Jul 27, 2021

विजय-दिवस या मूर्खता दिवस


विजय-दिवस या मूर्खता दिवस 


आज तोताराम थोड़ा जल्दी और अखबारवाला कुछ देर से आया सो दोनों का मेल हो गया. इधर हम चाय लाये और उधर तोताराम ने अखबार में से 'शेखावाटी भास्कर' निकाला. पहले ही पेज पर किसी पहाड़ी पर कई जवान आकाश में बंदूक लहरा रहे थे तो थोड़ी सी भिन्न वर्दी में कुछ जवान चट्टानों पर पड़े थे. 

हमने पूछा- क्या दुश्मन अपने सीकर तक भी आ पहुंचे हैं. 

बोला- मोदी जी के रहते ऐसा कैसे संभव हो सकता कि कोई दुश्मन इधर आँख भी उठा कर देख ले. साले को घर में घुसकर मारेंगे जैसे कि जब से यूपी में योगी जी आए हैं बदमाशों की हवा टाइट है. न तो कोई अपराध हो रहा है और न ही किसी को ऑक्सीजन कालाबाज़ारी करने की हिम्मत हुई. तभी तो ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा..

हमने पूछा- तो फिर शेखावाटी वाले पेज पर युद्ध का दृश्य कैसे छपा है ?

बोला- अब जब देश में सब ओर अमन-चैन है, सब प्रेम से रह रहे हैं, किसी बात की कोई कमी नहीं है; न रोजगार की, न चिकित्सा और न ही शिक्षा की. तो फिर मनोरंजन और उत्सव मनाने के लिए कुछ तो चाहिए कि नहीं.

हमने कहा- क्या तुझे याद नहीं अटल जी के समय में आज़ादी के पचास साल के उत्सव में दिल्ली में लोगों ने इण्डिया गेट पर 'रन फॉर फ्रीडम' का नाटक किया था. यह बात और है कि आज़ादी की बजाय फ्री में बाँटी जा रही टोर्चों और बरसातियों के लिए स्वयंसेवक झगड़ने लगे. वैसे जब वास्तव में आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी तब तो ये कहीं सुबह-सुबह संस्कृति और संस्कार के नाम पर पता नहीं देश के किस-किस अज्ञात शत्रु के विरुद्ध लाठी और तलवारें भांज रहे थे.  खैर, पढ़ तो यह युद्ध का दृश्य कैसा है ?

बोला- आज कारगिल विजय-दिवस है. इसलिए अपने हर्ष पहाड़ पर एन सी सी के कैडेट ने कारगिल-विजय का यह दृश्य 'री क्रियेट' किया है. जैसे बोट क्लब पर या फिर जयपुर के स्टेच्यू सर्किल से विधान सभा तक के दांडी मार्च का दृश्य.

हमने कहा- जैसे मोदी जी ने सुभाष की ड्रेस में लाल किले में और फिर उसके बाद अंडमान के मरीना पार्क में सलामी ली थी. या फिर अभी चुनावों में बंगाल में रबीन्द्रनाथ के विग्रह में घूमे थे. हो सकता है यह विग्रह अब गुरु नानक का भ्रम पैदा करने के लिए पंजाब चुनावों में काम आए. 

बोला- शर्म नहीं आती, शहीदों के बलिदान और मोदी के फकीरत्त्व का मज़ाक उड़ाते. 

हमने कहा- हमने शहीदों का मज़ाक नहीं उड़ाया है. उनके प्रति हमारे मन में अपार श्रद्धा है. लेकिन हम शहीदों के बलिदान को चुनाव के लिए भुनाने के पक्ष में भी नहीं हैं.

बोला- तो फिर तुझे कारगिल विजय दिवस से क्या परेशानी है ? 

हमने कहा-लेकिन सच बात तो यह है  कारगिल-विजय हमारे जवानों की वीरता का उत्सव है लेकिन साथ ही हम यह भी मानते हैं कि यह उन नेताओं की मूर्खता को याद करने का दिवस भी है जो शांति-बस-यात्रा के चक्कर में कारगिल में निगरानी की अनदेखी कर बैठे या जिनके झूला झूलने के चक्कर में डोकलाम और पेगोंग हो गये. या फिर बहुत पहले 'हिंदी चीनी भाई भाई' के चक्कर में नेफा में नेफा उधड़ गया था.


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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