चार-पाँच दिन से अखबार में ओबामा-ओबामा पढ़कर खोपड़ी भन्ना गई । मीडिया की हालत भक्त प्रह्लाद जैसी हो रही थी- खंभ में राम, खड्ग में राम, मुझमें राम, तुझमें राम । जहाँ देखूँ तहँ राम ही राम । ऐसी हालत तो राम के वनवास की अवधि समाप्त होने पर अयोध्यावासियों की भी नहीं हुई होगी । जैसे ही ९ तारीख़ को तोताराम आया, हम उसी पर पिल पड़े- पहुँचा आया, महामहिम को जकार्ता ?
वह पट्ठा भी कौन-सा चूकने वाला था, बोला- क्या किया जाए, जब प्लेन में सलमान खुर्शीद के लिए ही जगह नहीं थी तो मैं कहाँ से घुस जाता । हाँ, जगह होती तो पहुँचा आने में क्या बुराई थी । वे जब हमारे लिए इतनी दूर से लाव-लश्कर के साथ, इतना खर्चा करके, उड़ कर आ सकते हैं तो क्या हम इतने गए-गुजरे हैं कि जकार्ता तक छोड़ कर भी नहीं आ सकते ?
हमने कहा- वे न तो तेरे दर्शन करने आए थे और न ही तुझे दर्शन देने । उनके देश की तो आजकल हालत ज़रा ऐसे ही चल रही है सो कुछ न कुछ बेचने आए थे सो बेच गए दस अरब डालर का माल और रोज़ ९०० करोड़ का सुरक्षा व्यवस्था का खर्चा करवा गए सो अलग ।
हमने कहा- बेकार तो अपने यहाँ भी चार करोड़ हैं । उनकी फ़िक्र क्यों नहीं करते ?
कहने लगा- अपने यहाँ तो लोगों को आदत है बेकारी की । नौकरी पर होते हैं तो ही कौन-सा काम करके निहाल करते हैं ? और फिर ‘नरेगा’ और ‘बी.पी.एल.’ में सारी सुविधाएँ दे तो रखी हैं । वहाँ के लोगों का खर्चा बहुत है भैया । बिना दारू पिए लोगों से खाना नहीं खाया जाता । कार भी सभी को मेंटेन करनी पड़ती है । सो क्या हो गया थोड़ी-बहुत मदद कर दी तो । तुलसीदास जी ने भी कहा है- “जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी । तिनहिं विलोकत पातक भारी । । ”
और फिर यह १० अरब डालर कोई दान में थोड़े ही दिए हैं । अगला बदले में माल भी तो देगा । भले ही लोगों को दाल-रोटी न मिलें पर शक्ति संतुलन के नाम पर हथियार तो खरीदने ही पड़ेंगे, अमरीका से नहीं तो फ़्रांस से, फ़्रांस से नहीं तो ब्रिटेन से । और फिर अपने यहाँ के लोगों को भी तो रोजगार मिलेगा ही- इन प्लेनों को चलाने में, इनकी सफाई करने में, इनमें तेल-पानी भरने में । अमरीका ने भी तो पी.एल. ४८० के तहत हमारी मदद की थी जब स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय हमारे यहाँ अनाज की कमी थी तब । भले ही गेंहूँ लाल था, आटा गूँदने पर रबड़ की तरह खिंचता था, थोड़ी ही देर में रोटी एकदम चीमड़ हो जाती थी, उसके साथ गाजर घास के बीज भी आ गए थे पर बखत पर काम तो चल गया । और फिर तू यह क्यों भूल जाता है कि ओबामा जी ने हमें बराबर का दर्जा दिया है । संसार से आतंकवाद मिटाने के लिए हमारे महत्व को रेखांकित किया है ।
हमने कहा- तोताराम, हमें तो लगता है, अमरीका हमें बाँस पर चढ़ा रहा है । हमें अफ़गानिस्तान में उलझाकर खुद खिसक जाएगा । हम में वही मियाँ जी वाली होगी कि 'नमाज़ छुड़ाने गए थे और रोज़े गले पड़ गए' ।
तोताराम ने एक ही वाक्य में हमारा मुँह बंद कर दिया, बोला- जब इतना ही डर लगता है तो महाशक्ति बनने का मोह क्यों पाल रहा है ? जब अपने दरवाजे सँकडे हों तो महावतों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए । महाशक्ति का मतलब होता है बात और बिना बात हर किसी फ़टे में टाँग फँसाना, न खुद जीना और न दूसरों को सुख से जीने देना ।
१०-११-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
काहे की महाशक्ति... खामखाह बौराना...
ReplyDeleteपटक की जगह पातक होगा...
आपके कटाक्ष करने के तरीके का मै तो कायल हो गया
ReplyDeletedabirnews.blogspot.com