Jul 16, 2015

दावत-ए-इफ़्तार

 दावत-ए-इफ़्तार

हमारी गली में पोस्टमैन तभी आता है जब किसी की कोई रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट या मानी आर्डर हो |अखबार, पत्रिका या चिट्ठी-पत्री के लिए वह इधर आने का कष्ट नहीं करता | भगवान की कृपा कि उसने आज मात्र एक पच्चीस पैसे वाले 'मेघदूत' पोस्टकार्ड के लिए हमारा दरवाज़ा खटखटाया, बोला- मास्टर जी, इस पर नाम और  कोलोनी तो आपके हैं  लेकिन यह 'वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रीट' कौन सी है ?

 हमने कहा- यह तो अबकी बार आओगे तब बताएँगे लेकिन यह चिट्ठी हमारी ही है |

पोस्टमैन के जाते ही हमने पढ़ना शुरू किया-
दावत-ए-.इफ्तार
ज़नाब
आज हमारे गरीब खाने पर दावत-ए-इफ्तार का प्रोग्राम है जिसमें ज़नाब दिल,जिगर, फेफड़ा, घायल,ज़ख़्मी, बेनूर, गमगीन शामिल होंगे और मेहमान-ए-ख़ुसूसी होंगी मोहतरमा हुस्नबानो |
हमें आपका इंतज़ार रहेगा |
दस्तबस्ता आपका
आशिक

नीचे पता तो तोताराम के घर का था लेकिन और सब कुछ नया-नया |उत्सुकता इस कदर बढ़ी की शाम से पहले ही तोतार्म के घर पहुँच गए |
देखा तोताराम नमाज़ वाली सफ़ेद टोपी लगाए दरवाजे पर हाज़िर | बड़ी नजाकत से झुकते हुए बोला- खुशामदीद , ज़हे किस्मत, तशरीफ लाइए |

हमने कहा- यह टोपी क्यों लगाईं है ?

बोला-क्यों, जब नीतीश कुमार लगा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? सभी मोदी जी की तरह थोड़े ही हैं जिन्हें कोई टोपी नहीं पहना सकता |

हमने आगे पूछा- और यह आशिक साहब कौन हैं ?

बोला- बन्दे को ही आशिक कहते हैं |

घर के अन्दर पहुँच कर देखा तो तोताराम की पत्नी हिज़ाब पहने और उसके बेटे-पोते सब तोताराम की तरह टोपी पहने हुए हैं | तोताराम ने सबका परिचय कराते हुए कहा- ये हैं हुस्न बानो, आपसे मिलिए ज़नाब दिल, ज़नाब घायल, जनाब फेफड़ा आदि-आदि |

हमने कहा- यह क्या नाटक है ? बोला नाटक क्या ? इफ्तार की सभी दावतों  में  लगभग  सभी गैर मुसलमान ही तो होते हैं | बस भाजपा में नक़वी, शहनवाज़ हुसैन और कांग्रेस में उम्र अब्दुल्ला और गुलाम नबी आज़ाद | अब जब कल इसका अखबार में समाचार देंगे  तो मेरे और तेरे नाम के अलावा सब मुस्लिम नाम होंगे तो मामला जम जाएगा |

हमने तोताराम की पत्नी से कहा- तो हुस्न बानो जी, लगता है आज फख्त दावत-ए-इफ्तार ही नहीं आपकी शायरी भी सुनने को मिलेगी |

बोली- भाई साहब, इन्हें पता नहीं क्या-क्या ख़ब्त सूझते रहते हैं |अब इन्हें कौन सा चुनाव लड़ना है जो ये नाटक करें |और फिर सत्तर साल से ऊपर वाले को कोई पद भी नहीं मिलने वाला |और मान लें किसी ने निदेशक मंडल का  सदस्य बना भी दिया तो वह क्या  कोई पोस्ट होती है  ?

तोताराम बोला- नाटक होते हैं जनता के पैसे पर | लेकिन यह तो सोच, मैंने खर्च क्या किया है ? सिर्फ एक पोस्टकार्ड और वह भी पच्चीस पैसे वाला | और भाई साहब का खाना कोई खर्चा है क्या ? कल अखबार में खबर छपेगी तो कुछ तो नाम होगा | लोग तो बदनाम होकर भी नाम चाहते हैं |

आज के मैले मन के समय में हम रमज़ान के पाक महीने में मिल-बैठ लें यह क्या कम सबाब का काम है ?

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