Nov 19, 2010

जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी


चार-पाँच दिन से अखबार में ओबामा-ओबामा पढ़कर खोपड़ी भन्ना गई । मीडिया की हालत भक्त प्रह्लाद जैसी हो रही थी- खंभ में राम, खड्ग में राम, मुझमें राम, तुझमें राम । जहाँ देखूँ तहँ राम ही राम । ऐसी हालत तो राम के वनवास की अवधि समाप्त होने पर अयोध्यावासियों की भी नहीं हुई होगी । जैसे ही ९ तारीख़ को तोताराम आया, हम उसी पर पिल पड़े- पहुँचा आया, महामहिम को जकार्ता ?

वह पट्ठा भी कौन-सा चूकने वाला था, बोला- क्या किया जाए, जब प्लेन में सलमान खुर्शीद के लिए ही जगह नहीं थी तो मैं कहाँ से घुस जाता । हाँ, जगह होती तो पहुँचा आने में क्या बुराई थी । वे जब हमारे लिए इतनी दूर से लाव-लश्कर के साथ, इतना खर्चा करके, उड़ कर आ सकते हैं तो क्या हम इतने गए-गुजरे हैं कि जकार्ता तक छोड़ कर भी नहीं आ सकते ?

हमने कहा- वे न तो तेरे दर्शन करने आए थे और न ही तुझे दर्शन देने । उनके देश की तो आजकल हालत ज़रा ऐसे ही चल रही है सो कुछ न कुछ बेचने आए थे सो बेच गए दस अरब डालर का माल और रोज़ ९०० करोड़ का सुरक्षा व्यवस्था का खर्चा करवा गए सो अलग ।



तोताराम कहने लगा- अरे, हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं । हमारे लिए दस अरब क्या बड़ी चीज़ है । ७९ हज़ार करोड़ रुपए तो हमने अभी-अभी खेलों में खर्चे हैं और यदि मिल जाए तो ओलम्पिक करवाने का माद्दा भी रखते हैं । हजारों करोड़ का तो हमारे यहाँ अनाज खुले में पड़े सड़ जाता है । आज मित्र यदि थोड़ा परेशानी में है तो क्या हुआ ? उसके यहाँ आजकल बहुत बेकारी चल रही है, सौ-पचास हजार लोगों को रोजगार मिल जाएगा । लोग दुआ देंगे । वैसे अमरीका के लिए तेरे ये दस अरब डालर कोई बड़ी रकम भी नहीं है । तुझे पता है, उस पर आज भी 1345 अरब डालर का कर्जा है । यह तो घर आए को हाथ का उत्तर देने वाली बात थी ।

हमने कहा- बेकार तो अपने यहाँ भी चार करोड़ हैं । उनकी फ़िक्र क्यों नहीं करते ?

कहने लगा- अपने यहाँ तो लोगों को आदत है बेकारी की । नौकरी पर होते हैं तो ही कौन-सा काम करके निहाल करते हैं ? और फिर ‘नरेगा’ और ‘बी.पी.एल.’ में सारी सुविधाएँ दे तो रखी हैं । वहाँ के लोगों का खर्चा बहुत है भैया । बिना दारू पिए लोगों से खाना नहीं खाया जाता । कार भी सभी को मेंटेन करनी पड़ती है । सो क्या हो गया थोड़ी-बहुत मदद कर दी तो । तुलसीदास जी ने भी कहा है- “जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी । तिनहिं विलोकत पातक भारी । । ”

और फिर यह १० अरब डालर कोई दान में थोड़े ही दिए हैं । अगला बदले में माल भी तो देगा । भले ही लोगों को दाल-रोटी न मिलें पर शक्ति संतुलन के नाम पर हथियार तो खरीदने ही पड़ेंगे, अमरीका से नहीं तो फ़्रांस से, फ़्रांस से नहीं तो ब्रिटेन से । और फिर अपने यहाँ के लोगों को भी तो रोजगार मिलेगा ही- इन प्लेनों को चलाने में, इनकी सफाई करने में, इनमें तेल-पानी भरने में । अमरीका ने भी तो पी.एल. ४८० के तहत हमारी मदद की थी जब स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय हमारे यहाँ अनाज की कमी थी तब । भले ही गेंहूँ लाल था, आटा गूँदने पर रबड़ की तरह खिंचता था, थोड़ी ही देर में रोटी एकदम चीमड़ हो जाती थी, उसके साथ गाजर घास के बीज भी आ गए थे पर बखत पर काम तो चल गया । और फिर तू यह क्यों भूल जाता है कि ओबामा जी ने हमें बराबर का दर्जा दिया है । संसार से आतंकवाद मिटाने के लिए हमारे महत्व को रेखांकित किया है ।

हमने कहा- तोताराम, हमें तो लगता है, अमरीका हमें बाँस पर चढ़ा रहा है । हमें अफ़गानिस्तान में उलझाकर खुद खिसक जाएगा । हम में वही मियाँ जी वाली होगी कि 'नमाज़ छुड़ाने गए थे और रोज़े गले पड़ गए' ।

तोताराम ने एक ही वाक्य में हमारा मुँह बंद कर दिया, बोला- जब इतना ही डर लगता है तो महाशक्ति बनने का मोह क्यों पाल रहा है ? जब अपने दरवाजे सँकडे हों तो महावतों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए । महाशक्ति का मतलब होता है बात और बिना बात हर किसी फ़टे में टाँग फँसाना, न खुद जीना और न दूसरों को सुख से जीने देना ।

१०-११-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

2 comments:

  1. काहे की महाशक्ति... खामखाह बौराना...
    पटक की जगह पातक होगा...

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  2. आपके कटाक्ष करने के तरीके का मै तो कायल हो गया
    dabirnews.blogspot.com

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