Feb 16, 2022

ठण्ड कभी भी लौट सकती है


 ठण्ड कभी भी लौट सकती है


दो दिन से ठण्ड कुछ कम हो गई है. कल दोपहर को तो होली खेलने के बाद जैसा सुहावना सा लगने लगा था. 

तोताराम चाय पीकर जा चुका. हमने नाश्ता किया. जैसे ही सूरज कुछ ऊपर आया, लगा कि बरामदे में बैठकर दाढ़ी बनाई जा सकती है.वैसे भी अब बंगाल का चुनाव निबट ही गया. दाढ़ी की कोई लोकतांत्रिक उपादेयता नहीं बची. तभी देखा तोताराम एक बड़ा सा थैला कंधे पर लटकाए चला आ रहा है. 

हमने कहा- तोताराम, तुम्हारा सुबह चाय पीने के अतिरिक्त दिखाई देना वैसे ही आशंकास्पद लगता है जैसे दो चुनावों के बीच किसी सेवक का अपने दल-बल सहित भले घरों के आसपास दिखाई देना. वैसे इस झोले में क्या है ?

बोला- लगता है अब सर्दी का आखिरी राउंड निकल गया सो कुछ गरम कपड़े धोये थे उन्हीं को प्रेस करवाने जा रहा हूँ.

हमने कहा- १० मार्च तक रुक जा. हमने तो समझा था तुझे भी सेवकों की तरह लोक सेवा करते करते अचानक परलोक का ख्याल आ गया हो और झोली लेकर हिमालय की ओर निकल पड़ा हो.

बोला- बन्धु, ये सब सुविधाएं तेरे मेरे जैसे गृहस्थों को कहाँ उपलब्ध हैं. हमें तो कबीर की तरह संसार का यह खटरागी करघा आखिरी दिन तक चलाना पड़ेगा. योगी जी, मोदी जी की बात अलग है. वे तो कभी चल दे सकते हैं. 

हमने कहा- तो क्या समझता है ज़िम्मेदारी या तो तुझ पर है या फिर कबीर पर थी. अरे, मोदी जी और योगी जी तो यदि जाना भी चाहेंगे तो भी यह समस्त संसार उन्हें जाने भी नहीं देगा. 

बोला- क्यों 

हमने कहा- पिछले दिनों मोदी जी ने दुनिया को 'सूर्योपनिषद' के द्वारा ऊर्जा संकट का हल बताया था. सो अब जाने किस किस देश के नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता सूर्योपनिषद का अध्ययन करने मोदी जी के आवास के चारों  तरफ चक्कर लगा रहे हैं. इसके बाद योगी ने ग्लोबल वार्मिंग का हल निकाल लिया है. अब जब तक यह समस्या दुनिया में है तब तक लोग उन्हें झोली उठाकर कैसे जाने देंगे. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- इसका मतलब तूने उनका बुलंदशहर में एक हफ्ते पहले दिया बयान नहीं सुना. उन्होंने कहा है १० मार्च के बाद सब गरमी निकाल देंगे. इसीलिए तो हम तुझे कह रहे थे कि १० मार्च तक रुक जा. क्या पता, योगी जी सारी की सारी गरमी निकाल दें और उत्तर भारत का पारा फिर माइनस में चला जाए और तुझे सर्दी के कपड़े फिर निकालने पड़ जाएँ.  

बोला- और अगर १० मार्च को जनता ने योगी की गरमी निकालने वाली तकनीक अप्लाई करने का अवसर नहीं दिया तो ?

हमने कहा- तब भी मोदी जी की बात और है लेकिन योगी जी झोला या झोली उठाकर नहीं जा सकते. 

बोला- क्यों ? उनके बाल-बच्चे कौन प्लस टू में हैं जिनके कैरियर पर दुष्प्रभाव पड़ेगा.

हमने कहा- वे महंत हैं, संत नहीं. संत के पास तो कमंडल-खड़ाऊँ के अतिरिक्त कुछ नहीं होता लेकिन महंत का तो बड़ा तामझाम होता है. लाव-लश्कर. हाथी-घोड़े, तीर-तमंचा, चेले-चपाटे, खेत-खलिहान. आश्रम ट्रांसफर करें तो महिनों लग जाते हैं. 

बोला- तो चाय बनवा. कपड़े प्रेस करवाने का कार्यक्रम केंसिल. अपने पास कौन मोदी जी की तरह असंख्य कुरते-जाकेट हैं जिनके प्रबंधन के लिए एक स्वतंत्र मंत्रालय चाहिए. चार कपड़े हैं, कभी भी रख, धो, निकाल लेंगे. 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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