Mar 21, 2020

लाल जी की चिट्ठी



लाल जी की चिट्ठी 

तोताराम हमसे मुखातिब हुए बिना आते ही बरामदे में एक तरफ बैठकर जेब से एक कागज़ निकालकर पढ़ने लगा |

हमें बड़ा अजीब लगा |हमने कहा- ऐ मिस्टर, यह कोई होटल नहीं है जो आकर बैठ गए कि कोई वेटर तुमसे ऑर्डर लेने आएगा |इतना भी शिष्टाचार नहीं कि कोरोना के डर से दूर से ही सही, नमस्ते तो कर लेते |

बोला- देख नहीं रहा पढ़ रहा हूँ |महत्त्वपूर्ण पत्र है |

हम भी मज़ाक के मूड में आ गए पूछा- क्या ट्रंप का पत्र है ?

बोला- ट्रंप का नहीं तो उससे कम भी नहीं है | लाल जी टंडन जी का है |

हमने पूछा- ये दो 'जी' किस लिए ? आजकल सच्चे देशभक्त लोग तो गाँधी और नेहरू तक को एक भी 'जी' नहीं लगाते |

बोला- जयपुर में 'लाल जी सांड का रास्ता' नाम सुना है ? सवाई माधोसिंह का ख़ास सेवक था और उनकी कृपा के बल पर अपनी विशिष्ट दादागीरी के कारण आज भी 'जी' के बिना नहीं बुलाया जाता |ये तो तुझे पता होना चाहिए राज्यपाल है; कोई डाकपाल या लेखपाल नहीं |चाहें तो पूरी विधान सभा को पंगु बना कर रख दें |याद नहीं, एक 'उप' राज्यपाल दिल्ली के भी थे नजीब जिन्होंने ७० में से ६७ सीटें जीतने वाले ने केजरीवाल की साँस बंद कर दी थी |तीन साल तक कुछ नहीं करने दिया |

हमने पूछा- लेकिन उन्हें तुझसे क्या काम आ गया जो पत्र लिखा है ?

बोला-  मुझसे उन्हें कोई काम नहीं | यह पत्र तो उन्होंने मध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष को लिखा है |

हमने पूछा- तो फिर तेरे पास यह पत्र क्या कर रहा है ?

बोला- इसमें उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति को लिखा है- 'लगता है गलती से चिट्ठी मुझे भेज दी गई है' |तो समझ ले जैसे विधानसभा अध्यक्ष द्वारा किसी और को भेजी गई चिट्ठी गलती से राज्यपाल के पास पहुँच गई वैसे ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा अध्यक्ष  को भेजी गई चिट्ठी तोताराम के पास पहुँच गई |

मध्य प्रदेश के राज्यपाल ने दिया स्पीकर को जवाब- लगता है चिट्ठी गलती से मुझे भेज दी

हमने कहा- तो फिर तेरा धर्म बनता है कि यह चिट्ठी लालजी को लौटा दे |किसी और की चिट्ठी पढ़ना शिष्टाचार के खिलाफ है |वैसे तोताराम, जब राज्यपाल, मुख्यमंत्री,विधानसभा अध्यक्ष सभी वहीं भोपाल में एक दूसरे के आसपास रहते हैं तो लिखा-पढ़ी की क्या ज़रूरत है ?वहीँ बतिया लें और कर लें कोई फैसला |यह मीडिया और तोताराम जैसे लोगों को चिट्ठियों की प्रति भेजने की क्या ज़रूरत है ? 

बोला- तुझे पता होना चाहिए कि अपने यहाँ जेठ और छोटे भाई की पत्नी के बीच बातचीत का रिश्ता नहीं होता लेकिन जब बहू जेठ को कुछ उल्टा-सीधा सुनाना चाहती है तो अपने छोटे बच्चे का सहारा लेकर सुना देती है | घूँघट को लम्बा खींचकर, अपने छोटे बेटे को हल्का-सा धक्का देकर कहती है- कह दे तेरे ताऊ से, हमने किसी का लेकर नहीं खा रखा है आदि-आदि....   |'  बात भी कह दी गई और लोकलाज भी बनी रह गई |इसका एक और उदाहरण ले सकता है, जैसे सभी संसद में बैठते-मिलते हैं लेकिन एक दूसरे को सूट-बूटवाला, सूझ-बूझवाला, झूठ-मूठवाला आमने-सामने कह-सुनकर फैसला करने की बजाय कहीं दूर जनसभा में कहते हैं |अरे भाई,  जूतम पैजार, गालीगुप्ता, जो करना है संसद के अन्दर आपस में कर-करा लो | बेचारी जनता के कानों और दिमागों में  गन्दगी क्यों ठूँस रहे हो |

हमने कहा- वैसे बात तो इसपर होनी चाहिए कि विधायक रूपी लड़कियों को लेकर क्यों लोकतंत्र के दोनों ही दलों के बालब्रह्मचारी अपहरणकर्त्ताओं की तरह होटल-होटल भागते फिर रहे हैं |

बोला- मास्टर, ये विधायक भी कोई मासूम किशोरियाँ नहीं हैं |ये सब भी खेली-खाई छिनालों से कम नहीं है जो भरी जेब वाले यारों के संग रंगरलियाँ मनाती घूम रही हैं |





 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment