Nov 1, 2010

मुशर्रफ पर फ़तवा


तलाल अकबर बुगती साहब,
आदाब । आपने १०-१०-१० को अपने वालिद के हत्या करवाने वाले और लाला मस्जिद पर हमला करवाने वाले मुशर्रफ की हत्या करवाने के लिए सुपारी की घोषणा की है । अच्छा दिन चुना है । इस दिन को लेकर लोगों में बड़ा क्रेज था । १०-१०-१० । तीनों दस । कई लोगों ने तो इसे शुभ दिन मानकर समय पूर्व ही बच्चों को ज़बरदस्ती जन्म दिलवा दिया । आपने भी इस 'वाजिब-उल-क़त्ल' के लिए यही शुभ दिन चुना । हमारे भविष्य में भी इस दिन के लिए आया था कि कहीं से धन की प्राप्ति होगी । सो हमें लगा कि आपके इस ऑफर में ही शायद हमारा धन-प्राप्ति का भविष्य छुपा हो । सो सोच रहे हैं कि हम आपकी यह सुपारी स्वीकार कर ही लें ।

हमें इस प्रकार की सुपारियाँ स्वीकार करने का पुराना अनुभव है । इससे पहले भी जब बुश साहब ने ओसामा के लिए सुपारी की घोषणा की थी तो हमने बुश साहब से इस बारे में पत्र व्यवहार किया था मगर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था । इसी प्रकार हमारे उत्तर प्रदेश के हज़ मंत्री जी ने भी मुहम्मद साहब का कार्टून बनाने वाले स्वीडिश चित्रकार का सर लाने वाले को एक बड़ी राशि और उसके वज़न के बराबर सोना देने की घोषणा की थी । हमने वह सुपारी भी स्वीकार कर ली थी मगर फिर वही किस्सा । उनका कोई उत्तर नहीं आया । अब आपका ऑफर प्रकाशित हुआ है । सो हम इसे भी स्वीकार कर रहे हैं ।


अब इतनी बड़ी डील है तो ऐसे ही तो स्वीकार नहीं की जा सकती । कुछ न कुछ तो तय करना ही पड़ेगा । वैसे हम तो भगवान में विश्वास करते हैं सो ऐसे लोगों का फैसला भगवान पर ही छोड़ देते हैं । जो जैसा करेगा वैसा भरेगा । मगर आप को न तो कानून पर भरोसा करते हैं और न ही भगवान पर । सो खुद ही फैसला करना चाह रहे हैं । ठीक भी है, जब आदमी को न्याय पर भरोसा नहीं रह जाता तो फिर वह खुद ही फैसला करता है । हमारे यहाँ भी नागपुर की एक अदालत में कुछ महिलाओं ने मिल कर बलात्कार के एक अपराधी हो कोर्ट परिसर में ही मार डाला क्योंकि वे जानती थीं कि कोर्ट कुछ नहीं कर पाएगा और अपराधी अपने धन बल पर छूट जाएगा । आप भी अपने देश के कानून के बारे में ऐसी ही राय रखते हैं ।

आप नेता हैं सो पैसे की तो कोई कमी नहीं है । मुहम्मद साहब का कार्टून बनाने वाले के लिए सुपारी देने वाले हमारे यहाँ के मंत्री ने कहा था कि वह यह राशि चंदे से जुटाएगा । और यह भी तय है कि चंदा करेगा तो खाएगा भी । ऐसे लोगों पर हमें तो भरोसा नहीं है । सो अच्छा ही हुआ कि उन्होंने हमें जवाब नहीं दिया वरना तो हम काम कर भी देते और फिर पैसों के लिए उनके पीछे-पीछे चक्कर काटते रहते । आप तो यह रकम अपने पास से ही देंगे । नकद देंगे या चेक से ? भारत के अलावा रुपया पाकिस्तान और नेपाल में भी चलता है और उनके रेट में भी फर्क है । आप जो एक अरब रुपया देंगे वह भारतीय रुपया होगा या पाकिस्तानी रुपया होगा ? अगर आप चेक से देंगे तो उसमें से हमारा तो तीस प्रतिशत तो टेक्स की कट जाएगा और आपको भी कोई फायदा नहीं होगा । यह रुपया यदि स्विस बैंक में जमा करा दिया जाए तो कैसा रहे ? वहाँ हमारा खाता खुलवाने का काम भी आप ही करेंगे क्योंकि हमें उस प्रक्रिया का कुछ भी पता नहीं है ।


इसके साथ ही आपने एक हज़ार एकड़ ज़मीन भी देने की बात कही है । सो आपके यहाँ उस इलाके में ज़मीन का क्या भाव चल रहा है ? यहाँ तो ज़मीन के भावों में आग लगी हुई है । यहाँ तो बहादुर शाह ज़फर जैसी हालत हो रही है । ‘कूए यार में दो गज ज़मीन खरीदने’ की भी हैसियत नहीं रह गई ही साधारण आदमी की । तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप ज़मीन की रकम भी केलकुलेट करके इस इनाम में नकद ही जोड़ दें क्योंकि जब ज़मीन होगी तो हमें उसे सँभालने के लिए पाकिस्तान आना पड़ेगा और पाकिस्तान की हालत तो आप जानते ही हैं । जब वहाँ सुन्नी लोग अपने शिया भाइयों को ही बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, यहाँ से १९४७ में पाकिस्तान गए लोगों को आज तक भी मुहाजिर ही मान रहे हैं और उन पर हमले कर रहे हैं तो हमें वहाँ कौन जिंदा छोड़ेगा । यह कोई भारत तो है नहीं, जहाँ वोट बैंक के चक्कर में करोड़ों बंगलादेशियों को बसा लिया, उनके राशन कार्ड बनवा दिए गए । अब उनमें से कई तो एम.एल.ए.और एम.पी. तक बन गए हैं । यदि हम किसी तरह वहाँ रह भी गए तो साल छः महिने में मुसलमान बनने के लिए बाध्य किया जाएगा । जब हिंदू कश्मीर में ही नहीं रहने दिए गए तो पाकिस्तान में कौन रहने देगा ? और फिर साहब, बचपन की बात और है । अब इस उम्र में खतना करवाने से बड़ा डर लगता है । सो यह ज़मीन का चक्कर छोड़िये । नकद ही रखिए ।

वैसे मुशर्रफ के सर का आप करेंगे क्या ? इसकी खोपड़ी में तो खुराफात ही भरी हुई है । बुरे आदमी का तो नाम ही बुरा होता है । हमारे मोहल्ले में ब्राह्मणों की एक उपजाति है । कहते हैं कि वे जहाँ होते हैं वहाँ लड़ाई झगड़े ज़रूर होते हैं । इस लिए लोग उन्हें अपनी बारात में भी ले जाने से कतराते हैं । एक बार एक बारात में उस उपजाति का एक भी व्यक्ति बारात में नहीं था फिर भी बस रेत में फँस गई । दूल्हे के बाप ने पूछा- अरे, कोई उस जाति का तो नहीं है बरात में । एक आदमी ने कहा- जी, आदमी तो कोई नहीं है मगर मेरे पास उस जाति के एक आदमी का गमछा ज़रूर है । दूल्हे के बाप ने कहा- गमछा फेंक । हम तुझे दूसरा दिला देंगे । उसने गमछा फेंका तब कहीं जाकर बस चली । सो जनाब, यह महान आत्माओं का प्रभाव । जब एक गमछा ही इतना प्रभाव दिखा सकता है तो फिर आप तो मुशर्रफ का सर पाकिस्तान में मँगवा रहे हैं । आपके देश में पहले से ही बहुत सी पुण्यात्माएँ कल्याण करने में लगी हुईं हैं फिर यह नई आफत क्यों पाल रहे हैं । वैसे आप निश्चिन्त रहिए । वे अब पकिस्तान में नहीं आ पाएँगे क्योंकि उनको बाहर रखने में, आपसे ज्यादा रुचि, ज़रदारी को है ।

फिर भी आपको उसके सर से ही ज्यादा प्रेम है तो हमें क्या । शर्तों पर विचार करके शीघ्र लिखिएगा ।

१५-१०-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. बुगती साहब मुशर्रफ में मशरूफ हैं आजकल..

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