Jul 26, 2021

चल, तैयार हो जा


चल, तैयार हो जा


आज तोताराम ने चाय जैसी तुच्छ वस्तु को दरकिनार करते हुए आदेश दिया- चल, तैयार हो जा. 

हमने कहा- कोई फायदा नहीं. २१ जून को रिकार्ड बनाना था सो कागजों में लग गए ८५ लाख टीके. २१ जून को रिकार्ड बनाने के चक्कर में कई दिनों से रोक रखा था कार्यक्रम और अब कई दिनों तक रुका रहेगा.इसलिए अब कहीं चलने का कोई फायदा नहीं. यह भी हो सकता है कि कुम्भ में रोज ५० हजार टीके लगाने का ठेका लेने वाली किसी निजी कंपनी की तरह वैसे ही कागज पर तेरे-मेरे नाम से टीका लगा दिया गया हो. 

अखबार में आज कहीं टीकाकरण का कोई समाचार नहीं है.रामकिशन यादव ने कई दिन पहले ही कह दिया था कि जो मर रहे हैं वे डाक्टरों के इलाज और टीके से मर रहे हैं और जो बचे हुए हैं वे उनके काढ़े से बचे हुए हैं.  वैसे  अपने सीकर में हनुमान जी और गणेश के ऑनलाइन दर्शन का समाचार ज़रूर है. अब जब 'विघ्न विनाशक गणेश' और' नासे रोग हरे सब पीरा वाले' हनुमान जी अवेलेबल हैं तो चिंता किस बात की.   

बोला- प्रभु, ब्रेक लगाएं तो निवेदन करूं. तू तो देशभक्तों की तरह 'ग' सुनते ही गाँधी और 'न' सुनते ही नेहरू को गाली निकालने लगता है .मैं किसी टीकाकरण केंद्र में चलने के लिए नहीं कह रहा हूँ. मैं तो दिल्ली चलने की बात कर रहा हूँ.

हमने कहा- दिल्ली क्या करेंगे ? वहाँ देश को संभालने वाले बहुत से सेवक पहले से ही पिले पड़े हैं. न खुद साँस ले रहे हैं और न ही देश को साँस लेने दे रहे हैं. 

बोला- तभी तो. देश को कभी भी हमारी ज़रूरत पड़ सकती है. 

हमने कहा- हमारी तरह निर्देशक मंडल में बैठे अडवानी जी वहीँ दो किलोमीटर की दूरी पर उपलब्ध हैं सेवा के लिए. कोई उन्हें ही उलटे मन से याद नहीं कर रहा है तो हमारी किसे दरकार है. 

बोला- कल तूने सुना नहीं महामहिम का अपने गाँव में भाषण. दिल्ली में किसे बताते अपना दर्द. दिल्ली में लोग अपने मन की बात ज्यादा सुनाते हैं लेकिन दूसरे के दिल की नहीं सुनते. पता नहीं किस तरह चार साल सहन करते रहे बेचारे जी रमानाथ जी. अब जब अपनों के बीच पहुंचे तो दर्द छलक आया.बोले- टेक्स कट कर मुझे जो मिलता है वह तो एक मास्टर से भी कम है.

हमने कहा- वास्तव में है तो बहुत पीड़ाकारक कि कहने को तनख्वाह ५ लाभ और वास्तव में मिलें दो लाख. लोग पांच लाख के हिसाब से अपेक्षाएं करने लगते हैं जबकि आपकी औकात है मात्र २ लाख की. इससे अच्छा तो यह हो कि वेतन दो लाख बताओ और दो लाख ही दो. नाम बेचारे कोविंद जी का और जमा हो जाता है पीएम केयर्स में.

बोला- और दुःख की बात तो यह है कि रमानाथ जी ने मोदी जी पर विश्वास कर लिया और यह नहीं पूछा कि टेक्स कितना कटेगा. कटेगा या नहीं. हाथ में कितना वेतन आएगा. शाखा के पक्के और ईमानदार स्वयंसेवक ठहरे. मोदी जी की बात टाल नहीं सके. इससे तो वकील ही अच्छे थे. रसीद दो दस हजार की और लो दो लाख. 

हमने पूछा- तो अब रामनाथ जी क्या करेंगे ?

बोला- मुझे तो लगता है कहीं ज्यादा दुखी होकर इस्तीफा न दे दें. यदि ऐसा हुआ तो राष्ट्रपति के वेतन का भ्रम खुल जाने के बाद क्या पता कोई भला आदमी इस पद के लिए तैयार भी हो या नहीं. हो सकता है वेंकैया जी भी इसी तनाव से गुजर रहे हों और रमानाथ जी की तरह वे भी इस्तीफा दे दें. ऐसे में एक एक दिन में कृषि कानून जैसे राष्ट्र हित के अनेक बिल फटाफट कौन पास करेगा ? इसीलिए तो तुझे दिल्ली चलने को कह रहा हूँ. हो सकता यह जिम्मेदारी हमें ही संभालनी पड़े. हमारी पेंशन तीस-तीस हजार रूपए है और हम कोई टेक्स भी नहीं देते. और वैसे भी हमें कोई हीनभावना नहीं आएगी क्योंकि हम उस पद से रिटायर हुए हैं जिससे इस गरीब देश का राष्ट्रपति भी ईर्ष्या करता है. 


 
हमने कहा- लेकिन तोताराम, हम तत्काल नहीं चल सकते. घर में तो सारा दिन एक लुंगी में पंखा झलते काट देते हैं. अब पहले वाला ज़माना नहीं है जब हमने १९५५ में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू को पिलानी से एक एम्बेसडर कार में अपने गाँव चिड़ावा के रेलवे स्टेशन आते देखा था और फिर वहाँ से लोहारू-जयपुर वाली ट्रेन में लग कर आये विशेष डिब्बे में बैठकर नवलगढ़ के पोद्दार कॉलेज के स्वर्णजयंती समारोह की अध्यक्षता करने जाते देखा था.  आजकल के हिसाब से हमारे पास दिल्ली चलने के लिए वातानुकूलित स्पेशियल ट्रेन या आठ सौ करोड़ का विशेष प्लेन नहीं है. इस लू में यदि टें बोल गए तो कोई 'शववाहिनी गंगा' की तरह टीलों में फेंक देगा और कोई चौथा स्तम्भ इस खुशामदी समय में रिपोर्टिंग भी नहीं करेगा. या फिर कोई संवेदनशील पारुल खक्कर कविता लिखाकर बिना बात देशभक्तों की गलियों का निशाना बनेगी. 

बोला- तो क्या देश को ऐसे ही राम भरोसे छोड़ दें ?

हमने कहा- तो अब क्या किसी और के भरोसे चल रहा है ? हर मौके पर सरकार और सेवक 'राम कार्ड' ही तो खेल रहे हैं.

बोला- मास्टर, यदि यहाँ से दिल्ली के लिए सीधी कार कर लें और रात को ठण्ड-ठण्ड में चले चलें तो क्या तू तैयार है ?

हमने कहा- तब तो विचार किया जा सकता है. तब भी एक शर्त है कि भले ही हम राष्ट्रपति बन जाएँ लेकिन किसी मंदिर-मस्जिद के लिए कोई चंदा नहीं देंगे. आज राम मंदिर है, कल मथुरा का कृष्ण मंदिर, परसों काशी का विश्वनाथ मंदिर और इसी तरह तेंतीस करोड़ देवी-देवता हैं. किस किस को चन्दा देंगे. हमारी पेंशन तो मुल्ला जी की दाढ़ी की तरह ताबीजों में ही चली जायेगी. 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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