Nov 4, 2010
पचास लाख में चश्मे की नीलामी
आज जब रोज हजारों करोड़ की रिश्वत, घोटालों और निवेश की खबरें पढ़ते है तो हमें उस दिन को याद करके हँसी आ जाती है जब हम रिटायर होने वाले थे । बड़े बाबू ने हिसाब लगाकर बताया था-गुरु जी, आपको रिटायरमेंट पर पूरे पाँच लाख मिलेंगे । हमने कहा- बड़े बाबू, उस समय आप हमारे साथ रहना क्योंकि हमारी गणित कमज़ोर है । क्या पता, गिनने में गलती हो जाए । जब बड़े बाबू ने बताया कि यह रकम आपको नकद नहीं मिलेगी बल्कि आपके बैंक खाते में जमा होगी तब कहीं जाकर तसल्ली हुई । चलो,जितना आसानी से गिना जा सके उतना ही थोड़ा-थोड़ा करके निकलवाते रहेंगे ।
तभी तोताराम ने हमारा ध्यान भंग किया- मास्टर, तेरा चश्मा कितने में बेचेगा ?
हमने कहा- बेचना क्या है, तू ऐसे ही ले जा । इसके ग्लास बोतल के पेंदे जैसे हैं और इतने भारी कि दो चार मिनट में ही नाक दुखने लग जाती है । पोती भी कह रही थी- बाबा, अब इस चश्मे को छोड़ दो नया बनवा लो । छोड़ना तो है ही ।
बोला- फिर तू अखबार कैसे पढ़ेगा ? दूसरा है क्या ?
हमने उत्तर दिया- अब अखबार पढ़ने के कोई सेन्स नहीं है । रोज एक जैसी खबरें आती हैं । सवेरे-सवेरे वही हत्या, गबन, घोटाले, एक्सीडेंट, बलात्कार, चोरी, डाका पढ़-पढ़ कर जी घबराने लगता है । और जब से यह पढ़ा है कि शहीदों की विधवाओं के मकान भी मुख्य मंत्री और जनरल हड़प गए तो डर लगने लग गया है । कलियुग क्या, महाकलियुग आ गया है । सोचते हैं, अखबार पढ़ना ही छोड़ दें । वैसे कभी कभार कोई चिट्ठी-पत्री लिखनी हुई तो देख विचारेंगे । नया बनवा लेंगे । तू तो इसे ले ही जा ।
तोतराम बोला- बंधु, मैं कोई चीज मुफ्त में नहीं लेता । तेरे चश्मे की नीलामी करते हैं । जितने मिल जाएँ, तेरे ।
अब हमें भी इस खेल में मजा आने लगा था । सो पत्नी से चश्मा मँगवाया । चश्मा हमारे सामने स्टूल पर रख दिया गया । तोताराम ने हमारी पत्नी से कहा- भाभी, आप यहीं रुको । गवाह के हस्ताक्षर भी तो होंगे । चाय नीलामी के बाद बना लेना । आप बिडर होंगी । तो बोलो, मास्टर रमेश जोशी के चश्मे की रिज़र्व प्राइस है बयालीस लाख एक रुपए ।
पत्नी भी इस खेल में शामिल हो गई और अंदर से बेलन ले आई और दो-तीन बार स्टूल पर ठोंक कर बोली- चिक्की के दादाजी के चश्मे की रिजर्व बोली है बयालीस लाख एक रुपए । जो भी सज्जन इससे ज्यादा की बोली लगाना चाहते हैं, लगा सकते हैं ।
पत्नी की आवाज़ की गूंज भी खत्म नहीं हुई थी कि तोताराम बोल पड़ा- पचास लाख । और कोई चौथा व्यक्ति उस समय आसपास भी नहीं था सो अगली बोली लगने की संभावना नहीं थी । पत्नी ने फिर तीन बार स्टूल पर बेलन ठोंका- पचास लाख एक, पचास लाख दो, पचास लाख तीन । और घोषणा कर दी कि पचास लाख में चश्मा तोताराम जी का हुआ ।
तोताराम ने कहा- भाभी, आप गवाह रहना । और अपनी जेब से चेक निकाल कर हमारे हाथ पर रख दिया । पूरे पचास लाख की रकम लिखी हुई थी ।
हमने कहा- तोताराम, यह नाटक ठीक तेरी योजना के अनुसार पूरा हुआ पर हमें यह बात अभी तक समझ में नहीं आई कि तुमने चश्मे की बोली बयालीस लाख एक रुपए ही क्यों लगाई ? इतनी बड़ी बोली में एक रुपए का क्या महत्व है ? पूरे बयालीस लाख क्यों नहीं रखा ?
कहने लगा- बात एक नहीं, एक लाख रुपए की भी नहीं है । मुझे तो अपने मास्टर का एक रिकार्ड बनवाना था सो बनवा दिया । अरे, जब सचिन का पुराना बल्ला बयालीस लाख में बिक सकता है तो एक राष्ट्र निर्माता का वह चश्मा जिससे उसने देश के लिए बड़े-बड़े सपने देखे हैं, बयालीस लाख से अधिक में क्यों नहीं बिक सकता ? इतना कह कर उसने पचास लाख का एक चेक हमारे हाथ पर रख दिया । अब तो तोताराम की इस मजाक की योजना पूरी तरह से स्पष्ट हो गई । यदि यह नाटक नहीं होता तो उसे क्या पता था कि चश्मा पचास लाख में नीलाम होगा ।
हमने कहा- तोताराम, तेरे खाते में तो पचास लाख पैसे भी नहीं हैं फिर यह चेक काटने का क्या मतलब ? मान ले यह चेक हमने बैंक में डाल दिया तो ?
कहने लगा- मास्टर, ऐसा मत करना नहीं तो मुझे जेल की सजा हो जाएगी । इस देश में भले ही करोड़ों-अरबों का घपला करने वालों पर कार्यवाही न हो, देशद्रोहियों को फाँसी देने का निर्णय लेने में बरसों लग जाए मगर चेक अनादरण के मामले में फटाफट सजा हो जाएगी । प्लीज, बैंक में मत डाल देना ।
हम इस चेक को कौन सा बैंक में डालने वाले थे हम तो तोताराम से मज़ाक कर रहे थे । हमने वह चेक पता नहीं कहाँ रख दिया जैसे कि बच्च्चों के चूरण की पुड़िया में निकलने वाले खेलने के नोट ।
३१-१०-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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सजा देने का भी अपना-अपना पैमाना है..
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