Jul 19, 2021

पेट दर्द का इलाज़

पेट दर्द का इलाज़ 


आज तोताराम ने आते ही घोषणा कर दी- चाय नहीं पिऊंगा. भाभी से बोल, थोड़ी-सी अजवायन की फंकी और नमकीन शिकंजी की व्यवस्था कर दे.

हमने कहा- तेरा इलाज़ हमारे पास नहीं है. लाख शिकंजी पी या अजवायन की फंकी ले. उद्धव ठाकरे की सरकार नवम्बर २०२४ तक पूरे पांच साल चलेगी.

बोला- मेरे पेट दर्द से उद्धव की सरकार का क्या संबंध है? वहाँ के बारे में वहाँ के राज्यपाल जानें. जिसको चाहें रात में बुलाकर शपथ दिला दें. फिर चाहे भद्द ही पिटती रहे. देवेन्द्र फड़नवीस जानें. अमित जी जानें जिन्हें सरकारें मैनेज करना है. बंगाल में टैगोर बनकर दो सौ पार होने वाले और अब महाराष्ट्र में शिवाजी बनकर तीन सौ पार पहुँचाने वाले मोदी जी जानें.

हमने कहा- लेकिन महाराष्ट्र में २८८ सीटें ही हैं.

बोला- जिनके नाम से सब कुछ मुमकिन हो सकता है वे ऐसा भी कर सकते हैं. इसी को तो कमाल कहते हैं.पर क्या मेरा पेट दर्द भी उद्धव की सरकार की तरह २०२४ तक चलेगा?

हमने कहा- यह तो हम क्या कहें लेकिन पेट दर्द और उद्धव की सरकर का कोई न कोई संबंध है तो ज़रूर. यदि ऐसा नहीं होता तो संजय राउत क्यों कहते- जिनके पेट में दर्द है वे सुन लें. पांच साल चलेगी उद्धव सरकार.

बोला- क्या जब तक उद्धव की सरकार नहीं गिरेगी मेरे पेट का दर्द ठीक नहीं होगा?

हमने कहा- संजय जी ने अपने निदान में तेरा नाम तो नहीं लिया था. फिर भी लोकतंत्र में सरकारों, मुख्यमंत्रियों आदि का देश की जनता के पेट दर्द से कुछ न कुछ संबध होता ज़रूर है. नहीं तो वे ऐसा क्यों कहते.

बोला- अगर संजय राउत की बात का कोई सीधा या घुमावदार अर्थ हो सकता है और उसका १०००- १५०० किलोमीटर दूर तक प्रभाव हो सकता है तो फिर संजय राउत का यह निदान मेरे लिए नहीं मोदी जी और अमित जी के लिए है. मेरी तरफ से तो संजय राउत को लिख दे कि वे केंद्र में ५० साल तक राज करने के अमित जी के दावे की तरह महाराष्ट्र में सौ साल तक राज करें. मुझे कोई ऐतराज नहीं है. तू शिकंजी बनवा तो सही. सब ठीक हो जाएगा.

हमने कहा- लगता है इस प्रकार का पेट दर्द वर्तमान ही नहीं बैक डेट से भी हो सकता है.तभी जो १५ अगस्त १९४७ को जन्मे भी नहीं थे, जिन्होंने स्वाधीनता की लड़ाई में नाखून और बाल भी नहीं कटवाए थे वे भी नेहरू-गाँधी और इंदिरा को लेकर जब-तब, गाहे-बगाहे पेट दर्द से पीड़ित होते रहते हैं.

बोला- क्या इस पेट दर्द का कोई इलाज़ भी है या नहीं? क्या इसी तरह पीढ़ियों तक चलता रहेगा?

हमने कहा- यह तो तभी संभव है जब पूरी दुनिया की इतिहास की पुस्तकों से १८५७ से २०१४ तक के पन्ने ही स्थायी रूप से फाड़ दिए जाएँ.



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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