एक साल के लिए चुनाव स्थगित
आते ही तोताराम ने कहा- मास्टर, देश-हित में एक साल के लिए चुनाव स्थगित हो जाने चाहियें |
हमने कहा- बन्धु, हमसे तो अपनी नाक ही नहीं पोंछी जाती, हम देश-हित के बारे में क्या जाने ? यदि देश हित की बात करनी है तो मोदी जी से कर, जेतली जी से कर, राहुल गाँधी से कर, अखिलेश से कर | ये ही अपनी भूख-प्यास भूलकर दिन-रात एक किए हुए हैं देश-हित के लिए |सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपए विज्ञापनों, झंडे-फर्रियों, रैलियों, जुलूसों में फूँक रहे हैं किस लिए ? देश-हित में ही ना ? सरकार हाथ धोने, नाक साफ़ करने, शौचालय जाने, बेटियों को बचाने-पढ़ाने तक के लिए भी विज्ञापन देश-हित में ही तो करती है |वरना २०१४ से पहले देश-हित के इतने बड़े-बड़े काम किए गए थे ?
बोला- मैं असली मुद्दा भूल जाऊँ उससे पहले मेरी बात सुन ले |
हमने कहा- मुद्दे की बात तू ही क्या, अपने को देश-सेवक कहने वाले लोग ही भूले हुए हैं |पार्टियों के नाम के पहले अक्षर लेकर नए-नए शब्द बनाने का खेल खेल रहे हैं |
बोला- मैं इसी महत्त्वपूर्ण खेल के सन्दर्भ में एक साल के लिए चुनाव आगे खिसका देने के लिए कह रहा था |
हमने कहा- चुनाव आगे खिसका देने के लिए क्या देश की सुरक्षा पर आतंकवाद का मंडराता खतरा पर्याप्त कारण नहीं हो सकता ?
बोला- हो तो सकता है लेकिन इसे सत्ताधारी पार्टी का क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ प्रचारित किया जा सकता है किन्तु मेरठ की चुनावी रैली में मोदी जी ने पार्टियों के प्रथम अक्षरों से जो 'शराब' बनाई है, वह बहुत विचारणीय मुद्दा है | बहुत बड़े देश-हित-अहित से जुड़ा | मोदी जी ने शराब बनाई तो अब समाजवादी पार्टी ने नरेन्द्र के 'न' और शाह के 'शा' को लेकर 'नशा' बना दिया |है ना, कन्फ्यूजन की बात |शराब महागठबंधन की और नशा सत्ताधारी दल में और टेक्स वसूला जा रहा है हम-तुम से |
हमने कहा- लेकिन चुनाव आगे खिसका देने से क्या होगा ?
बोला- होगा | बहुत कुछ सकारात्मक होगा |देश-हित होगा |एक साल का समय दिया जाए |सभी राजनीतिक पार्टियों के थिंक टैंकों का मंथन हो |सब एक दूसरे के नामों से भद्दे से भद्दे शब्द बनाने का प्रयत्न करें |फिर इस विचार-विज्ञान-वैभव को विश्व के वैज्ञानिकों और विचारकों के सामने जांच के लिए भेजा जाए |उनकी रिपोर्ट के बाद जो कुछ भक्ष्य है वह स्वीकार किया जाए और जो अभक्ष्य उसे नकार दिया जाए |
हमने कहा- लेकिन वह तो 'स' और 'श' के उच्चारण का व्याकरणिक मामला है |बहुत से लोग स और श में गड़बड़ कर जाते हैं | बंगाली लोग जहां चाहे 'श' लगा देते हैं|नेपाल के लोग भी ऐसा करते हैं |हिंदी के बड़े विद्वान मैनेजर पांडे भाषा को भासा बोलते है लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? हमें तो श्रेष्ठ अर्थ ग्रहण करना चाहिए |
पोरबंदर में हमारे एक मित्र थे |उन्हें रोज शराब पीने और आमिष भोजन की आदत |पहले ही दिन शाम को पहुँच गए शहर |जैसे ही टुन्न होकर सुदामा चौक के बस स्टेंड पर पहुँचे, मामू ने पकड़ लिया और पूछा- कहाँ से पीके आए ? बेचारे नाम नहीं जानते थे इसलिए उलटे पाँव ठेके पर जाना पड़ा |मामू ने देखा कि जगह तो हफ्ते वाली है तो गुरूजी को छोड़ दिया |
शहर से लाया आमिष भोजन करने के बाद गुरूजी कॉलोनी की पान की दुकान पर आते थे |शायरी का शौक और ऊपर से गुजरात की स्वदेसी |ऐसे में उन्होंने नीरज का एक मुक्त सुनाया-
हर पात्र तो निस्सार हुआ करता है
आईना तो आकार हुआ करता है
यूं न बदनाम करो पीने वालों को
मौसम ही गुनहगार हुआ करता है
गुरूजी ने उच्चारण किया-
'मौषम ही गुनाहगार हुआ करता है' |हमने टोका- उस्ताद, मौषम नहीं मौसम |उन्होंने सुधार किया लेकिन निकला फिर वही 'मौषम' |हमने फिर टोका, तो बोले- अभी चुप रहो |मज़ा ख़राब मत करो | कल बात करना |इस समय तो यह 'मौषम' ही रहेगा |
इस बारे में 'शराब' और 'सराब' की तुच्छ बहस फ़ैलाने की बजाय हमें मोदी जी की इस भाषाई और काव्यात्मक सोच की दाद देनी चाहिए और उन्हें वोट देना चाहिए |वैसे गठबंधन के 'नरेन्द्र' और 'शाह' वाले 'नशा' में भी दम है |लेकिन अभी विपक्ष इस कला में मोदी जी से बहुत पीछे है |
बोला- तभी तो कह रहा हूँ कि देश-हित में सभी सेवकों को शाब्दिक लड़ाई के एक अहिंसक धर्म-युद्ध का पर्याप्त मौका दिया जाना चाहिए |और उसके परिणामों का देश-हित में उपयोग किया जाए |
हमने कहा- इसके बाद भी यदि वही 'अब्दुल्ली कुट्टी' ही रहा तो ?
बोला- यह 'अब्दुल्ली कुट्टी' क्या बला है और उसका देश की राजनीति से क्या लेना-देना ?
हमने कहा- आज से कोई चालीस साल पहले एक निरक्षर मजदूर नेता प्रदेश परिषद् में शिक्षा पार्षद बन गया |उसे हिंदी में हस्ताक्षर सिखाने का काम हमारे एक मित्र को सौंपा गया |कई दिनों की मेहनत से उसे हस्ताक्षर करना सिखाया गया |जब एक पहली बार उसे एक कार्यवाही पर हस्ताक्षर करने थे तो उसने हस्ताक्षर किए- अब्दुल्ली कुट्टी |सो सारे मंथन के बावजूद ये नेता जब भी बोलेंगे ऐसे ही 'मंत्रपूत शब्द' बोलेंगे |
बोला- कोई बात नहीं |यह श्रम भी व्यर्थ नहीं जाएगा | राजनीतिक दलों के ऐसे ही शाब्दिक तमाशों से तैयार होने वाला कोश तेरे जैसे फसली व्यंग्यकारों के काम आता है |वैसे लोगों को मोदी जी का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि 'शराब' और 'सराब' दोनों ही भ्रम, सन्देह और झूठ का सृजन करते हैं |सराब अर्थात मृगतृष्णा में भी जल नहीं होता और शराब के नशे में अनुभव होने वाली मस्ती भी सच से आँख चुराकर ही प्राप्त की जाती है |शराब पीकर वोट देने वाले समर्थक और स्वर्ण 'मृग' की 'तृष्णा' करने वाली जानकी दोनों ठगे जाते हैं |
हमने कहा- शब्दों से बड़ा कोई छल नहीं होता | शब्द 'ब्रह्म' होता और वही गलत हाथों में जाकर 'भ्रम' पैदा करने के काम आता है |गुजरात में 'अवैध शराब' का 'वैध धंधा' क्या गाँधी की नशाबंदी का 'सराब' या आस्था की 'शराब' नहीं है ?
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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