राष्ट्रगान बनाम पार्टीगान
जैसे ही तोताराम आया, हमने पकड़ा- देख लिया देशभक्तों का हाल ? आत्मप्रशंसा के चक्कर में राष्ट्रगान तक गाना भूल गए |किसी और से ज़रा सी भूल हो जाए तो सीधे जेल में डाल देने की बात करते हैं |
बोला- तू शायद तमिलनाडु की खंडपीठ द्वारा उस जनहित याचिका को खारिज कर दिए जाने की बात कर रहा है जिसमें २७ जनवरी २०१९ को मदुरै में एम्स की आधारशिला रखने के अवसर पर मोदी जी की सभा में राष्ट्रगान न गाए जाने की शिकायत की गई थी |उसे तो ख़ारिज होना ही था |यह भी कोई मामला है ? लोगों को बात बिना बात कोई न कोई तमाशा चाहिए |
हमने कहा- इस देश में तो ये ही महत्त्व के मुद्दे हैं | सामान्य आदमी के सुख-दुःख न तो कल मुद्दे थे और न आज |हाँ, अपने कर्मों से नहीं बल्कि मात्र पद से विशिष्ट बने किसी भी माननीय के हगे-मूते, छींके-खाँसे तक पर इस देश के प्रबुद्ध जन ट्वीट और रीट्वीट करने लग जाते हैं |टीवी पर विशेषज्ञ परिचर्चा करने लग जाते हैं |भले ही सामान्य आदमी उल्टा लटका हुआ है लेकिन किसी झंडे का रंग मात्र ऊपर-नीचे होने पर तूफान खड़ा हो जाता है | फिर भी जब हम स्कूलों और सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान और बन्देमातरम गाना उचित समझते है तो इस मीटिंग में यदि राष्ट्रगान को ५२ सेकंड दे देते तो क्या आसमान टूट पड़ता ?
बोला- देखो, कोई भी एम.एल.ए., एम.पी.,मंत्री, मुख्यमंत्री, और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी पहले अपना, फिर आवश्यक हुआ तो पार्टी का और अंत में यदि समय बचा तो देश का होता है | सबको अपनी-अपनी इमेज की फ़िक्र रहती है |जैसे ही चुनाव आते हैं गठबंधन में शामिल हर पार्टी का नेता अपने लिए अधिकाधिक सीटों पर टिकट पाने के लिए नखरे दिखाने लगता है कि नहीं ? अपनी जाति के समारोहों में जाकर जातिवादी हो जाता है कि नहीं ? परिवार की पार्टी के कार्यक्रम में जाकर प्रधानमंत्री तक गणवेश धारण कर लेते हैं कि नहीं ? एक राष्ट्र होते हुए भी सभी राज्यों ने अपने-अपने राज्य-गीत बनवा रखे हैं कि नहीं ? राष्ट्र में 'महाराष्ट्र' भी हो सकते हैं |'नाडु' का मतलब देश होता है |हम भी तो गाते हैं- 'म्हारो राजस्थानी देस.....' गाते हैं |सबको 'राज्य को विशेष दर्ज़े' के बहाने अपने लिए 'विशेष दर्ज़ा' चाहिए |
हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो समस्त देश के प्रधान मंत्री हैं इसलिए राष्ट्रगान तो होना ही चाहिए |
बोला- ठीक है मोदी जी बिना पार्टी-पोलिटिक्स के समस्त देश का विकास करने में जुटे हुए हैं लेकिन पता नहीं, लोग क्यों विकास चाहते ही नहीं |साढ़े चार साल के विकास का यह सिला मिला कि पाँच राज्य खिसक गए | और अब फिर चुनाव सिर पर आ खड़े हुए हैं | चुनावों से ही साँस नहीं मिल रहा है |आदमी राष्ट्रीय लाइन ले भी तो कब ले ?और फिर जिन्हें कानूनी रूप से राष्ट्रीय लाइन लेनी चाहिए वे भी पार्टी लाइन से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो इन्हीं से क्यों आशा करते हो |देखा नहीं, कैसे राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति तक राष्ट्र के नाम सन्देश को 'पार्टी-प्रवचन' बना देते हैं |याद है ना, जब एक राष्ट्रपति प्रधान मंत्री को विदा करने हवाई अड्डे जाने के लिए तैयार हो गए थे तो सचिव ने प्रोटोकोल का हवाला देकर रोका था |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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