Nov 15, 2010

चश्मे का हिसाब-किताब


कुछ बातें ऐसी हैं जिनके लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता । वे अपने आप हो जाती हैं । न चाहने पर भी हो जाती हैं । जैसे कि मौत, रिटायरमेंट और किसी का वरिष्ठ नागरिक होना । पहले दिवाली के दूसरे दिन सब एक सिरे से मोहल्ले के सभी बड़े स्त्री-पुरुषों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया करते थे । हम सोचा करते थे कि कभी तो हम इतने बड़े होंगे ही कि मोहल्ले के बच्चे-जवान हमारे पैर छूने के लिए आया करेंगे मगर किस्मत की बात कि वरिष्ठ नागरिक बने हुए चार साल हो गए मगर कोई भी पैर छूने नहीं आता । हम अपने मन में तो यह जानते ही हैं कि हममें उम्र बढ़ने के बावज़ूद बुजुर्गों वाली गंभीरता नहीं आई है । और कभी-कभी हमें यह लगता है कि बच्चों को भी हमारी इस कमी का पता चल गया है या फिर हो सकता है कि अब वह चलन ही खत्म हो गया । सब एस.एम.एस. और फोन से ही काम चला लेते हैं । आने-जाने की ज़हमत उठाने की ज़रूरत ही नहीं । आदत से लाचार हमीं अपने से बड़ों के चरण छूने जाते हैं । मगर अब उनकी संख्या काफी कम हो गई है । हो सकता है कि दस-पाँच बरस में या तो वे या फिर हमारी ही ‘जै राम जी की’ हो जाएगी ।

वैसे तोताराम तो कोई दो घंटे से ही आया बैठा है । पर तोताराम के आने को हम आना नहीं मानते क्योंकि वह तो रोजाना ही आता है । वैसे इसका एक कारण यह भी है कि जब घर में ज़्यादा काम होता है तो हम दोनों की पत्नियाँ यही चाहती हैं कि यदि हम घर के अंदर न आएँ तो अधिक सुविधा रहेगी । तोताराम के आज दोपहर में भी जमे होने का एक कारण यह भी हो सकता है । तभी एक युवा पत्रकार आ गया । हम उसे अच्छी तरह से जानते हैं । अभी वह संघर्ष कर रहा है । मतलब कि उसे खबरें देने के पैसे नहीं मिलते । हाँ, वह लोगों की छोटी-मोटी खबरें छपवा कर उनसे चाय-पानी का जुगाड़ ज़रूर कर लेता है । वैसे, जब से अखबारों के कई-कई संस्करण निकलने लगे हैं तब से अखबार का नाम भले ही राष्ट्रीय हो मगर उनका चरित्र स्थानीय क्या, गली-मोहल्ले जैसा हो गया है । एक जिला मुख्यालय के भी शहरी और ग्रामीण संस्करण निकलने लगे हैं । अखबार में छपी अपनी खबर को देख कर व्यक्ति फूला नहीं समाता कि अब तो सारा संसार उसे पढ़ रहा होगा मगर असलियत यह है कि पन्द्रह किलोमीटर दूर के गाँव में पढ़े जा रहे अखबार में वह खबर हो ही नहीं । इस प्रकार विज्ञापन भी अधिक मिल जाते हैं और जहाँ तक खबरों के संकलन का प्रश्न है तो आप न्यूज एजेंसियों से इंटरनेट पर ही कमरे में बैठे-बैठे दुनिया भर की खबरें और फोटो डाउनलोड कर सकते हैं ।

तो युवा पत्रकार आया, हमारे पैर छुए और एक-दो अखबारों के दिवाली की बधाई के विज्ञापनों से भरे पन्ने हमारे सामने फैला दिए । हमें लगा, हमारी साधना सफल हुई । कोई तो आया । जैसे कि कोई साधारण आदमी आमरण अनशन पर बैठ जाए और शाम तक उसे सँभालने के लिए कोई न आए । ऐसे में कोई गली का युवा नेता ही आ जाए और कहे कि हम आपकी माँगों को सरकार तक पहुँचाएँगे । अनशन तोड़िये और यह शिकंजी पीजिए । बस, कुछ इसी शैली में हमारा मान रह गया । हमने उसे आशीर्वाद दिया, चाय ऑफर की । उसने विज्ञापनों की भीड़ में से एक चार लाइन का समाचार निकाल कर पढ़वाया । 'मास्टर रमेश जोशी का पुराना चश्मा पचास लाख में नीलाम हुआ' । हमें लगा, यह कारस्तानी भी तोताराम की ही है । असलियत हम जानते है फिर भी एक गर्व की अनुभूति जैसी कुछ हुई । 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले, झूठा ही सही' वाली शैली में । सोचने लगे कि अब उन लोगों को पता चलेगा, आँखें फट जाएँगी जिन्होंने हमारी पुस्तकों को पाँच सौ रुपए के पुरस्कार के लायक भी नहीं समझा । तभी एक सज्जन, जिन्हें हम जानते नहीं थे, हमें बधाई देकर बैठकर गए । हमने उन्हें भी चाय प्रस्तुत की ।

चाय पीते-पीते उन्होंने पूछा- मास्टर साहब, इतना महँगा चश्मा किसने खरीदा ?
हम ज़वाब देते इससे पहले ही तोताराम बोल पड़ा- इससे क्या फर्क पड़ता है कि किसने खरीदा ?

तभी युवा पत्रकार बीच में कूदा- समाचार देने तो तोताराम जी आए थे । इनको तो पता होगा ही ।

अब बारी तोताराम की थी, बोला- तुम तो पत्रकार हो । तुम्हें तो मालूम होना चाहिए कि समाचार का सूत्र बताने के लिए संवाददाता को कोई बाध्य नहीं कर सकता ।
अब तक चुप बैठा, अनजान सज्जन कहने लगा- यह ठीक है कि आपको बताने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता मगर आयकर विभाग के नियमों के अनुसार जिसने भी खरीदा है उसे तो बताना पड़ेगा ही कि इतना पैसा कहाँ से आया ?

आज पता नहीं तोताराम क्यों आक्रामक मुद्रा में था, बोला- लगता है आप आयकर विभाग से हैं । तो महोदय, जब किसी ने मोनिका लेविंस्की की क्लिंटन द्वारा हस्ताक्षरित 'वह' ड्रेस करोड़ों में खरीदी थी तब आप कहाँ थे ? जब मर्लिन मुनरो की प्रथम प्रेमलीला वाला पलंग किसी ने करोड़ों में खरीदा था आपने क्या किया था ?

आयकर विभाग वाला सज्जन पहले तो अचकचा गया मगर फिर कुछ कानूनी हो गया- हमारा विभाग विदेशों में हुए घपलों के लिए जिम्मेदार नहीं है ।

तोताराम बोला- तो फिर यही बता दीजिए कि सचिन तेंदुलकर का बल्ला बयालीस लाख में खरीदने वाला कौन है ? अमिताभ बच्चन के साथ खाना खाने की नीलामी बारह लाख में छुड़ाने वाला कौन है ? उन्हें दो लाख तीस हज़ार का चश्मा किसने भेंट किया ? चलो छोटी-मोटी बातें तो छोड़िये, मुकेश अम्बानी ने मात्र चालीस करोड़ सालाना तनख्वाह में दस हज़ार करोड़ का बँगला कैसे बनवा लिया ? बाबा रामदेव को करोड़ों का हेलीकोप्टर किसने भेंट किया ? और मान लो हमने ही खरीद लिया मास्टर का चश्मा तो क्या घपला कर दिया ?

हमें आयकर विभाग का अधिक अनुभव तो नहीं है पर इतना ज़रूर जानते हैं कि वे आपसे कुछ भी पूछ सकते हैं मगर आप उनसे कुछ नहीं पूछ सकते । टेक्स का एक पैसा कम जमा हो जाए तो मनमाना ब्याज लगा देंगे पर अगर आपने भूल से टेक्स ज्यादा जमा करवा दिया तो वापिस मिलेगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं है । हमने पेन कार्ड बनवाते समय सभी कुछ ठीक लिख कर दिया था पर उन्होंने कार्ड में हमारे नाम की स्पेलिंग गलत छाप दी । पूछने गए तो कहने लगे- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । बस, पैसे का हिसाब ठीक होना चाहिए ।

आयकर वाला कहने लगा- मगर जब तोताराम जी या आप अपना रिटर्न भरेंगे तब तो सब दिखाना ही पड़ेगा और इनकम का सोर्स बताना ही पड़ेगा ना ?

अब तोतराम ने छक्का मारा, कहने लगा- जी, हमने ही ख़रीदा है चश्मा । समाचार में यह कहाँ लिखा है कि नकद खरीदा या किस्तों में ? और हाँ, पेमेंट भी हम ही करेंगे मगर पाँच रुपए रोजाना की किस्तों में । ले लेना खर्चे का हिसाब-किताब ।

अब तो आयकर विभाग वाले की शक्ल देखने लायक थी ।

फिर भी हम नहीं चाहते थे कि त्यौहार के दिन मिठास कम हो सो पत्नी से कुछ मिठाई लाने के लिए आवाज़ लगाई ।

७-११-१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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