टर लोग कुंजी लाने से मना करते थे मगर आजकल कई तरह की कुंजियाँ बाज़ार में आ गई हैं । मास्टर लोग खुद ही कुंजी से पढ़ाते हैं और कमीशन देने वाले प्रकाशक की कुंजी खुद बच्चों को रेफर करते हैं । कई तरह की पास बुक्स भी आजकल बाजार में आती हैं- ट्वंटी फोर आवर सीरीज, वन वीक सीरीज, स्योर शोट आदि । कई तरह के गेस पेपर भी आते हैं जिन्हें पेपर सेट करने वालों द्वारा छद्म नामों से छापा जाता है । कई स्कूल तो पास करवाने की गारंटी भी देते हैं । हम यह सब आप की काबिलियत पर शंका के कारण नहीं बल्कि शक्ति और समय बचाने की दृष्टि से कह रहे हैं । अब आपके पास इतना समय कहाँ ? देश का विकास करें कि पढाई करें या बुढ़ापे में इन बदमाश बच्चों को सँभालें । अब बच्चे तो बच्चे ही हैं ना ? सब्जी लाने के लिए पैसे दो और ये उसी पैसे में से चाकलेट खा जाएँ । ज्यादा बड़े हों तो सिनेमा देखने चले जाएँ या बीयर में ही सब्जी के पैसे लुटा आएँ । अब बाप घर सँभाले या बच्चों के पीछे घूमता रहे । एक बार जब हम बच्चे थे तो एक खेत में घुस कर चार काचर (ककड़ी) तोड़ लिए । चार थे हम लोग सो हमें तो उन चार काचरों में से एक ही हाथ लगा पर जब शिकायत पिताजी के पास पहुँची तो हमारी पिटाई पूरे चार काचरों जितनी हुई । अब एक नादान बच्चे ने १ लाख ७६ हजार करोड़ के दस काचर तोड़ लिए । शिकायत आपके पास है । अब आप भी क्या करें ? बच्चे ने दस काचर तोड़े मगर उसके हाथ तो केवल दस परसेंट ही लगे बाकी नब्बे परसेंट तो औरों ने ही खा लिए । अब आप बच्चे को उलटा भी लटका दें तो एक काचर से ज्यादा निकलने वाला नहीं । और वह भी पेट में से निकला काचर किस काम का बचा होगा ?
वैसे जहाँ तक परीक्षा की बात है तो उसमें अध्यापकों की कृपा भी बहुत काम आती है । विद्यार्थी को, कुछ भी न जानते हुए भी वे प्रेक्टिकल में पूरे नंबर दिलवा सकते हैं । और परीक्षा में भी नक़ल में मदद कर सकते हैं । आजकल मास्टर इस कृपा के बदले में ट्यूशन पढ़ने वालों को विशेष महत्व देते हैं । यदि सारे साल ट्यूशन न पढ़ सको तो मय ब्याज के पूरे साल की ट्यूशन फीस एक साथ दे दो तो भी मान जाते हैं । गुरु जी फीस न दे सकने वाले कुछ गरीब किन्तु घनघोर सेवाभावी शिष्यों पर भी अपनी कृपा दृष्टि रखते हैं ।
कुछ भी हो, आप पर तो टीचर मेडम की कृपा दृष्टि है ही सो नैया पार लग ही जाएगी । जल्दी से मेट्रिक पास करके इन विपक्षियों का मुँह बंद कर ही दीजिए ।
२३-११-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
मास्टर जी पर प्रिंसिपल-कम(अंग्रेजी वाला)-मैनेजर-कम(वही)-मालिक की नजर-ए-इनायत है. जो भी परीक्षा होगी निकल ही जायेगी फर्स्ट क्लास फर्स्ट...
ReplyDeleteसर, आपकी लेखनी वाकई कमाल की है. जिस सफाई और सहजता से आप आज कि दुर्गम राजनीतिक समस्याओ पर प्रहार करते है उसकी जितनी तारीफ की जाये वो कम है.
ReplyDeleteइस बार विषय केन्द्रित नहीं रहकर कुछ फैल गया है। कसावट कम है। वैसे आप बहुत अच्छा लिखते हैं इसलिए अपेक्षा की है।
ReplyDeletemanmohan ji ko ab pataa lag raha hoga ki 'arthshastra'ki parikshaon se 'rajneetishastra ki parikshayen kitna alag hoti hain !
ReplyDelete