Jul 24, 2015

तोताराम की नई फिल्म की स्क्रिप्ट

  तोताराम की नई फिल्म की स्क्रिप्ट 

आज सुबह-सुबह तोताराम बड़े शास्त्रीय और राष्ट्रीय अंदाज़ में प्रकट हुआ- माथे पर तिलक, हाथ में पूजा की थाली, कलाई पर मोळी और नंगे पाँव |

हमने हँसते हुए पूछा- क्यों ? क्या नौ सौ चूहे खा लिए जो हज को जा रहे हो ?

बोला- यह ठीक है कि पाखंडी लोग अपनी धार्मिकता का हल्ला ज्यादा मचाते हैं लेकिन करोड़ों भले लोग एक भी चूहा खाए बिना हज़ को जाते हैं | अजमेर वाले ख्वाजा को चुनाव जीतने या फ़िल्में चलवाने के लिए चादर चढाने वाले नेताओं और अभिनेताओं की खबर अधिक आती है लेकिन उनसे हजारों गुना वे लोग हैं जो सच्ची श्रद्धा-भक्ति से जाते हैं |मैं तो आज तुझे हिन्दू रीति से गोपनीयता की शपथ दिलाने आया हूँ |

हमने कहा- तो क्या मुझे कहीं का राजदूत या राज्यपाल नियुक्त किया गया है ? 

बोला- नहीं, यह किसी पद की नहीं केवल गोपनीयता की शपथ है | इसका मतलब है कि इस शपथ के बाद आज मैं तुझे जो बात बताऊँगा उसे तू किसी को भी नहीं बताएगा, जब तक मैं न कहूँ |

हमने स्वीकृति दे दी | तोताराम ने लाल कपड़े में लिपटी एक पोथी निकाली | हमारे हाथ में जल और चावल दिए और एक दीपक भी जला दिया और बोला- अब मेरे साथ दुहरा - मैं मास्टर रमेश जोशी, अग्नि को साक्षी मानकर यह शपथ लेता हूँ कि वह उस बात जो अब तोताराम मुझे बताएगा, तब तक किसी को नहीं बताऊँगा जब तक कि तोताराम ऐसा नहीं चाहेगा' |

शपथ के बाद तोताराम ने पोथी को खोल कर कहा- इसमें वह कहानी और उसकी स्क्रिप्ट है जिसे मैं आज दो-चार फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को भेजने वाला हूँ | आज के बाद यदि कोई इस कहानी को चुराकर फिल्म बना ले तो तू गवाह रहेगा कि यह कहानी अमुक तारीख़ को मैंने  तुझे सुनाई थी |

हमारे हाँ कहने पर उसने जो कहानी सुनाई उसका नाम था- धारा-प्रवाह | उसमें तेहत्तर साल का एक बूढ़ा है जिसे 'संग्रहणी' की बीमारी है अर्थात वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद सोच कर या बिना सोचे जैसी भी स्थिति होती है, शौचालय जाता है | सब कुछ उसके  'तरल पदार्थ' के चारों ओर घूमता है, मक्खियों की तरह | यहाँ तक कि युवा हीरो और उसकी जवाँ बेटी भी उसके चारों तरफ घूमते हुए एक दोगाना गाते हैं | उसकी बेटी को प्रसन्न करने के लिए युवक धारा-प्रवाह नामक बीमारी की दवा लाने के लिए किसी अन्य लोक में जाता है | अंत में नायक वह दवा ले आता है लेकिन तब तक नायिका का पिता इस प्रवाह में प्रवाहित होकर उस लोक में पहुँच जाता है | नायक और नायिका सभी धर्मों के मुख्य स्थलों की यात्रा करके गॉड /खुदा/ईश्वर से नायिका के पिता को लौटा लाते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव के साथ फिल्म का सुखद अंत होता है |

हमने कहा- यह भी कोई कहानी  है ? कौन बनाएगा इस पर फिल्म ?

बोला- कौन ? अरे, मुझे तो आशंका है कि आर.बाल्की की 'चीनी कम' और सुजीत सरकार की 'पीकू' की तरह कहीं रामगोपाल वर्मा ने मेरे इस विषय पर फिल्म बनाने की घोषणा न कर दी हो |

और जब सर्वोच्च राजनीति अपना पायजामा कंधे पर रखकर विपक्षी के डायपर चेक करने लगे तो फिल्म वालों को ही दोष क्यों दिया जाए?


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