.....इंसाँ होना
ग़ालिब का एक प्रसिद्ध शे'र है-
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना |
कल रात समाचारों में सुना कि कलाम साहब नहीं रहे | हमेशा रहने को तो कौन आता है लेकिन कुछ लोगों को जाना बहुत मायूस कर जाता है | तुलसीदास जी के अनुसार दुष्ट और संत दोनों की दारुण दुःख देते हैं- दुष्ट मिलने पर और संत बिछड़ने पर | आज ऐसा ही दुःख हो रहा था |
आज जब छोटे-मोटे नेता भी किसी भी पुलिस वाले या कर्मचारी को थप्पड़ मार देते हैं, गलियाँ देते हैं, हर समय दूसरों की निंदा करते हैं, छोटे मुँह बड़ी बातें करते हैं, अपने छोटेपन की कुंठा के कारण खरबों के महल,अरबों की शादियाँ और लाखों के कपड़े और घड़ियाँ पहन अकड़ कर घूमते हैं, जनता के धन को निर्दयता पूर्वक अपने मौज़-शौक पर खर्च करते हैं तब रामेश्वरम (राम के ईश्वर अर्थात शिव) के इस शिव-सदृश संत का गुज़र जाना समस्त दुनिया की क्षति है जिसे उनके आदर्शों को थोड़ा सा भी अपना कर ही पूरा किया जा सकता है यदि कोई अपना सके तो |
आज तोताराम आया तो न हम कुछ बोले और न वह | दोनों एक दूसरे की मनःस्थिति समझ रहे थे |
कुछ देर बाद बोला- मास्टर, आज जब लोग अपने झूठे-सच्चे कष्टों का राग गा-गा कर उसे पता नहीं, कब तक भुनाते रहेंगे; ऐसे में कभी भी अपनी चर्चा न करने का कमाल करने वाले कलाम वास्तव में युगों में एक पैदा होते हैं |एक बार पंच बन जाने वाला ज़िन्दगी भर 'भूतपूर्व पंच' का तमगा लगाकर या जिसकी पत्नी पञ्च बन जाती है तो 'पंचपति' बना घूमता है ऐसे समय में एक भारत-रत्न, राष्ट्रपति अपने आपको 'अध्यापक' के रूप में याद किए जाने की तमन्ना रखता है | क्या आने वाले समयों में कोई विश्वास करेगा ?
हमने कहा- तोताराम, कलाम ने कभी निजी या सरकारी खर्चे पर तीर्थयात्रा करके धर्म का आडम्बर नहीं किया | इफ्तार के नाम पर राजनीति करने के इस घटिया दौर में कभी इफ्तार की दावत नहीं दी | उसके बदले इफ्तार के नाम से राष्ट्रपति को मिलने वाले पैसे में अपनी तरफ से एक लाख रुपया मिलाकर अनाथालय के बच्चों के लिए कम्बल और मिठाई भिजवाना बड़ी बात है, उससे भी अधिक आज के छोटे मन के बड़े नेताओं के लिए एक बड़ा कमेंट भी |
तोताराम उठते हुए बोला-मास्टर, अब रहने दे |किन लोगों की बात ले बैठे हम भी | | कुछ समय तो माहौल को कलाममय रहने दे |
आज पहला मौका था जब तोताराम ने चाय नहीं पी |और सच हमें भी आज चाय की तलब नहीं है |
ग़ालिब का एक प्रसिद्ध शे'र है-
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना |
कल रात समाचारों में सुना कि कलाम साहब नहीं रहे | हमेशा रहने को तो कौन आता है लेकिन कुछ लोगों को जाना बहुत मायूस कर जाता है | तुलसीदास जी के अनुसार दुष्ट और संत दोनों की दारुण दुःख देते हैं- दुष्ट मिलने पर और संत बिछड़ने पर | आज ऐसा ही दुःख हो रहा था |
आज जब छोटे-मोटे नेता भी किसी भी पुलिस वाले या कर्मचारी को थप्पड़ मार देते हैं, गलियाँ देते हैं, हर समय दूसरों की निंदा करते हैं, छोटे मुँह बड़ी बातें करते हैं, अपने छोटेपन की कुंठा के कारण खरबों के महल,अरबों की शादियाँ और लाखों के कपड़े और घड़ियाँ पहन अकड़ कर घूमते हैं, जनता के धन को निर्दयता पूर्वक अपने मौज़-शौक पर खर्च करते हैं तब रामेश्वरम (राम के ईश्वर अर्थात शिव) के इस शिव-सदृश संत का गुज़र जाना समस्त दुनिया की क्षति है जिसे उनके आदर्शों को थोड़ा सा भी अपना कर ही पूरा किया जा सकता है यदि कोई अपना सके तो |
आज तोताराम आया तो न हम कुछ बोले और न वह | दोनों एक दूसरे की मनःस्थिति समझ रहे थे |
कुछ देर बाद बोला- मास्टर, आज जब लोग अपने झूठे-सच्चे कष्टों का राग गा-गा कर उसे पता नहीं, कब तक भुनाते रहेंगे; ऐसे में कभी भी अपनी चर्चा न करने का कमाल करने वाले कलाम वास्तव में युगों में एक पैदा होते हैं |एक बार पंच बन जाने वाला ज़िन्दगी भर 'भूतपूर्व पंच' का तमगा लगाकर या जिसकी पत्नी पञ्च बन जाती है तो 'पंचपति' बना घूमता है ऐसे समय में एक भारत-रत्न, राष्ट्रपति अपने आपको 'अध्यापक' के रूप में याद किए जाने की तमन्ना रखता है | क्या आने वाले समयों में कोई विश्वास करेगा ?
हमने कहा- तोताराम, कलाम ने कभी निजी या सरकारी खर्चे पर तीर्थयात्रा करके धर्म का आडम्बर नहीं किया | इफ्तार के नाम पर राजनीति करने के इस घटिया दौर में कभी इफ्तार की दावत नहीं दी | उसके बदले इफ्तार के नाम से राष्ट्रपति को मिलने वाले पैसे में अपनी तरफ से एक लाख रुपया मिलाकर अनाथालय के बच्चों के लिए कम्बल और मिठाई भिजवाना बड़ी बात है, उससे भी अधिक आज के छोटे मन के बड़े नेताओं के लिए एक बड़ा कमेंट भी |
तोताराम उठते हुए बोला-मास्टर, अब रहने दे |किन लोगों की बात ले बैठे हम भी | | कुछ समय तो माहौल को कलाममय रहने दे |
आज पहला मौका था जब तोताराम ने चाय नहीं पी |और सच हमें भी आज चाय की तलब नहीं है |
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