Jul 23, 2021

रामराज उर्फ़ ब्रह्मदत्त तकनीक

रामराज उर्फ़ ब्रह्मदत्त तकनीक 


आज जैसे ही तोताराम आया, हमने उसे सूचना दी- तोताराम, रामराज आ गया. 

बोला- तो क्या छुट्टी गया हुआ था ? 

हमने कहा- रामराज कभी छुट्टी पर नहीं जाता. वह कोई कर्मचारी थोड़े है. वह तो अच्छे शासन-प्रशासन का प्रतीक है. यदि सौभाग्य से कोई काम करने वाला भला जनसेवक आ जाता है तो लोगों को अनुभव होने लगता है. यदि कोई लफ्फाजी वाला ढपोरशंख आ जाए तो न कुछ बोलते बने, न सुनते. बस, झींकते रहो. 

बोला- तो फिर ऐसे क्या बोल रहा है जैसे रामराज कोई अपने एरिया का पोस्टमैन है जो छुट्टी से लौट आया है. शुद्ध तत्सम में बोल- रामराज्य आ गया. यदि रामराज्य आ गया तो गुजरात की कवयित्री पारुल खक्कर को बता जो गंगा में तिरते शवों को देखकर 'साहब' से व्यंग्यपूर्वक  कहती है कि आपके 'रामराज्य' में  गंगा शववाहिनी हो गई है. या फिर योगी जी को बता जो गंगा किनारे लाखों दीये जलाकर राम और उनके राज्य को ढूँढ़ रहे हैं.

हमने कहा- तोताराम, हम तो एक सामान्य सी बात कहना चाहते थे लेकिन तूने उसे बड़े-बड़े संदर्भो से जोड़ दिया.कल हम टीका लगवाने गए थे लेकिन लगा नहीं.

बोला- अकेले-अकेले भकोसने की फ़िराक में रहने वालों के साथ यही होता है. मुझे भी बुला लेता तो साथ-साथ चले चलते. 

हमने कहा- तू चलता तो भी हमारे देश के कर्मचारी नियम कायदे कानून के बहुत पक्के हैं. नियमविरुद्ध कुछ नहीं करते. इसीलिए तो कह रहा हूँ कि रामराज्य आ गया. राम के पूर्वज हरिश्चंद्र हुए हैं जिन्होंने श्मशान का टेक्स चुकाए बिना सगे बेटे का भी अंतिम संस्कार नहीं होने दिया. 

बोला- साफ-साफ बता हुआ क्या ?

हमने कहा- हमने पहला टीका ३ अप्रैल को लगवाया था और उसे ८४ दिन आज होते हैं.सो कर्मचारियों ने साफ़ कह दिया कि टीका किसी भी हालत में आज नहीं लगेगा. कल लगवा लेना. 

बोला- आज कहाँ से लगेगा. आज और कल तो छुट्टी है टीके वालों की. वैसे कानूनन वह भी ठीक ही था. कल मतलब आज के बाद जो वर्किंग डे आये तब.

हमने कहा- हमने तो उससे कहा था कि जब हमने लगवाया था तब तो चार हफ्ते के गैप की बात थी. अब तो ८४ में बीस घंटे ही तो कम हैं. लगा दो लेकिन नहीं माना. नियम की ऐसी पालना तो रामराज्य में ही होती होगी. 

बोला- यह कोई रामराज्य नहीं है. यह भी नाटक है. पहले तो टीका-उत्सव मना रहे थे और जब टीके कम पड़ गए तो चार की जगह १२ हफ्ते का गैप कर दिया. यदि अब भी टीके नहीं आते तो कह देते एक ही काफी है, दूसरे की ज़रूरत ही नहीं है. ये सब ब्रह्मदत्त जी शर्मा जी वाली तकनीक है.

हमने पूछा- टीकाकरण के इस काल में टीकों के अपव्यय और मितव्ययिता की बातें तो सुनने में आईं लेकिन यह ब्रह्मदत्त तकनीक क्या है ?

बोला- भूल गया अपने गाँव में म्युनिसिपैलिटी के नीचे वाली दुकान में बैठने वाले ब्रह्मदत्त जी शर्मा को जिनसे हम बचपन में जब तब पेट दर्द के बहाने चूरन लेने जाते थे.  वे खाने के बारे में पूछे जाने पर गरीब से दिखने वाले बच्चे से कहते थे कि जब, जो मिले खा लेना और ठीक-ठाक से दिखने वाले बच्चों को खाने के बारे दस पथ्य-परहेज बताते थे. तो टीकाकरण में भी सरकार का यही नियम है-

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय

जब टीका आ जाय तब टीका उत्सव होय 

मंथन का निष्कर्ष- पहले टीके की इम्यूनिटी कब तक रहती है ? जब तक दूसरा टीका न लग जाए.



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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