Nov 1, 2010

अरुंधती की आड़ में


फारुक अब्दुल्ला जी,
संबोधन तो आपको क्या दें । आप एक जगह टिकें तब ना कुछ तय किया जाए । आज के अखबार में आपका स्टेटमेंट पढ़ा । यह स्टेटमेंट आपने अपनी मर्जी से ही दिया होगा क्योंकि आपसे कोई ज़बरदस्ती स्टेटमेंट तो ले नहीं सकता । स्टेटमेंट तो आप पहले भी देते रहे हैं । जब अफज़ल गुरु को फाँसी की बात उठी थी तब भी आपने कहा था कि अफज़ल को फाँसी देने से इस देश का क्या नुकसान हो सकता है ? गिलानी ने भी अफज़ल को फाँसी नहीं देने की शर्त रखी थी । गुलाम नबी आज़ाद ने भी कहा था कि अफज़ल को फाँसी देने से कश्मीर में आग लग सकती है । एक अफज़ल को, जिसने संसद पर हमले की साजिश रची थी, को फाँसी देने पर कश्मीर में आग लग सकती है मगर लाखों कश्मीरी पंडितों को ज़बरन भगा दिए जाने और उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लेने से कश्मीर में आग नहीं लग सकती क्योंकि इन बेचारे पंडितों को न अमरीका का समर्थन है, न पाकिस्तान का और न ही उनके पास हथियार हैं और न ही पेट्रो-डालर का दम । इन्हें तो अब दिल्ली और जम्मू में दो हज़ार रुपए महिने में टीन की छतों के नीचे दिन गुजारने पड़ रहे हैं जब कि इससे दस गुना तो कश्मीर में रहने वाले, कुछ भी काम न करने वाले, अलगाव की बात करने वालों को वैसे ही मिल जाता है ।

कितनी मज़े की बात है कि अफज़ल के बारे में आपके, गुलाम नबी और गिलानी के बयान कितने समान हैं ? क्या यह मात्र संयोग है ? नहीं, यह आप सबकी मिलीभगत है । केन्द्र से पैकेज आता रहता है और सारे नेता मिल कर खाते रहते हैं । अलगाववादी भी इसी धन पर पल रहे हैं और अपनी गतिविधियाँ चला रहे हैं वरना अस्सी साल के गिलानी के पास कौन सा खजाना गड़ा हुआ है जो दो सौ रुपए रोज में पत्थर फेंकने वाले हजारों स्वयंसेवक रखे हुए हैं । इतने आतंकवाद के बावज़ूद आप लोगों को कभी गरम हवा तक भी क्यों नहीं लगी ?

आप और भी कई तरह के वक्तव्य देते रहते हैं । जब आप सत्ता में होते हैं तो कुछ और बोलते हैं और जब सत्ता में नहीं होते तो कुछ और । जब सत्ता में नहीं होते तो अपनी ससुराल इंग्लैण्ड चले जाते हैं और चुनाव के समय फिर श्रीनगर आ जाते हैं और कश्मीरियों की अस्मिता की बातें करने लग जाते हैं । अब जब गिलानी ने कुछ ज्यादा ही हल्ला मचाया तो आपके 'सुपुत्र' की गद्दी कुछ हिलने सी लगी तो उसने भी कुछ और ही तरह का वक्तव्य दे दिया वैसे न देते तो भी कुर्सी के साधकों के वक्तव्यों और मंतव्यों को समझना कोई कठिन नहीं है । जब राहुल बाबा ने उनका समर्थन कर दिया तो चिदंबरम भी ढीले पड़ गए । आपने इस पर कुछ कहा तो नहीं । कहते भी क्या ? इधर पड़ें तो कुआँ और उधर पड़ें तो खाई । मगर अब इस अरुंधती ने आपको फिर से देशभक्त बनने का मौका दे दिया । आपने कहा- 'हमारे यहाँ इतनी आजादी है कि हमारे लोग ही हिंदुस्तान का बेड़ा गर्क कर देंगे' ।

वैसे जहाँ तक बेड़े की बात है तो मियाँ, उसे गर्क करने में किसी ने कोई कमी नहीं रखी है । ६३ साल से सारे के सारे जनसेवक गर्क करने में ही लगे हुए हैं । जब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तो फिर कैसा तो स्पेशल दर्जा, कैसा स्पेशल पैकेज और कैसी वार्ता । जैसे देश के सारे राज्य हैं वैसे ही कश्मीर । आपके सुपुत्र ने वार्ता में पाकिस्तान को शामिल करने की बात की तो पाकिस्तान का क्या लेना देना है । उसने तो कश्मीर के एक हिस्से पर नाजायज़ कब्ज़ा कर रखा है । होना तो यह चाहिए था कि आप सब लोग उस हिस्से की मुक्ति की बात करते मगर उसके लिए बड़ा दिल और बड़ी हिम्मत चाहिए । जब पाकिस्तान ने उसमें से एक बड़ा हिस्सा पहले अमरीका को अड्डे बनाने के लिए और अब चीन को सड़कें बनाने के लिए दे दिया तब आप कुछ नहीं बोले । जब मुसलमानों के इस देश में आने से भी पहले के निवासी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से निकल बाहर किया गया तब भी आपकी आत्मा मौन ही रही ।

आपको ही क्या कहें सारी पार्टियाँ ही अपने चुनावी गणित भिड़ाती रहती हैं वरना गिलानी के वक्तव्य पर लालू, मुलायम, मुफ्ती, आप, कांग्रेस कोई नहीं बोला । चुनाव जो चल रहे हैं । भाजपा भी रस्म अदायगी सी ही कर रही है, यह सोच कर कि क्या पता फिर कभी पहले की तरह आपसे समर्थन लेना पड़ जाए । अब इस अरुंधती के कारण गिलानी नेपथ्य में चले गए और यह देशद्रोही हो गई । वैसे इस महिला की बीमारी यह है कि यह अपने कुछ अच्छे और चर्चित वक्तव्यों के कारण लाइट में आ गई सो इसने समझ लिया कि यह बहुत बड़ी ज्ञानी है । मगर इसे भारत के इतिहास का ज्ञान नहीं है और न ही इसकी नसों में यहाँ का उतना हवा पानी, केवल किताबी ज्ञान है वरना वह यह नहीं कहती । फिर भी उसमें एक करुणा और ईमानदारी तो है ही पर आप तो सब कुछ जानते हैं । आपका तो रोम-रोम इस मिट्टी का ऋणी है । जयपुर में रह कर पढ़े हैं । भजन भी गा लेते हैं । आपके पुरखे भी हिंदू ही थे । आप हिंदुत्व की उदारता को अच्छी तरह से जानते हैं । हिंदू धर्म ही संसार में ऐसा है जो सबको गले से लगा लेता है । वरना साठ साल पहले भारत छोड़ कर पाकिस्तान गए मुसलमानों को आज तक भी पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने अपना नहीं माना है । और तो और, शियाओं पर आज भी कहर क्यों बरसाया जा रहा है पाकिस्तान में ।

आप सोच रहे होंगे कि हमने आपके सुपुत्र को जम्मू-कश्मीर का प्रधान मंत्री कहने की बजाय सुपुत्र क्यों कहा । सो मियाँ, यहाँ कोई जनता का नेता नहीं है । सब किसी न किसी के पुत्र/पुत्री हैं चाहे उमर हों या अजय चौटाला, अभिषेक यादव हों या तेजस्वी यादव, उद्धव ठाकरे हों या महबूबा, प्रिय सुले हों या स्टालिन । सबके अपने-अपने देश हैं, अपने-अपने दल, अपने-अपने बैंक बेलेंस, अपनी-अपनी कुर्सी । हमें तो लगता है कि अब इस देश के खंडित होने के दिन आ गए हैं । और इसमें आपका भी योगदान कम नहीं है ।

भगवान इस देश की आप सेवकों से हिफाज़त करे ।

२७-१०-२०१०


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. ऐसे देश सेवक और देशों की सेवा में जुट जायें तब ही कुछ अच्छा हो सकता है..

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