Feb 25, 2022

दो लाइन की कविता : चार लाइन का पता


दो लाइन की कविता : चार लाइन का पता 


जैसे ही ओमेक्रोन की दहशत ने दस्तक देनी शुरू कर दी है वैसे ही विरोधाभाषी कृत्य शुरू हो गए हैं. दिन में दो गज की दूरी को धता बताकर रैलियाँ और शाम को दिल्ली में प्रधानमंत्री जी के नेतृत्त्व में ओमिक्रोन से बचाव के लिए रणनीतिक बैठक. हमने भी सोच लिया है कि दिन में बरामदे में, गली में बिना मास्क के घूमेंगे और रात में कर्फ्यू. मनमर्जी और नियमपालन दोनों. इसी दोमुंहे चरित्र के तहत बरामदे में बैठे थे. दूसरा कारण यह भी कि आज चार दिन बाद तापमान शून्य से चार डिग्री ऊपर आया है. भविष्य वैसे ही उज्ज्वल दिखाई देने लगा है जैसे पेट्रोल  ११५ रुपए लीटर से १०५ रुपए होने पर गाड़ी वालों को.

कुछ दूर पर तोताराम चला आ रहा था. लगा, या तो चाल में मस्ती है या फिर जूते में कोई कंकड़ घुस गया है. बरामदे तक पहुंचते न पहुंचते तो लड़खड़ा ही गया. हमने हाथ थामते हुए कहा- क्या बात है ? चक्कर आ गया क्या ?

बोला- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. बस, अच्छे दिन में पैर उलझ गया था. 

हमने कहा- अच्छे दिन क्या कोई संक्रांति के दिनों में सड़क पर कट कर गिरा चीनी मंझा है जिसमें पैर उलझ जाए ?

बोला- बस, कुछ ऐसा ही समझले. 

हमने कहा- पहले तो हम भी दूसरे मनहूस लोगों की तरह 'अच्छे दिन' को जुमला समझ कर मजाक कर लिया करते थे लेकिन अब विश्वास हो गया कि 'मोदी है तो मुमकिन है'. 

बोला- यह करिश्मा मोदी जी का नहीं, अखिलेश यादव की पार्टी का है. मोदी जी को हमारे लिए कहाँ फुर्सत है.वे तो राजाओं के मंदिर-मूर्तियाँ बनवाते फिरते हैं. आज तक ब्राह्मण क्षत्रिय राम, कृष्ण को पूजते-पुजवाते रहे. क्षत्रियों को राज मिला, वैश्यों ने व्यापार में धन कूटा. है किसी ब्राह्मण की मूर्ति, है किसी ऋषि का मंदिर ? दुर्वासा को क्रोधी कहकर बदनाम कर रखा है, द्रोणाचार्य और सुदामा की गरीबी जगजाहिर है, बूढ़े परशुराम का रामचरितमानस में तुलसी ने जो तमाशा बनवाया है वह सब जानते हैं. लेकिन अब अखिलेश ने कहा है कि वे परशुराम की १०८ फुट ऊंची प्रतिमा बनवायेंगे. अभी नमूने के तौर पर गंगाखेड़ा में परशुराम की सात फुट ऊंची प्रतिमा का उदघाटन किया है. और उस मंदिर के बाहर ६८ फुट का फरसा स्थापित किया गया है. 

हमने पूछा- लेकिन तेरे इस तरह से बरामदे के पास गिरते-गिरते बचने का क्या कारण है ? इसका परशुराम की मूर्ति से क्या संबंध है ? 

बोला- मैं ज़रा ज्यादा ही गौरवान्वित हो गया और परशुराम जी की सात फुट की प्रतिमा के हिसाब से ज्यादा लम्बी जनेऊ पहन ली जो साइड से लटक गई. बस, उसी में पाँव उलझ गया था. 

हमने कहा- किसी को देखकर बिना सोचे समझे नक़ल नहीं करनी चाहिए. 

बोला- जो १०८ फुट की प्रतिमा बनवायेंगे उसका फरसा पता है कितना बड़ा है ?  पूरा ६८ फुट.

हमने पूछा- यह तो बहुत अजीब है. इतना लम्बा फरसा चलाने असुविधा नहीं होगी ?  

बोला- लगता है ये नेता लोग सबका 'यूज़' करते हैं- .'यूज़ एंड थ्रो'. मतलब परशुराम जी फरसे को घसीटते फिरें, चला नहीं सकें. 

हमने कहा- तोताराम, आजकल के नेता, जो अपने को सेवक कहते हैं, पुराने समय के राजा और क्षत्रिय ही हैं.राजा भी ऐसे जो जनता के लिए कुछ न करें. बस, ऐश करें, दिन में चार बार नए नए कपड़े बदलें और जनता को जात-धर्म के नाम पर उल्लू बनाएं. यदि वास्तव में परशुराम जी आज होते तो इस धरती को क्षत्रिय हीन करके 'महिदेवन' को दान में दे देते. 

बोला- मास्टर, परशुराम जी हालत तो वैसे ही कर दी है जैसे- दो लाइन की कविता और चार लाइन का पता. चूहे से लम्बी पूंछ. जैसे मुझ चार फुटे की सात फुटी जनेऊ.  



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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