Nov 13, 2010

नारियल, कुत्ता, ओबामा और तोताराम


पत्नी का दिवाली की सफाई का कार्यक्रम आज छोटी दिवाली तक भी चल ही रहा था । इसलिए हो सकता है चाय मिलने में अधिक विलंब हो, सो हमने कहा- तोताराम, आज उधर बगल वाले प्लाट में पेड़ के नीचे बैठते हैं । वहाँ जाकर देखा तो पाया कि नीम के पेड़ के नीचे पटाखों के ढेर सारे छिलके बिखरे पड़े थे । सो कुर्सियाँ खींच कर बेल के पेड़ के नीचे सरका ली, मगर तोताराम दूर ही खड़ा रहा ।

हमने उसका हाथ पकड़ कर खींचा- आ जा, बैठ जा । अभी चाय आने में पता नहीं कितनी देर लगेगी ।

कहने लगा- कोई बात नहीं, मैं यहीं खड़े-खड़े इंतज़ार कर लूँगा ।

हमें बड़ा अजीब लगा, पूछा- क्या किसी ने तुझे खड़ा रहने की सजा दे रखी है ? बोला- नहीं, ऐसी बात नहीं है पर ऊपर देख, एक सूखा-सा बेल का फल लटक रहा है । क्या पता, मैं इसके नीचे बैठूँ और वह फल मेरे सर पर गिर पड़े ।

हमें हँसी आ गई । अरे, यह सब 'काकतालीय न्याय' वाली बात है । क्या कहीं कौए के बैठने से पेड़ की डाल टूटती है ? कभी संयोग हो गया तो इसका मतलब यह नहीं है कि जब-जब भी कौआ बैठेगा तब-तब डाल टूटेगी ही । हमने तो कभी नहीं सुना कि पेड़ के नीचे बैठे किसी व्यक्ति का सर फल गिरने से फूट गया हो । यह तो ज़रूर पढ़ा है कि सिद्धार्थ को बरगद के पेड़ के नीचे बैठने से ज्ञान प्राप्त हुआ था । न्यूटन पेड़ के नीचे बैठा था तो पेड़ से गिरने वाले सेव को देखकर उसे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पता चल गया । प्राचीन काल में पेड़ों के नीचे बैठकर ही विद्यार्थी ऊँचे से ऊँचा ज्ञान प्राप्त कर लिया करते थे । और तू है कि पेड़ के नीचे थोड़ी देर बैठने से ही घबरा रहा है । अरे, हमारी तो संस्कृति ही पेड़ों के नीचे विकसित हुई है । तभी तो 'आरण्यक' नामक ग्रन्थ हमारे यहीं पाए जाते हैं ।

कहने लगा- मास्टर, ज़माना बहुत आगे बढ़ गया है और उसी हिसाब से उसकी समस्याएँ भी । तुमने पढ़ा नहीं कि ओबामा जी के आने से पहले मणि-भवन के नारियल के पेड़ों के फल तोड़ दिए गए हैं । क्या पता, ओबामा जी का घुसना हो और फल का गिरना हो और अरबों रुपए खर्च करके किए जा रहे उनके स्वागत के रंग में भंग पड़ जाए । भले ही नारियल का फल बहुत बड़ा नहीं होता और उसके अपने आप गिरने की संभावना भी नहीं होती फिर भी भाग्य का कुछ भी पता नहीं । यदि गिर जाए तो बड़ी तगड़ी चोट लगती है । क्या पता, ब्रेन हेमरेज हो जाए । तो यह तेरा बेल का एकमात्र फल क्या पता, मेरे सर पर ही न गिर पड़े ।

हमने कहा- तो तू अपने को ओबामा समझ रहा है जिसके सर को पेड़ों पर लगे फलों से भी खतरा हो । यदि इतना ही डर लग रहा है तो तू भी अपने साथ पासपोर्ट बनवाकर किसी सूँघने वाले कुत्ते को अपने साथ ले आता ।

बोला- भले ही आजकल पुलिस आदमी से ज्यादा कुत्तों पर विश्वास करने लग गई हो पर कोई भी ज़मीन पर खड़ा कुत्ता नारियल के पेड़ पर लगे फल में घुसे विस्फोटक को नहीं सूँघ सकता ।

हमने कहा- कोई कुत्ता नारियल के फलों में घुसे विस्फोटक को नहीं सूँघ सकता और जब फलों को कटवाना ही था तो कुत्ते को लाने का खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी । और वैसे भी अपने यहाँ कहावत भी तो है कि 'कुत्ता नारियल का क्या करेगा' ?

तोताराम कहने लगा- क्या पता, बुश साहब की तरह राजघाट जाने से पहले समाधि की सुरक्षा जाँच करवाने के लिए कुत्ते को उस पर चढ़ाना हो ? मगर ओबामा जी गाँधी जी के भक्त हैं । वे ऐसा तो हरगिज नहीं करेंगे ।


अभी तक तोताराम पेड़ के नीचे आकर नहीं बैठा तो हमें ही स्टूल को धूप में लाना पड़ा । हालाँकि धूप बहुत तेज नहीं थी फिर भी कार्तिक की धूप है, सुहानी भी कैसे हो सकती है । हमने बात जारी रखते हुए कहा- तोताराम, तू बिना बात ही डर रहा है । आज तक बता किस महान पुरुष की मौत पेड़ से गिरे फल की चोट से हुई है । लिंकन, कैनेडी, महात्मा गाँधी, इंदिराजी, राजीव गाँधी, बेनजीर, मुजीब, भंडार नायके सभी तो षडयंत्रों का शिकार हुए हैं ।

बोला- तुझे नहीं पता, ये खुराफाती लोग बड़े चालाक हैं । चोर चौकीदार से ज्यादा चतुर होता है । गृहस्थ को तो दिन भर काम करके रात को आराम करना होता है ताकि दूसरे दिन फिर काम पर जा सकें, पर इन खुराफातियों को कौन सी ड्यूटी करनी होती है । इन्हें तो सारे दिन ये खुराफातें ही सोचनी हैं । किसने सोचा होगा कि सर्जरी करके कुत्ते के पेट में विस्फोटक फिट कर दो और फिर रिमोट से उनका विस्फोट कर दो । यह बात और है कि संयोग से वह कुत्ता जहाज में बैठाए जाने से पहले ही फट गया । प्रिंटर के कार्ट्रिज में स्याही की जगह विस्फोटक भरकर कार्गो प्लेन में चढ़ा दो और मौका देखकर रिमोट से विस्फोट कर दो । ये तो तक्षक के भी बाप हैं जो परीक्षित को काटने के लिए फल में कीड़ा बनकर परीक्षित के पास पँहुच गया और दे ही दिया आतंकवादी गतिविधि को अंजाम ।

हमने पूछा- तोताराम, इन खुराफातियों में इतनी अक्ल और ट्रेनिंग कहाँ से आती है ? क्या इसका कोई स्कूल होता है ?

बोला- शीत-युद्ध के समय अमरीका ने ही रूस को घेरने के लिए उसकी सीमा से लगे मुस्लिम देशों में ऐसे खुराफाती स्कूल खुलवाए थे और इन्हें बहुत सहायता भी दी थी । अब ये आत्मनिर्भर हो गए है और अमरीका के लिए सिर दर्द भी । गलती किसी की और नारियलों से बचते फिर रहे हैं बेचारे ओबामा । इसी को कहते हैं 'बंदर की बला तबेले के सर' ।

हमने कहा- चलो भई, कब-कब आते हैं ऐसे मेहमान, दस-बीस पेड़ों के फल ही तो कटे हैं । यहाँ तो छोटे-मोटे आयोजन के लिए ही जाने कितने पेड़ काट दिए जाते हैं । आजकल तो वैसे भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा रहा है तो जाने कितने हजार एकड़ कृषि भूमि और कितने लाख पेड़ बलि चढ़ रहे हैं इस विकास की ।

तेरे साथ हम भी कामना कर ही देते हैं कि 'यात्रा सफल हो' पर असली पता तो कुछ दिनों के बाद लगेगा जब सब अपने-अपने हाथ सँभालेंगे कि मिलाए गए कौन-कौन से हाथ सलामत हैं और कौन से गायब ।

४-११-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. ओबामा के दौरे पर भारत का रुपया ही खर्च हुआ है. जो नौ सौ करोड़ रुपये तीन दिन में अमेरिका का व्यय बताया जा रहा है, वह हथियार बेचकर वसूल लिया जायेगा..

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