युधिष्ठिर का विकल्प
हमने कहा- भीष्म के मुँह पर सत्ता का ताला लगा हुआ है तो द्रोण को नौकरी का डर |कृष्ण तो लीलाधारी हैं कुछ भी करने को स्वतंत्र | दुर्योधन को कुर्सी दीखे तो कर्ण को प्रतिशोध |भीम को बोलने पर कम और गदा पर अधिक विश्वास |अब सच बोले तो कौन ? इसलिए पूरे महाभारत में युधिष्ठिर का कोई विकल्प नहीं है |
तोताराम बोला- वास्तव में युधिष्ठिर का विकल्प होता तो गजेन्द्र चौहान को क्यों लाते ? लाना तो वे अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, गुलज़ार या अनुपम खेर को चाहते थे लेकिन उनके पास अभिनय की शिक्षा देने से अधिक महत्त्वपूर्ण और कई काम हैं इसलिए वे पूरा समय नहीं दे सकते थे | स्कूल, कालेजों और अकादमियों में तो वे हीआएँगे जिन्हें अब और कहीं कोई काम नहीं मिलता जैसे कि चुनाव में हारे या जमानत ज़ब्त हुए या निदेशक मंडल के लायक हो चुके नेता राज्यपाल बनाए जाते हैं |
हमने कहा- हम तो वास्तव में युधिष्ठिर की बात कर रहे थे और तू उसे राजनीति में ले गया |
बोला- हम तो सार-सार को ग्रहण करते हैं और थोथा उड़ा देते हैं |अब इसमें काम की बात यह है कि हम दोनों फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया के निदेशक के पद के लिए अप्लाई कर देते हैं | गजेन्द्र चौहान पूरा समय देगा इसकी क्या गारंटी है ? हम तो एक के साथ एक फ्री का ऑफर देंगे | सुविधा लेंगे एक की और काम करेंगे मैं और तू दोनों और वह भी दिन में आठ घंटे क्या, चौबीस घंटे - बारह घंटे तू और बारह घंटे मैं | और तनख्वाह कुछ नहीं | सोच, सरकार को कितना फायदा होगा और सिनेमा और टेलीविज़न का स्तर एक ही झटके में कितना ऊँचा उठ जाएगा ?
हमने कहा- सिनेमा के स्तर की चिंता तो व्यर्थ है | वह बिना किसी प्रशिक्षण के भी ऊँचा उठता ही जा रहा है | बस, विज्ञापन मिलते रहें | तेल, साबुन, शैम्पू, एक मुखी रुद्राक्ष के विज्ञापन न मिले तो सरकारें अपनी इमेज बनाने के लिए देंगी |आजकल व्यापार ही नहीं, सरकारें भी विज्ञापन के बल पर चलने लगी हैं | लेकिन यदि कोई पूछेगा कि अभिनय का क्या अनुभव है तो क्या ज़वाब देंगे ?
कहने लगा- अभिनय का मतलब है-वह करना जो आप नहीं हैं जैसे नेता सेवा का और हीरो एक आदर्श व्यक्ति होने का अभिनय करते हैं | वैसे सब जानते हैं कि कोई हीरो आयकर के फॉर्म में अपनी असली फीस नहीं दिखाता | गजेन्द्र चौहान ने तो युधिष्ठिर का पार्ट किया | उसमें क्या अभिनय हुआ ? अरे, सच तो कोई भी बोल सकता है | असली अभिनय तो झूठ बोलने में है | बड़े-बड़े 'लाई डिटेक्टर' से घबराते हैं |कुछ ही ऐसे होते हैं जो उस यंत्र को भी फेल कर सकते हैं |
हमने तो जीवन भर अभिनय ही किया है | घोंचू और दुष्ट प्रिंसिपल को महान शिक्षाशास्त्री बताया है | दुष्ट और लम्पट मुख्य अतिथियों के नीचता में लिथड़े हाथों को कर-कमल कहा है | तो हमसे बड़ा अभिनेता कौन हो सकता है ?
हमने कहा- लेकिन जब तनख्वाह नहीं लेंगे तो केवल रहना और खाना यहाँ भी कौनसा भारी है | चार के साथ एक आदमी का खाना तो वैसे ही निकल आता है और रही बात रहने की तो यहाँ कौनसा मकान का किराया लगता है ? मेरे ख्याल से तो बिना बात मुम्बई में धक्के खाकर क्या करेंगे ?
बोला- इसमें एक सबसे बड़ी बात यह है कि आजकल बॉलीवुड में बहुत सी अहिन्दी भाषी और विदेशी अभिनेत्रियाँ आती हैं और उन्हें हिंदी सिखाने के लिए अच्छे हिंदी-अध्यापकों की बड़ी माँग है | यदि सन्नी लियोन जैसी किसी का ट्यूशन मिल गया तो बुढ़ापा सुधर जाएगा |
हम अपना क्रोध प्रकट करते तब तो तोताराम जा चुका था |
हमने कहा- भीष्म के मुँह पर सत्ता का ताला लगा हुआ है तो द्रोण को नौकरी का डर |कृष्ण तो लीलाधारी हैं कुछ भी करने को स्वतंत्र | दुर्योधन को कुर्सी दीखे तो कर्ण को प्रतिशोध |भीम को बोलने पर कम और गदा पर अधिक विश्वास |अब सच बोले तो कौन ? इसलिए पूरे महाभारत में युधिष्ठिर का कोई विकल्प नहीं है |
तोताराम बोला- वास्तव में युधिष्ठिर का विकल्प होता तो गजेन्द्र चौहान को क्यों लाते ? लाना तो वे अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, गुलज़ार या अनुपम खेर को चाहते थे लेकिन उनके पास अभिनय की शिक्षा देने से अधिक महत्त्वपूर्ण और कई काम हैं इसलिए वे पूरा समय नहीं दे सकते थे | स्कूल, कालेजों और अकादमियों में तो वे हीआएँगे जिन्हें अब और कहीं कोई काम नहीं मिलता जैसे कि चुनाव में हारे या जमानत ज़ब्त हुए या निदेशक मंडल के लायक हो चुके नेता राज्यपाल बनाए जाते हैं |
हमने कहा- हम तो वास्तव में युधिष्ठिर की बात कर रहे थे और तू उसे राजनीति में ले गया |
बोला- हम तो सार-सार को ग्रहण करते हैं और थोथा उड़ा देते हैं |अब इसमें काम की बात यह है कि हम दोनों फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया के निदेशक के पद के लिए अप्लाई कर देते हैं | गजेन्द्र चौहान पूरा समय देगा इसकी क्या गारंटी है ? हम तो एक के साथ एक फ्री का ऑफर देंगे | सुविधा लेंगे एक की और काम करेंगे मैं और तू दोनों और वह भी दिन में आठ घंटे क्या, चौबीस घंटे - बारह घंटे तू और बारह घंटे मैं | और तनख्वाह कुछ नहीं | सोच, सरकार को कितना फायदा होगा और सिनेमा और टेलीविज़न का स्तर एक ही झटके में कितना ऊँचा उठ जाएगा ?
हमने कहा- सिनेमा के स्तर की चिंता तो व्यर्थ है | वह बिना किसी प्रशिक्षण के भी ऊँचा उठता ही जा रहा है | बस, विज्ञापन मिलते रहें | तेल, साबुन, शैम्पू, एक मुखी रुद्राक्ष के विज्ञापन न मिले तो सरकारें अपनी इमेज बनाने के लिए देंगी |आजकल व्यापार ही नहीं, सरकारें भी विज्ञापन के बल पर चलने लगी हैं | लेकिन यदि कोई पूछेगा कि अभिनय का क्या अनुभव है तो क्या ज़वाब देंगे ?
कहने लगा- अभिनय का मतलब है-वह करना जो आप नहीं हैं जैसे नेता सेवा का और हीरो एक आदर्श व्यक्ति होने का अभिनय करते हैं | वैसे सब जानते हैं कि कोई हीरो आयकर के फॉर्म में अपनी असली फीस नहीं दिखाता | गजेन्द्र चौहान ने तो युधिष्ठिर का पार्ट किया | उसमें क्या अभिनय हुआ ? अरे, सच तो कोई भी बोल सकता है | असली अभिनय तो झूठ बोलने में है | बड़े-बड़े 'लाई डिटेक्टर' से घबराते हैं |कुछ ही ऐसे होते हैं जो उस यंत्र को भी फेल कर सकते हैं |
हमने तो जीवन भर अभिनय ही किया है | घोंचू और दुष्ट प्रिंसिपल को महान शिक्षाशास्त्री बताया है | दुष्ट और लम्पट मुख्य अतिथियों के नीचता में लिथड़े हाथों को कर-कमल कहा है | तो हमसे बड़ा अभिनेता कौन हो सकता है ?
हमने कहा- लेकिन जब तनख्वाह नहीं लेंगे तो केवल रहना और खाना यहाँ भी कौनसा भारी है | चार के साथ एक आदमी का खाना तो वैसे ही निकल आता है और रही बात रहने की तो यहाँ कौनसा मकान का किराया लगता है ? मेरे ख्याल से तो बिना बात मुम्बई में धक्के खाकर क्या करेंगे ?
बोला- इसमें एक सबसे बड़ी बात यह है कि आजकल बॉलीवुड में बहुत सी अहिन्दी भाषी और विदेशी अभिनेत्रियाँ आती हैं और उन्हें हिंदी सिखाने के लिए अच्छे हिंदी-अध्यापकों की बड़ी माँग है | यदि सन्नी लियोन जैसी किसी का ट्यूशन मिल गया तो बुढ़ापा सुधर जाएगा |
हम अपना क्रोध प्रकट करते तब तो तोताराम जा चुका था |
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