Jul 24, 2021

फिक्स स्वयंवर


फिक्स स्वयंवर 



आज तोताराम आया तो उसकी चाल में एक विशेष प्रकार का गाम्भीर्य और राजसीपन था. लग रहा था जैसे वह जानबूझकर इतना संभलकर चल रहा है  मानों ज़रा सा भी कोई क़दम इधर-उधर हुआ तो कहीं धरती का संतुलन न बिगड़ जाए. आते ही बरामदे में बैठने से पहले ही बोला- अर्ज़ किया है.

हमने कहा- जिसको राष्ट्र को संबोधित करने या मन की बात करने की आदत पड़ जाती है वह किसी के दुःख-दर्द को नहीं सुनता. उसे तो बस, अपनी कहनी होती है और कहकर ही रहता है. सो तू हमारे मुकर्रर या इरशाद कहने का इंतज़ार थोड़े ही करेगा. कर डाल जो भी अर्ज़ करना है. 

तोताराम ने अर्ज़ किया-

यूना मिस्र ओ रोमाँ सब मिट गए जहाँ से 

कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी

हमने कहा- जो सिद्धान्तहीन, स्वाभिमानी नहीं होते, प्राण बचाने के लिए किसी के भी आगे समर्पण कर देते हैं वे हमेश बने रहते हैं जैसे तिलचट्टे, केंचुए आदि. खुद्दार लोग टूट जाते हैं लेकिन झुकते नहीं.  आँधी, बाढ़ और टूगान में बड़े पेड़ टूटते हैं, घास का कुछ नहीं बिगड़ता.

बोला- इस बहाने तू हमारे अब की बार दो सौ पार का नारा लगा कर दहाई पर ही अटक जाने का मज़ाक उड़ाना चाहता है और घास के बहाने 'तृण मूल'  को स्थापित करना चाहता है.

हमने कहा- तुम्हारे पास जादुई नेता है अबकी बार महाराष्ट्र में २८८ विधान सभा सीटों में से ३०० पार हो जाना. हम तो तेरे इस गर्वान्वित होने का रहस्य जानना चाहते हैं. 

बोला- दुनिया में आज भी महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन हमारे यहाँ अब भी लड़कियों को इतनी स्वतंत्रता है कि वे स्वयंवर रचा सकती हैं.अपनी संस्कृति की महान परम्पराओं का निर्वाह कर सकती है, कल बिहार के सारण शहर में एक लड़की ने स्वयंवर रचाया और लड़के ने बाकायदा धनुष तोड़कर दुल्हन को जीता. 

हमने कहा- आजकल वीडियो वाइरल करवाकर चर्चा में आने और दो पैसे कमाने का चक्कर है. लोग उचित समय पर मरते हुए आदमी मदद करने की बजाय वीडियो बनाते रहते हैं. वैसे ही जैसे हीरोइनें अपने उत्तेजक फोटो इस्ताग्राम पर पोस्ट करके पैसे कमाती हैं. ये सब पूर्वनिर्धारित नाटक होते हैं.जैसे गुजरात के एक जोड़े ने चर्चित होने के लिए मोदी जी को खुश करने वाला शौचालय का नारा छपवाया और मोदी जी को शादी का कार्ड भेजकर बिना बात का कवरेज पा लिया. स्वयाम्वारों का पूर्व निर्धारित होना कोई आज की ही बात थोड़े है !

बोला- मतलब ?

हमने कहा- विश्वामित्र जी का तड़का को राम से मरवाकर राम को अयोध्या ले जाने की बजाय जनकपुरी ले जाना और वहाँ उस वाटिका के पास ठहराना जहां सीता रोज सुबह पुष्प लेने जाती थी. राम को भी वहीं पुष्प लेने के लिए भेजना, सब क्या तुम्हें पूर्वनिर्धारित नहीं लगता. सुभद्रा और अर्जुन के भागने में कृष्ण का हाथ नहीं था. आजकल भी दिल्ली में संसद से राष्ट्रपति भवन तक फोटोग्राफरों को लेकर नेताओं का पदयात्रा करना क्या कोई दांडी मार्च होता है ? जब वास्तविक दांडी मार्च हो रहा था, सामने डंडा, लाठी और बंदूक लिए सिपाही दिख रहे थे तब पता नहीं ये  वीर कहाँ छुपे हुए थे. ऐसे नाटक करने वाले सब 'माफ़ी वीर' हैं फिर चाहे वह अंग्रेजों से मांगनी हो या फिर इमरजेंसी में इंदिरा गाँधी से . ऐसे ही इन वीरों ने १९९७ में इण्डिया गेट पर स्वतंत्रता की स्वर्णजयंती पर बरसातियों और टोर्चों के लिए झगड़ा किया था.

सरयू तट पर दीये जालाने से और हेलिकोप्टर से रामलीला के राम-लक्ष्मण को बुलाकर उन्हें तिलक करने से रामराज नहीं आता . वह त्याग, मर्यादा और सुशासन से आता है. 

किसी देश की संस्कृति ऐसे नाटकों से विकसित नहीं होती. उसके मूल्यों की रक्षा के लिए बलिदान देना होता है.जैसे शरणागति की रक्षा के लिए रणथम्भौर के हम्मीर अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते-लड़ते मारे गए थे. कल्पना कर यदि उस धनुष की जगह किसी ने मज़ाक में ही कोई मज़बूत सा धनुष रखवा दिया होता और उसे न तोड़ पाने की स्थिति में वह शादी केंसिल हो जाती ? कभी नहीं. 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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