Jul 28, 2015

कलाम साहब के नाम दो पत्र

 कलाम साहब के कार्यकाल में लिखे उन्हें दो पत्र  विनम्र श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं



१८२. कलाम-कुटिया


( कलाम साहब ने राष्ट्रपति भवन के परिसर में मणिपुर के कारीगरों से एक कुटिया बनवाई )


आदरणीय कलाम साहब,
नमस्कार | समाचार पढ़ा कि आपने राष्ट्रपति भवन में मणिपुर के कलाकारों से बाँस और बेंत से एक कुटिया बनवाई है | इसमें बैठकर आपका चाँदनी रात में कविता लिखने का इरादा है | अच्छा विचार है |

आपकी कुटिया का नाम हमने सोच लिया है- 'कलाम-कुटिया' | इसका समस्त-पद-विग्रह इस प्रकार से किया जा सकता है- कलाम की कुटिया | यह तो खैर, सर्वविदित और सामान्य अर्थ है किन्तु आप स्वयं कलाम हैं और इसमें बैठकर 'कलाम' लिखेंगे तो इसे 'कलाम लिखने के लिए बनवाई गई कुटिया' कहना ठीक रहेगा | कलाम मतलब कविता |

यूँ तो 'पेड़ों के नीचे' से लेकर 'महलों के अंदर' तक कलाम लिखे गए हैं पर इनके भाव अलग-अलग होते हैं | महलों में शेयरों के भाव और हवेलियों में घी, तेल और अनाज के भावों की चर्चा होती है | चूँकि कुटिया में ये दोनों ही प्रकार के भाव उपलब्ध नहीं हैं इसलिए यहाँ लिखी गई रचना में मन के भाव होंगे | मन के भावों को ही जनता भाव देती है | तभी तो कुटियों में रहने वाले ऋषि-मुनियों, साधु-संतों-फकीरों के भाव जन-जन के हृदय-हार बन गए | वेद, पुराण,उपनिषद, गीता, रामायण, सबद, पद बिना किसी प्रचार और विज्ञापन के लोगों की साँस में बस गए |

महलों में षडयंत्र होते हैं, सृजन नहीं | वहाँ सिंहासन पर चढ़े, उतरे, उतारे गए, चढ़ने के आकांक्षी लोगों की लालसाएँ और कुंठाएँ मँडराती रहती हैं | वहाँ कैसा सृजन और कैसा चिंतन |

लोगों ने पाँच-सात सौ करोड़ की शादियाँ कीं, हजारों करोड़ के घर बनवा रहे हैं पर वहाँ किसी प्रकार का सृजन नहीं होगा | आपने तो न तो शादी करने में खर्च किया और न ही महल बनवाने में | जो कुछ बचा उससे यह कुटिया बनवा ली |

यदि महलों में कुछ रचा भी जाता है तो वह राजा के साथ ही मर जाता है क्योंकि राजा धन और पद के हाथी पर चढ़ कर लोगों के सर पर सवार होना चाहता है | वह कभी भी प्यार की मीठी बतळावण की तरह दिल में प्रवेश नहीं कर सकता |

हमने सारी जिंदगी सरकारी क्वार्टरों में काट दी जो गरमी में गरम और सर्दी में ठंडे रहते हैं | जब कि कुटिया सर्दी में गरम और गरमी में ठंडी रहती है | पर क्या बताएँ सर्दी में ठिठुरते हुए और गरमी में पसीने से भीगे हुए कविता नहीं लिखी जा सकती | सर्दी में लिखावट काँपती हुई, अस्पष्ट हो जाती है और गरमी में पसीने से स्याही फ़ैल जाती है | न तो झोंपड़ी बनवा सके और न ही एयर कंडीशंड बँगला | इन दोनों में ही आराम से लिखा जा सकता है, सरकारी क्वार्टर में नहीं |

कविता लिखने की बड़ी हसरत रही पर क्या बताएँ उपयुक्त स्थान ही उपलब्ध नहीं हुआ | आप तो कुटिया में चाँदनी रात में कविता लिखेंगे सो दिन में तो कुटिया खाली ही रहेगी | यदि हमें दिन में कुटिया में बैठकर कविता लिखने दें तो बड़ी कृपा होगी | और जब तक आप हैं तब तक हम आपके 'केयर आफ' ही रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहेंगे | इससे रोब पड़ेगा और छपने में सुविधा रहेगी |

३-५-२००७

८४. दूसरा-तीसरा

( मुशर्रफ कलाम साहब से मिले | कलाम साहब ने उन्हें खाना खिलाया, कविता सुनाई, ग्राम विकास के बारे में कम्प्यूटर पर फिल्म दिखाई और दोनों देशों के बीच 'तीसरे' से भी सावधान किया )

आदरणीय कलाम साहब,
नमस्कार । आप महामहिम हैं । किसी राष्ट्रपति को पत्र लिखने का तरीका हमें तो पहली क्लास से लेकर एम.ए.तक कहीं भी नहीं सिखाया गया । इसलिए यदि पत्र लिखने में कोई भूल हो जाए तो क्षमा करियेगा । वैसे यह पत्र हम आपको राष्ट्रपति, महामहिम आदि के रूप में नहीं लिख रहे हैं । हम तो आपको एक सच्चा इंसान, खरा भारतीय, अध्यापक, कवि और बड़ा भाई मानकर लिख रहे हैं ।

मियाँ मुशर्रफ़ आप से मिलने आए । अच्छा किया । यह भेंट उनके लिए बड़े काम की रहेगी । ये वर्दी वाले चाहे पुलिस के हो, चाहे कोई अन्य कुछ, पर होते कुछ उलटी खोपड़ी के ही हैं । इन्हें सावधान, विश्राम, दायें घूम, बाएँ घूम, तेज चल, कदम ताल आदि शब्द ही समझ में आते हैं । वे बिना रिवाल्वर के आए, मुक्त बाजार के महाजन के निर्देश पर आए । इसलिए शालीनता भी आवश्यक थी । भगवान जाने, यह उनका असली रूप था या नकली । राम करे असली ही हो । और हमेशा यही रूप बना रहे । वैसे लगता असंभव है ।

आपने उन्हें खाना खिलाया । खिलाना भी चाहिए । बुश साहब तो लोगों को केवल नाश्ता करवा कर ही टरका देते हैं । पर अपनी तो भारतीय परम्परा है - अतिथि देवो भव । बड़े प्यार से खाना खिलाते हैं । ज़बरदस्ती आग्रह कर-कर के, ठूँस-ठूँस कर खिलाते हैं ।  आपने उनकी मनपसंद चीजें बनवाईं । यह आपकी महानता है कि स्वयं शाकाहारी होते हुए भी उनके लिए हैदराबादी बिरयानी, कबाब कश्मीरी बनवाए । बाई द वे यह बिरयानी सिंध हैदराबादी थी या निजाम हैदराबादी । ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला खुमैनी कभी किसी पार्टी में शराब सर्व नहीं करवाते थे क्योंकि शराब इस्लाम के खिलाफ है । हमें पूरा विश्वास है कि आपने भी शराब सर्व नहीं करवाई होगी । मुशर्रफ़ साहब ने इडली तो क्या खाई होगी । यह आप-हमारे जैसे लोगों की पसंद हो सकती है ।

आपने भोज का बड़ा अच्छा उपयोग किया । खाना खाते समय चाहे कविता सुनाओ, चाहे ज्ञान की कोई और बात बताओ, आदमी उठ कर तो भाग नहीं सकता, मज़बूरन सुनना ही पड़ता है । आपने उन्हें गावों के विकास के लिए  कम्प्यूटर पर अपना फार्मूला दिखाया । यह तो उनके लिए नई बात रही होगी । उन्हें तो बम, तोप, गोले, राइफल का ही शौक रहा है । आप जैसे कितने हैं जिन्होने मिसाइल और मानवीय ममता को साथ साथ जिया है । आशा है कि वे अपने यहाँ जाकर आतंकवादी शिविरों के विकास की बजाय अपने वहाँ के ग्रामीण भाइयों के दुःख दूर करने की सोचेंगे ।

आपकी सबसे बड़ी बात रही 'तीसरे वाली' जो हमें सबसे अच्छी लगी । आप तो अद्वैत में विश्वास करते हैं इसलिए जीवन में भी 'द्वैत' नहीं अपनाया । एक से दो भी नहीं हुए | बहुष्यामः तो बहुत दूर की बात है | वैसे ज्ञान, भक्ति,कर्म, प्रेम सभी एकनिष्ठता की माँग करते हैं । मीरा ने तभी कहा- 'दूसरो न कोई' । क्रिकेट में 'दूसरे' को लेकर हरभजन परेशान है । प्रेम में यदि कोई दूसरा या दूसरी आ जाए तो कितनी परेशानी हो जाती है । और फिर 'तीसरा' । इससे तो भगवान ही बचाए । अब तक मुशर्रफ़ साहब 'तीसरे' के चक्कर में पड़े थे । और तीसरा तो चाहता ही यही है कि कहीं फटी दिखे और वह अपनी टाँग फँसाये । दो बिल्लियों की कहानी तो मुशर्रफ़ साहब ने भी पढी होगी । पर पढ़ने और गुनने में फर्क है । मुशर्रफ़ ही क्या पाकिस्तान के तो सभी नेता 'तीसरे' के चलाये ही चलते आ रहे हैं । तभी तो न उनका विकास हुआ और न ही पड़ोस से रिश्ते सुधरे । सारे वकील, नेता, चौधरी यही चाहते हैं कि लोग लड़ें और उनका धंधा चलता रहे । धर्म, भाषा, जाति- किसी भी बहाने से लड़ें, पर लड़ें । पर यह तो लड़ने वालों की समझ पर निर्भर है ।

आपने मुशर्रफ़ साहब को 'तीसरे' से सावधान करके अच्छा किया । हमें लगता है, आपने उन्हें कविता भी सुनाई होगी । अबकी बार आयें तो और अच्छी तरह क्लास लीजियेगा । जो किसी भी तरीके से बस में नहीं आता वह कविता के आगे हथियार डाल देता है । पिछली बार तो आगरा  में मुशर्रफ़ अटल जी की कविता से डर आकर भाग गए थे । अब हिम्मत जुटा कर फिर आए और ख़ुद उनके घर जाकर मिल कर आए । कविता सुनने की यह हिम्मत सत्साहस का प्रमाण है । हो सकता है सम्बन्ध सुधारने के लिए ये कुछ और भी साहस जुटाएँ और यह बिना बात की खाज मिटे तो दोनों देश प्रेम से जियें, मन लगाकर काम करें, और चैन की नींद सोयें । आपको मुशर्रफ़ की क्लास लेने के लिए पुनः धन्यवाद ।

२०-४-२००५

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