Nov 1, 2010
हैप्पी दिवाली, ओबामा जी
ओबामा जी,
नमस्ते । इस बार आप दिवाली पर भारत में होंगे । धन्न भाग । आपसे पहले बुश साहब ने भी दिवाली की शुरुआत की थी मगर मेन व्हाईट हाउस में नहीं बल्कि उससे जुड़ी इमारत 'इंडियन ट्रीटी रूम' में । यह वैसे ही था जैसे हमारी भाभी लहुसन नहीं खातीं तो भाई साहब को लहसुन की चटनी स्टोव पर और अलग से रखे बर्तनों में बनानी पड़ती है, फिर भी हम तो इसी में धन्य हो गए थे । इसके बाद आपने १४ अक्टूबर २००९ को धन तेरस को व्हाईट हाउस के ईस्ट रूम में दीया जलाकर दिवाली मनाई और अब आप ७ नवंबर को मुम्बई में दिवाली मनाएँगे । वैसे बताते चलें कि वास्तव में दिवाली ५ नवंबर को है लेकिन अमरीका में त्यौहार अपने आसपास के संडे के हिसाब से मनाया जाता है । बिना बात एक कार्य दिवस का व्यापारी को नुकसान क्यों हो ? आपके यहाँ भारत मूल के कोई तीस लाख लोग हैं मगर एक दिन के लिए भी दिवाली की छुट्टी नहीं होती । हमारे यहाँ की बात और है । यहाँ तो क्रिसमस की छुट्टी २५ दिसंबर को ही होती है । किसी आसपास के संडे पर नहीं टरकाया जाता । स्कूलों में तो कम से कम एक हफ्ते की छुट्टियाँ होती हैं । कुछ भी हो, आपका आना खुशी की बात तो है ही । और कहें तो खुशी से मर जाने का दिन है ।
दरअसल बात यह है कि इस देश को एक हज़ार साल से विभिन्न आक्रमणकारियों के जूते खाने का दारुण अनुभव है सो यह ज़रा सी सहानुभूति और आदर से ही गदगदायमान हो जाता है । भले ही भारत में हिंदी की दुर्गति हो रही हो मगर जब एक अंतरिक्ष यान में कई देशों के साथ भारत का भी झंडा और हिदी में लिखे दो शब्द चन्द्रमा पर भेजे गए तो हम बल्लियों उछले थे । जब आप चुनाव लड़ रहे थे तो लोग खबर उड़ा लाए कि आप हनुमान जी के भक्त हैं क्योंकि आपके हाथ में जो ब्रेसलेट है उसमें एक बंदर की शक्ल जैसी कोई चीज है । इससे उत्साहित होकर एक हनुमान-भक्त ने आपको हनुमान जी की सोने का पानी चढ़ी एक मूर्ति भी भिजवा दी थी । अब यह पता नहीं कि वह आप तक पहुँची या नहीं ।
तो आप ऐन दिवाली के दिन नहीं भी तो उसके आसपास आ रहे हैं, यही बहुत है । दिवाली के बाद महाजन नई बही शुरु करते हैं । अच्छा है - नई बही और दस बीस हज़ार करोड़ के सौदे से शुरुआत । आपसे पहले हमारे पुराने राजा ब्रिटेन के प्रधान मंत्री कैमरून साहब भी आए थे और तीन हज़ार करोड़ का सौदा कर गए । और इस सौदे से पहले दो चार अच्छी-अच्छी बातें करनी थीं सो वे भी कीं । अच्छी बातें मतलब कि भारत से 'पाकिस्तान नामक बीमारी' के बारे में सहानुभूति दिखाना । वैसे सौदा करके यहाँ से ब्रिटेन पहुँचते ही ज़रदारी का स्वागत बड़े जोश-ओ-खरोश से किया और थूक कर चाटने जैसा एक बयान दे दिया क्योंकि धंधा तो उसके साथ भी करना है । सुनार को ग्राहक और चोर दोनों का ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि चोर से चोरी का सोना सस्ते में खरीदना है और ग्राहक को खोट मिलाकर मार्केट रेट पर बेचना है । उसके लिए तो दोनों ही महत्वपूर्ण हैं । कैमरून से पहले, जब ब्लेयर प्रधान मंत्री थे तब वे भी आए थे और चार हजार करोड़ का सौदा कर गए थे ।
आपके बाद छः दिसंबर को फ़्रांस के राष्ट्रपति आ रहे हैं । उन्हें भी कोई न कोई सौदा पटाना है । फिर आएँगे दिसंबर मध्य में रूस के राष्ट्रपति । वे भी कोई न कोई सौदा करके ही जाएँगे । दिसंबर में ही चीन के प्रधान मंत्री को भी बुलाने की कोशिश हो रही है क्योंकि वह भी जब-तब छेड़-छाड़ करता रहता है सो उसे भी कहना है कि भाई, क्यों ज्यादा परेशान कर रहा है ? तू भी दो-पाँच हजार करोड़ का माल हमें टिका दे । वैसे भी चीन का घटिया माल इस देश में चोरी छुपे और खुले भी आ ही रहा है । अब कोई विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी आन्दोलन तो गाँधी की तरह चलाना नहीं है । सस्ते माल में मुनाफा ज्यादा होता है । और व्यापारी को मुनाफे से मतलब है फिर चाहे वह अमरीका का हो या भारत का । देश का क्या है ?
सो आप भी सौदा करने आ रहे है । पहले जब शीत युद्ध का ज़माना था तब अमरीका का कोई भी राष्ट्रपति न तो भारत की इतनी मुँहदेखी बड़ाई करता था और न ही इतनी जल्दी-जल्दी भारत आता था क्योंकि तब भारत रूस से हथियार खरीदता था । तब भी हमें इसलिए हथियार खरीदने पड़ते थे क्योंकि आप पकिस्तान को मुफ्त में या सस्ते में हथियार दिया करते थे । वैसे अब भी आपने कौनसा उसे हथियार देना बंद कर दिया । उसे देंगे तो हमें भी शक्ति संतुलन के नाम पर हथियार खरीदने ही पड़ेंगे । अब यही तो तरीका बच गया है, दुनिया में अपने उपनिवेश बनाकर शोषण करने वाले गोरों के लिए, अपनी आमदनी बनाए रखने का । वैसे सभी जानते हैं कि इन देशों को हथियारों से ज्यादा औजारों और मितव्ययी होने की ज़रूरत है ।
राजस्थानी में एक कहावत है- ‘गाँव बावळी नै बदै ना और बावळी गाँव नै बदै ना' मतलब कि पगली की गाँव नहीं सुनता और पगली गाँव की नहीं सुनती । सो हमारी भी कोई नहीं सुनेगा क्योंकि सबको अपने-अपने धंधे से मतलब है मगर क्या बताएँ, हम भी आदत से मजबूर हैं । तो आप आ रहे हैं और अखबार आपकी भव्यता का आतंक फैलाने वाली खबरें छाप कर गौरवान्वित हो रहे हैं । अखबारों का क्या है ? वे तो मोनिका लेवेंस्की, ब्रिटनी और लेडी गागा सभी की चड्डी-चोलियों को उसी भक्ति भाव से छापते हैं जिस तत्परता से होली-दिवाली के विज्ञापनी परिशिष्ट । जब मंदिर ही प्रसाद और दर्शन कराने का धंधा करते हैं, तथाकथित संत टिकट लगाकर योग सिखाते हैं या च्यवनप्राश बेचते हैं तो फिर मीडिया में तो सेठों का अरबों रुपया लगा है । वह समाज सुधार के लिए है क्या ? दो पैसे कमाने के लिए है । और सेक्स, सनसनी और अजूबे बेचने से अच्छा और सुरक्षित कुछ नहीं हो सकता ।
मिडिया छाप रहा है कि आप जिस कमरे में ठहरेंगे, उस कमरे में मैडम के लिए विदेशों से मँगवा कर सौंदर्य प्रसाधन रखे गए हैं और आपके लिए विशेष शराबें रखी गई हैं जिनके एक गिलास की कीमत ३००० हज़ार रुपए है । वैसे हमने कुछ दिन पहले एक समाचार पढ़ा था कि व्हिस्की की एक बोतल दो करोड़ में नीलाम हुई है । हमारे यहाँ भी गाज़ियाबाद में दिवाली पर भ्रष्टों द्वारा भ्रष्टों को उपहार में दिए जाने के लिए चाँदी की बोतल में पेक की गई ७५० मिलीलीटर व्हिस्की ५१ हज़ार में बिक रही है । विजय माल्या ने भी पिछली दिवाली को सभी सांसदों को ब्लेक डॉग की एक-एक बोतल व्हिस्की भेंट दी थी । प्रभात झा नाम के एक सांसद ने बोतल लौटा दी । मगर और किसी ने भी चूँ तक नहीं की । चुपचाप दिवाली सेलेब्रेट करते रहे । मतलब कि झा को छोड़ कर सारे के सारे बेवड़े हैं ।
आपके बारे में और भी छापा गया है कि मुख्य रसोइए हेमंत ओबेराय आपकी मनपसंद डिशें तैयार कर रहे हैं और उनका मार्ग दर्शन करने के लिए आपका विशेष रसोइया आ रहा है । यहाँ आपकी सवारी के लिए जो कार आ रही है उसके बारे में भी बहुत कुछ छापा है जिसका वर्णन करना कुछ ज्यादा ही विस्तार हो जाएगा मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह कार मौत के अलावा सभी खतरों से सुरक्षित है । वैसे जब बुश यहाँ आए थे तो सुना है कि वे अपना पानी भी अपने साथ अमरीका से लाए थे और उनका मल-मूत्र भी एक विशेष टायलेट में विसर्जित हुआ और जिसे वापिस अमरीका ले जाया गया । साँस लेने के लिए हवा का हमें पता नहीं कि वे अमरीका से ही लाए थे या यहीं की हवा में साँस ली । आज से साढ़े दस साल पहले होली के मौके पर क्लिंटन भी आए थे मगर न तो हिलेरी को साथ लाए और न ही मोनिका लेवेंस्की को । सारा मज़ा किरकिरा कर लिया होली का । शायद इसी गम में मौर्या होटल में विशेष रूप से रखी गई शराब को भी हाथ तक नहीं लगाया ।
आप भी उसी मौर्या होटल में ठहरेंगे । जब क्लिंटन आए थे तब हम दिल्ली में ही थे, दिल्ली कैंट में । सो धौला कुआँ की तरफ आना-जाना होता रहता था । एक दिन हमने देखा कि मौर्या होटल के सामने की सड़क पर लोग फूलों के गमले रख जा रहे हैं । कारण पूछने पर पता लगा कि क्लिंटन आने वाले हैं । सो अब भी वह इलाका सज रहा होगा । एक दिन जुलाई की दोपहर को हम अपने मित्र के स्कूटर के पीछे बैठे इसी मौर्या होटल के सामने से गुजर रहे थे । हल्की-हल्की बूँदाबाँदी हुई थी । सड़क का पानी ढलक कर बरसाती नाले में जा रहा था । एक पागल सा लगने वाला गरीब आदमी उस पानी को अपनी अँजुरी में भरकर पी रहा था । उन दिनों पानी का एक गिलास पचास पैसे का मिलता था और निश्चित ही उस आदमी के पास इतने पैसे नहीं थे । और पानी की प्याऊ लगवाना तो पुराने ज़माने की पिछड़ी बात है । उसका इस उपभोक्तावाद और मुक्त बाज़ार में कहाँ स्थान ? इस पानी पीने का कारण उसका पागलपन नहीं, गरीबी थी क्योंकि कोई भी इतना पागल नहीं होता । तब भी यह देश एक उभरती शक्ति और सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे बड़ा बाज़ार था । अब तो राष्ट्र मंडल खेलों के चक्कर में ऐसे ग़रीबों को दूर ले जाकर पटक दिया था । अब तक तो क्या लौट कर आए होंगे ? आ गए होंगे तो भी मौर्या होटल तक तो उनका पहुँचना असंभव है ।
आप अपने कार्यक्रम में मुम्बई में मणि भवन के उस संग्रहालय को भी देखेंगे जिसमें महात्मा गाँधी कभी रहे थे और स्वदेशी, खिलाफत और असहयोग जैसे आन्दोलनों की रूपरेखा बनाई थी । देख लीजिए । अब इस देश में गाँधी इतना ही बच गया है ? हो सकता है कि किसी दिन इतना भी न बचे क्योंकि हम बड़ी तेजी से प्रगति कर रहे हैं और इस प्रगति में उस बूढ़े के लिए कोई जगह नहीं है । अब हमारे यहाँ भी स्कूल और कालेज के ४० प्रतिशत बच्चे दारू पीने लगे हैं, पढ़ाई की जगह स्कूलों में सौंदर्य प्रतियोगिताएँ और सेक्स एज्यूकेशन शुरु हो गई है, विश्वविद्यालयों में कंडोम बेचने वाली मशीनें लग गई हैं, कुँवारे मातृत्व, समलैंगिकता और लिव-इन-रिलेशनशिप के पक्ष में तथाकथित बुद्धिजीवी अभियान चला रहे हैं ।
आपका स्वर्ण-मंदिर जाने का कार्यक्रम भी था मगर आपके वहाँ के बुद्धिजीवियों ने बताया कि इससे गलत सन्देश जा सकता है । सर पर कपड़ा बाँधने से मुसलमान की सी झलक आ सकती है जो कि अमरीका के मुस्लिम-विरोधी लोगों को पसंद न आए । इससे पहले भी आपके नाइजीरिया में वहाँ की ड्रेस पहने हुए फोटो को लेकर चुनाव प्रचार में बड़ा हल्ला मचाया गया था । यह ठीक है कि आपके स्वर्णमंदिर जाने से सरदार प्रकाश सिंह बादल का कद कुछ और बढ़ जाता पर आप यहाँ न तो चुनाव के लिए कोई सर्व-धर्म-सम-भाव के लिए आ रहे हैं और न ही किसी तीर्थ यात्रा पर और न ही किसी का कद बढ़ाने । आप तो धंधा करने आ रहे हैं । सो उसी पर ध्यान देना है । फालतू के चक्करों में पड़ने से क्या फायदा । हाँ, यदि कोई दस-बीस हज़ार करोड़ का सौदा होता तो बात और थी । तब तो गुरूद्वारे में क्या, गटर में भी जाया जा सकता था ।
हमारे यहाँ की बात और है । हमारे यहाँ के नेताओं को ऐसे सर्व-धर्म-समभाव के नाटक करने में ही अपना भविष्य दिखाई देता है । जिसे देखो इफ्तार की दावत देने लग जाता है, भले ही कोई उन्हें एकादशी पर फलाहार न करवाए । हज़ पर सब्सीडी तो खैर मिलती ही है । वैसे हम आपको अपने बचपन की बातें बताते चलें । ये बातें आजादी के दस-पन्द्रह साल बाद तक की हैं । तब न तो किसी मुसलमान को किसी खास तरह की दाढ़ी रखने की ज़रूरत महसूस होती थी और न ही किसी हिंदू को चोटी और तिलक की । हम बीमार होते थे तो माँ मस्जिद में जाकर मुल्ला जी से डोरा बनवा लाती थी । शीतला माता के मेले में हिंदू मुसलमान सभी गाते हुए जाते थे । हमारे एक शायर मित्र हैं जो पूजा करते हैं । एक और कवि हैं बशीर अहमद मयूख जिन्होंने वेदों का उर्दू में अनुवाद किया है । वे अपने घर में राम, कृष्ण, शिव की मूर्तियाँ रखकर मंदिर बनाए हुए हैं । हमारे एक सहपाठी का नाम लीलाधर था । उसके यहाँ शादी में वे ही गीत गाए जाते थे जो हिंदुओं के यहाँ गाए जाते हैं । अब भी हमारे इलाके में बहुत से मुसलमानों के सरनेम पवार, चौहान, गौड़ आदि हैं । पर जब से अमरीका ने रूस को घेरने के लिए मध्यपूर्व में कट्टर पंथी इस्लाम को बढ़ावा दिया, मुसलमान काम के लिए अरब देशों में जाने लगे और उनके साथ पेट्रो डालर और कट्टरता आने लगी और फिर उसके ज़वाब में हमारे यहाँ के कुछ हिंदुओं ने कट्टरता में अपना राजनीतिक भविष्य देखना शुरु किया और उसकी परिणति मंदिर विवाद में हुई तब से इस देश की एकता को असली झटका लगा । जिसकी धमक आज सारी दुनिया में सुनाई दे रही है । और अमरीका भी अपने पैदा किए हुए इस जिन्न से बुरी तरह से घबराया हुआ है । सच पूछें तो साधारण आदमी आज भी कट्टर नहीं है और मिल कर रहना चाहता है ।
वैसे कोई भी राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री हो, आजकल उसे अपने देश के सेठों के लिए सामान बेचने का काम ही करना पड़ता है । चाहे आप हों या क्लिंटन या फिर किसी और देश का राष्ट्रपति हो । हम आपको कोई हथियार, कारें, कोकाकोला बेचकर तो पैसे कमा नहीं सकते । हमारे पास तो बेचारे पढ़े लिखे लड़के हैं जो सस्ते दामों पर आपके देशों में नौकरी कर रहे हैं और ऊपर से नस्ली घृणा का शिकार हो रहे है सो अलग । तिस पर मुक्त बाज़ार के मसीहा आप अपने ओहायो राज्य में आउट सोर्सिंग पर प्रतिबन्ध लगाते हैं । और अपने बच्चों के यह कहते हैं कि ये भारत वाले तुम्हारी नौकरियाँ छीन रहे हैं जैसे कि ये कोई डाकू हों । आपके देश को तो माल बिकवाने वाला चाहिए । उसे और किसी अच्छी बुरी बात से कोई मतलब नहीं , भले ही कोई राष्ट्रपति क्लिंटन की तरह लम्पट ही क्यों ना हो ।
खैर, जी आप बुरा नहीं मानिएगा । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, भले ही विकिलीक वाले को आपके देश में जान का खतरा हो ।
तो दिवाली की फिर बधाई । जय राम जी की ।
२९-१०-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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ओमामा सारी ओबामा के साथ आपको भी दीपावलि की बधाई...
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