दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन...
आज जैसे ही तोताराम आया, हमने पूछा- तोताराम, क्या कल अमावस्या थी?
बोला- अब पंडितों को भी तिथियों का ज्ञान नहीं रहा है| भले आदमी, जब आज ‘फलरिया दूज’ (फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया) का विवाह का अबूझ मुहूर्त है तो कल फागुन शुक्ल की प्रतिपदा थी | वैसे जहाँ तक चाँद दिखाई देने का प्रश्न है तो वह न अमावस्या को दिखता है और न ही प्रतिपदा को |
हमने कहा- कल हमें दोपहर ठीक बारह बजे सूरज कुछ धुंधला सा लगा| लगा, कहीं सूर्यग्रहण तो नहीं? सूर्यग्रहण अमावस्या को ही तो आता है|
बोला- वैसे कल न तो अमावस्या थी और न ही सूर्यग्रहण| लेकिन जहाँ सूरज के धुंधला दिखाई देने की बात है तो वह सच है| कल ठीक इसी समय दुनिया के सबसे बड़े महाबली, विश्व की सर्वमान्य महाशक्ति के शलाका-पुरुष, महामहिम ट्रंप भारत की धरती पर अवतरित हुए थे| और फिर धरती पर उनके स्वागत के लिए भारत को महाशक्ति बनाने वाले, करिश्माई, अनथक श्रम करने वाले और भारत के न भूतो, न भविष्यति नेता तत्पर हों तो फिर सूर्य तो धुंधला नज़र आना ही था |दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात…|
हमने कहा- वैसे यह सच है कि ट्रंप अतिमहत्त्वाकांक्षी, निरंतर सोचने वाले और निडर किस्म के हैं |उनमें ताक़त हासिल करने की ज़बरदस्त भूख है| जिद्दी हैं इसलिए सख्त निगोशियेटर भी हैं |
बोला- तू उनके बारे ऐसी तकनीकी शैली में कैसे कह सकता है ?
हमने कहा- यह हम नहीं बल्कि ब्रिटिश इन्स्टीट्यूट ऑफ़ ग्राफोलोजिस्ट्स की प्रोफ़ेसर ट्रेसी ट्रस्सल ने आँका है | यदि हमें उनका कमेन्ट नहीं मिलता तो भी हमने उनके दस्तखत देखकर ही अनुमान लगा लिया था |
बोला- कैसे ?
हमने उत्तर दिया- उनके दस्तखत देखे ? ऐसे लगता है जैसे किसी ने दो देशों के बीच काँटेदार तारों की दीवार बना दी हो |तुझे पता होना चाहिए कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही सबसे पहले दो काम किए थे |पहला मेक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने का फैसला और दूसरा ओबामा वाली हेल्थकेयर स्कीम को समाप्त करना |ये दोनों ही निर्णय कोई जिद्दी और निडर आदमी ही ले सकता है |
बोला- मैं तो इस ग्राफोलोजी को मानता नहीं |अपने मोदी जी निर्णय लेने के मामले ट्रंप से ज्यादा निडर हैं लेकिन उनके हस्ताक्षर देख कितने सौम्य, सरल और सहज हैं|
हमने कहा- तभी तो ट्रंप साहब मोदी जी को मानते हैं |और जहाँ तक स्वागत की बात है तो ट्रंप भी भौचक्के रह गए |क्या इवेंट मनेजमेंट था |दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम, ट्रंप के जीवन की ही क्या, दुनिया के किसी भी नेता के आज तक के स्वागत से अधिक भीड़ और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे शक्तिशाली नेता द्वारा स्वागत| सब कुछ नंबर वन |वैसे अमरीका में मोदी जी का भी स्वागत तो ज़बरदस्त हुआ था २०१४ में मेडिसन स्क्वायर और २०१९ में ह्यूस्टन में |
बोला- उसमें ट्रंप या ओबामा की क्या छाप है |पैसा फेंको, तमाशा देखो |
हमने कहा- तोताराम, बात कुछ हज़म नहीं हुई |वहाँ भी भारतीयों का ही खर्चा और यहाँ भी भारत का ही खर्चा |यहाँ तो ट्रंप को खर्चा करना चाहिए था |
बोला- क्यों ? हम मेज़बान थे तो खर्चा मेहमान का क्यों ? ट्रंप ने हमें महाशक्ति, सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध बताया है| भले ही उच्चारण सही नहीं था लेकिन सचिन, विराट कोहली, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे और विवेकानंद का ज़िक्र किया | भारत की धरती पर उतरने से पहले हिंदी में ट्वीट किया |इतने गर्व के बाद भी तुझे स्वागत के खर्च की पड़ी है ? अरे, इतनी प्रशंसा के बाद तो कोई गला भी काट ले तो परवाह नहीं |
हमने कहा- गला तो कटा ही है| अरे, कोई दुकानदार हजार दो हजार का सामान लेने वाले ग्राहक को ठंडा-गरम पिलाता है और एक हम हैं कि तीन बिलियन डालर का सामान भी खरीदें और सौ करोड़ का स्वागत भी करें |
बोला- तभी तो ब्रिटिश ग्राफोलोजिस्ट ने ट्रंप को सख्त निगोशियेटर कहा है |
हमने कहा- तोताराम, इस आयोजन को यदि हम आर्थिक गतिविधि में बदल सकें तो वारे-न्यारे हो जाएंगे |स्टेडियम है ही, गाने-बजाने वाले सेट हो ही गए हैं, झुग्गी-झोंपड़ियों को छुपाने के लिए दीवार बन ही गई |क्यों न स्वागत का वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिए लालायित धनवानों का यहाँ दो-दो सौ करोड़ में स्वागत करने का स्थायी कार्यक्रम ही बना लें |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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