Jul 16, 2015

फ्री का फंडा उर्फ़ फंदा

    फ्री का फंडा 

 फ्री | कितना प्यारा शब्द है !  इसके सामने क्या तो कल्पवृक्ष और क्या कामधेनु  ? बिलकुल सिंहासनारूढ़ सत्ताधारी नेता की तरह | सब कुछ फ्री |१२ रूपए में खाना, चाहे जितनी बिजली जले, स्विच बंद करने की भी चिंता नहीं, न चीजों के भाव पूछने की ज़रूरत, न किसी चीज के लिए भुगतान करने की फ़िक्र | धोना, प्रेस करना ही नहीं कपड़े तक फ्री | इसीलिए लोग सारे कष्ट उठाकर, जान देकर भी फ्रीडम चाहते हैं | लेकिन फ्रीडम मिलती तो केवल नेताओं और धूर्तों को ही है | फ्री की दारु के चक्कर में ही वाइज़ बेवड़े बनते देखे हैं | फ्री का सोने का खंजर हो तो पेट में घोंप लेने का जी करता है | फ्री में तो ज़हर भी मिले तो मन होता है, उदरस्थ कर ही लें | मरना तो बिना खाए भी है ही |
इसी पर अपना एक शे'र याद आता है-
'गर मुफ्त में मिल जाय तो खा जाएं ज़हर भी |
पैसे लगें तो चार दिन खाना नहीं खाते 

हमें वह ज़माना याद है जब एक लोकल कॉल के ५० पैसे लगते थे और इतने ही पैसे में ४०० ग्राम मावे की बर्फी आ जाती थी | १९९० में जब डालर १७ रुपए का मिलता था तब एक मिनट अमरीका बात करने के ७० रुपए लगा करते थे |  हम तब भी मितव्ययी थे और आज भी जब ५० पैसे प्रति मिनट में बात हो जाती है |

कई दिनों से रेडियो पर सुन रहे हैं- अपनों से जी भर कर बातें करें और वह भी फ्री में-रात ९ बजे से सुबह ७ बजे तक |सो जैसे ही महँगाई भत्ते की बढ़ी किश्त का पाँच महिने का बकाया मिला तो लैंड लाइन का कनेक्शन लगवा ही लिया |जब तक कनेक्शन लगा दोपहर के तीन बज गए थे |सुबह होने तक का किसे  सब्र ? तत्काल तोताराम के घर पहुँच गए |

बोला-क्यों 'मेक इन इण्डिया' में निवेश करवाने आया है क्या ?

हमने कहा- वह तो देशभक्तों और विकास-पुरुषों का काम है |हम तो तुझे यह बताने आए हैं कि आज रात को नौ बजे से पहले सो मत जाना | नौ बजते ही हम तुम्हें फोन करेंगे |
कहने लगा- क्यों रात को नौ बजे क्यों ?  और फोन क्यों ? तुझे जो मन की बात कहनी है सो अभी कह दे |

हमने कहा- तोताराम, आज हमने लैंडलाइन फोन लगवा लिया है जिस पर रात को नौ बजे रात से सुबह सात बजे तक फ्री में बातें हो सकती हैं | हमने पहले तो जब भी बातें कीं तो बिल बढ़ने के भय से बहुत डरते-डरते | इस चक्कर में बहुत बार मुख्य बात तक भूल जाते थे लेकिन आज हम बिस्तर में लेटे-लेटे निश्चिन्त होकर बात करेंगे | 

घर आए और नौ बजने का इंतज़ार करने लगे | किसी तरह राम-राम करके नौ बजे और हमने तोताराम के नंबर डायल किए लेकिन यह क्या ? कोई रिंग नहीं | कई बार कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ | 

सुबह पाँच बजे ही तोताराम आ धमका, कहने लगा- यह क्या तमाशा है ? मैं रात को बारह बजे तक जागता रहा लेकिन तेरा कोई फोन नहीं |

हमने कहा- बन्धु, कोशिश तो बहुत की थी लेकिन कुछ भी नहीं हुआ | बस, सूँ-सूँ की आवाज़ आ रही थी जैसे कि योग करते-करते कोई मंत्री सो गया हो |


बोला- बन्धु, फ्री में आजकल मौत भी नहीं आती | यमदूत भी टी.ए.,डी.ए. माँगते हैं | सर्वव्यापी भगवान के दर्शन की भी दरें निश्चित हैं | गाँठ में दाम हों तो ठीक वरना फूटो | सरकारें फ्री की दवाइयों की बात करती है लेकिन उनके भी पूरे पैसे, करदाताओं से उगाहे गए धन से, सप्लायरों को दिए जाते हैं | यह और बात है कि दवा में मिट्टी-पानी जैसे प्राकृतिक तत्त्वों के अतिरिक्त कुछ नहीं होता | तभी डेट एक्सपायर होने पर संबंधित विभाग को उन्हें फिंकवाने का खर्चा और करना पड़ता है | और यदि किसी उत्साही डाक्टर ने उनका उपयोग कर भी लिया तो विलासपुर के परिवार नियोजन कैम्प जैसा हाल होता है | इन्फेक्शन से बचाने वाले इंजेक्शनों से ही इन्फेक्शन हो जाता है | जब के.ऍफ़.सी. और मेक्डोनाल्ड के उत्पादों में ही मुर्गे की जगह चूहा और फफूंद लगा बर्गर सप्लाई हो जाता है तो तथाकथित फ्री के मिड डे मील में छिपकली निकलने से दुखी नहीं होना चाहिए |  फ्री का जो  'फंडा' होता है वह हिंदी में आकर 'फंदा' उच्चरित और सिद्ध होता है |

हमने आर्त स्वर में पूछा- तो बन्धु, इस लैंड लाइन नामक वस्तु का क्या करें ?
बोला- जाकर अपनी सेक्योरिटी वापिस ले ले और इसे किसी कबाड़ी को बेच दे | कल कोई आया तो तेरी तरफ भेज दूंगा |

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