Nov 13, 2010

तोताराम की आवाज़ का पेटेंट


आज तोताराम नहीं आया । नौ बज गए । अब उसके आने की कोई उम्मीद लगती । जैसे ही हम अंदर जाने लगे तो एक उजबंग से सज्जन के साथ तोताराम आता दिखाई दिया । हमने रोकना चाहा, तो बोला- अभी जल्दी में हूँ, वकील से मिलना है ।

हमने पूछा- तेरा वकील से क्या काम आ पड़ा ? क्या कहीं तूने भी आदर्श हाउसिंग सोसाइटी में फ्लेट तो नहीं कबाड़ा था ?

कहने लगा- मौका मिलने पर कौन चूकता है, पर मैं अभी इतना बड़ा आदमी नहीं बना कि उस सोसाइटी में फ्लेट कबाड़ सकूँ । मुख्यमंत्रियों, सेनाध्यक्षों का पेट भरे तो किसी और का नंबर आए ना । मैं तो अपने इस ब्रदर-इन-ला के काम से जा रहा हूँ ।

हमने कहा- तेरे सभी सालों को हम जानते हैं । ये सज्जन उन में से तो कोई भी नहीं हैं ।

कहने लगा- इनकी और मेरी एक ही समस्या है और उसी के कानूनी हल के लिए हम वकील की सलाह लेने जा रहे हैं इसलिए हम दोनों ब्रदर-इन-ला हुए कि नहीं ?

ब्रदर-इन-ला की इस नई व्युत्पत्ति ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया ।

हमने कहा- अच्छी बात है । चले जाना, एक-एक चाय तो हो जाए ।

दरअसल हमारी रुचि चाय पिलाने में इतनी नहीं थी जितनी कि कानूनी मामले को जानने में थी ।

हमने पूछा- तुम्हारे साले साहब, सॉरी, ब्रदर-इन-ला की क्या समस्या है ?

तोताराम ने बताया कि इन सज्जन का नाम है 'नवारी लाल' । हमें नाम बड़ा अजीब लगा । पूछने पर तोताराम की जगह वे सज्जन खुद ही बताने लगे- जैसे आप तोताराम जी के भाई साहब हैं वैसे ही हमारे भी । सो भाई साहब, बात यह है कि नाम तो हमारा बनवारी लाल है और हम टीचर के बताए अनुसार बड़े 'बी' से अपना नाम शुरु करते थे मगर जब से एक महानायक 'बिग बी' बन गए तो हमने सोचा- 'राड़ से बाड़ भली' । अपना क्या है, छोटे बी से अपना नाम लिखना शुरु कर लिया करेंगे । फिर पता चला कि उनके साहबजादे भी फिल्मों में चल निकले हैं तो स्माल बी उनके लिए रिज़र्व हो जाएगा । सो कोई टोके उससे पहले ही मैंने अपना स्माल बी भी हटा दिया और अब मात्र 'नवारी लाल' रह गया हूँ । सोचता हूँ, कोई इन बचे हुए तीन अक्षरों को भी कब्ज़ा ले उससे पहले ही इनका तो पेटेंट करवा लूँ ।

अब हम तोताराम की तरफ मुखातिब हुए- तो महाशय तोताराम जी बताइए, आप किस चीज का पेटेंट करवाने जा रहे हैं ? कहीं अपनी आवाज़ का पेटेंट तो नहीं करवाने जा रहे, अमिताभ बच्चन की तरह ? ठीक भी है, इस गुरु गंभीर आवाज़ का पेटेंट करवा ही लेना चाहिए । ऐसी आवाज़ सदियों में ही किसी एक को भगवान अता फरमाता है ।

 तोताराम कहने लगा- मैं सब समझता हूँ तुम्हारा इशारा । ठीक है, मेरी आवाज़ मनमोहन सिंह जी की तरह शालीन है पर है तो विशिष्ट ना । और मुझे मालूम है कि तू इसे अपनी भाषा में 'मिमियाती' हुई आवाज़ कहेगा । मगर याद रख मिमियाती आवाज़ का भी महत्व होता है । क्या दहाड़ती आवाज़ के बल पर अडवानी जी प्रधान मंत्री बन सके ? और मान लो बन भी जाते तो कितना टिक पाते ? और मान लो अटल जी की तरह किसी तरह टिक भी जाते तो क्या दूसरी टर्म के लिए चुने जाते ? और मान लो चुने भी जाते तो क्या ओबामा और मिशेल को इस तरह नचा पाते जैसे कि मनमोहन जी ने दिल्ली और मुम्बई में नचा दिया ? यह इस मिमियाती आवाज़ का ही कमाल है । सो जब तक कोई और दूसरा कूद नहीं पड़े उससे पहले मैं भी अपनी इस मिमियाती आवाज़ का पेटेंट करने जा रहा हूँ । 

हम सोच रहे थे कि ज़माना कितना बदल गया है । राम ने धनुष-बाण का, कृष्ण ने बाँसुरी का, शिव ने त्रिशूल का, विष्णु ने सुदर्शन चक्र का, सरस्वती ने वीणा का पेटेंट नहीं करवाया और लोग हैं कि अपनी आवाज़ का पेटेंट करवा रहे हैं । अरे भाई, आवाज़ क्या अपनी है ? यह तो भगवान की दी हुई है ? और किसे पता है, कब बंद हो जाए मगर नहीं साहब, यह हमारी आवाज़ है और हम इसका पेटेंट करवाएँगे । ठीक है करवाइए । हमें क्या ?

८-११-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. अज हम अपनी टिप्पणी का पेटेंट करवाने जा रहे हैं\ बी से-- बहुत सुन्दर। अब बिग बी को सोचना है कि अपना नाम बदले या नही। आभार।

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  2. हम भी अपनी टिप्पणी लेखन कर्म का कराता हूं... अभी
    बहुत अच्छा लिखा है.. सर...

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