चंचल लोलिताएँ और वार्धक्य की कुंठा
कल बसंत पंचमी आने वाली है और दिल्ली में बेमौसमी ओलों ने जाने किस-किस के फागुनी इरादों पर पाला पटक दिया |लोग आरोपों की गरमी से खुशनुमा वातावरण बनाने की असफल कोशिश कर रहे हैं |२ और ३ फरवरी २०१९ को लखनऊ विश्वविद्यालय में 'महात्मा गाँधी और हिंदी साहित्य' पर एक आयोजन में गए थे |वहाँ एक पीला लखनवी कुरता भेंट में मिला | अभी बंगलुरु में हैं |अखबार में ओलों से सफ़ेद हुई दिल्ली की सड़कें देखकर भेंट में मिला कुरता पहनने की हिम्मत नहीं हो रही |हिम्मत करें तो भी राजस्थान में शुरू हो चुके गुज्जर बंधुओं के शांति पूर्ण आन्दोलन और उसका इतिहास याद करके फिर कँपकँपी छूटने लगती है क्योंकि ११ फरवरी को जयपुर होते हुए सीकर जाना है |बैंगलुरु में पंखे चलने लग गए हैं |बालकनी में बैठकर अकेले चाय पी रहे हैं |तोताराम यहाँ नहीं है |
अकेले चाय पीने में मज़ा नहीं आ रहा है और फिर यहाँ के अंग्रेजी अखबार में मुखपृष्ठ पर खबर है कि कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री बने जनता दल सेक्यूलर के कुमार स्वामी और कांग्रेस को डर सता रहा है कि कहीं उनके १० विधायक किसी छिनाल की तरह बेवफाई न कर गुजरें |इसलिए स्वामी ने उन्हें पत्र लिखकर दल बदल के विरुद्ध कार्यवाही की धमकी दी है |
हमने अपने मोबाइल के बचे-खुचे बेलेंस की बलि देकर 'मोदी स्टाइल' में तोताराम से चाय पर चर्चा करने का साहस जुटाया |कहा- तोताराम, यह क्या हो रहा है ? एक तरफ तो लोग बुरका और पर्दा प्रथा को समाप्त करके महिलाओं का सशक्तीकरण कर रहे हैं और जनता दल एस और कांग्रेस को अपने ही सदस्यों पर विश्वास नहीं है |ये उन्हें परदे में रखना चाहते हैं |नीची निगाह किए अपने पीछे-पीछे चलाना चाहते हैं |क्या सिद्धांतों का पतिव्रत-धर्म इतना कमजोर हो गया ? क्या भाजपा के शोहदे इतने साहसी हो गए हैं कि विधायक-सुंदरियों का सदन पहुँचना तक मुश्किल हो गया है ?
तोताराम ने फोन पर अपना स्वर ऊँचा करते हुए कहा- मास्टर, ज़माना बदल गया है |हर सुंदरी अपने यौवन की अच्छी कीमत तत्काल चाहती है |कैसा पातिव्रत्य और किसी लज्जा ? जवानी ढलने के बाद कोई नहीं पूछता | और इस लम्पटता के लिए भाजपा को ही दोष क्यों देता हैं ? अपने-अपने विधायकों को होटल-होटल, रिसोर्ट-रिसोर्ट लिए फिरने का इतिहास कोई नया नहीं है |कर्णाटक, हरियाणा, आंध्र, गुजरात, तमिलनाडु, बिहार, महाराष्ट्र कहाँ नहीं हुआ यह चंचल लोलिताओं को लिए-लिए होटल-होटल फिरने का नाटक ?
हमने पूछा- तोताराम, बात को बदल मत |अच्छी भली राजनीति में यह 'लोलिता' कहाँ से आगई ? क्या यह कहीं कटरीना जैसी कोई अमरीकी तूफ़ान-सुंदरी तो नहीं है ?
बोला- नहीं |यह तो फ्रांस में १९५५ में छपा रूसी-अमरीकी ब्लादीमीर नाबाकोव का एक उपन्यास है जिसमें हम्बर्ट नाम का एक अधेड़ विधुर बारह वर्ष की एक कन्या की ओर आकर्षित होता है और उसे पाने के लिए उसकी विधवा माँ से शादी करता है |इस प्रकार वह रिश्ते में उस लड़की का सौतेला बाप बन जाता है | इस उपन्यास का यह प्रेम केवल एक नाबालिग लड़की से संबंध बनाने के कारण ही अनुचित नहीं है बल्कि इसमें पारिवारिक रिश्तों की शुचिता पर भी आँच आती है |हम्बर्ट हत्या का अपराधी भी है |वह इस दोहरे अपराध की कुंठा से बचने के लिए लोलिता को लिए-लिए जगह-जगह फिरता है |
आज की राजनीति में लोक कल्याण का पौरुष किसी के पास नहीं है |भ्रष्टाचार के सब अपराधी हैं | सत्ता की लोलिता को सब कब्जाना चाहते हैं |और लोलिता है कि बाथरूम के पाइप से फिसलकर फरार हो जाती है |
हमने कहा- तोताराम, हमने भी बचपन में चोरी-चोरी यह उपन्यास पढ़ा तो था लेकिन अब पूरी कहानी याद नहीं |लेकिन उसमें ऐसा कुछ नहीं था |लोलिता पाइप से फिसलकर नहीं भागती है |
बोला- फिर असाहित्यिक बात कर दी |अरे, ये विधायक ही तो चंचल लोलिताएं हैं |याद नहीं, १९८२ में चौधरी देवीलाल अपने और भाजपा के विधायकों को लेकर दिल्ली के एक होटल में चले गए थे और उनमें से एक विधायक बाथरूम की पाइप से नीचे उतर कर फरार हो गया था और अगले ही दिन हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन गई थी |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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