Apr 12, 2022

फाइल देखी क्या ?


फाइल देखी क्या ?


तोताराम ने आते ही पूछा- फाइल देखी क्या ?

हमने कहा- हमें फाइल कौन दिखाता है ? हमारा प्रमोशन तीन साल देर से हुआ क्योंकि प्रिंसिपल ने हमारी फाइल बिना किसी कारण के तीन साल तक ऊपर भेजी ही नहीं. हमें कौन फाइल दिखाएगा ?और तो और, हमारी गली में पता नहीं कब-किसी विकास की योजना बन जाती है और चुपके से विकास हो जाता है ? हमें तो पता तब चलता है जब बिना बात अचानक घर के सामने खुदाई कर दी जाती है और फिर कई दिन तक कुछ नहीं होता. धीरे-धीरे लोगों के आने-जाने से और हवा-बरसात से वह मिट्टी जैसे तैसे फिर सड़क पर बेतरतीब फ़ैल जाती है. दो साल पहले गली में सीमेंटेड सड़क बनी लेकिन पता नहीं किस सिद्धांत के तहत कुछ हिस्से में बिना सीमेंटेड छोड़ दी गई. कई बार प्रार्थना पत्र दिए लेकिन कोई उत्तर नहीं. और तू कहता है- फाइल देखी क्या ? आज तक किसी को पीएम केयर फंड की फाइल देखने को मिली ?.

बोला- मैं किसी सरकारी फाइल की नहीं बल्कि विवेक अग्निहोत्री की राष्ट्रीय सद्भाव बढ़ाने वाले विवेक से पूर्ण फिल्म 'कश्मीर फाइल' की बात कर रहा था लेकिन तू किसी को बोलने दे तब ना. कई राज्यों में सरकार ने फिल्म टेक्स फ्री कर दी है. फिल्म देखने के लिए आधे दिन की छुट्टी भी दी जा रही है.

हमने कहा- टेक्स फ्री के बाद भी सिनेमा हॉल तक जाने-आने के ऑटो के पैसे, कुछ कम सही लेकिन टिकट के पैसे भी लगेंगे ही और अगर वहाँ पानी भी पी लिया तो दस-बीस रुपए और जोड़ ले. छुट्टी से हमें क्या मतलब ? हमारी  तो छुट्टी ही छुट्टी है. अब तो दुनिया से छुट्टी का इंतज़ार है. 

बोला- थोड़ा सब्र कर, मोदी जी राष्ट्रीय एकता और सद्भाव बढ़ाने वाली यह फिल्म कुछ दिन बाद बिलकुल फ्री भी करवा देंगे.

हमने कहा- लेकिन इससे फिल्म बनाने वाले को नुकसान नहीं होगा ? अभी हरियाणा के एक भाजपा नेता के फ्री में यह फिल्म दिखाने पर विवेक अग्निहोत्री ने ऐतराज़ किया था.

बोला- ऐसी सामाजिक सद्भाव बढ़ाने वाली फिल्म के निर्माता को सरकार कभी घाटा नहीं होने देगी. सरकार के हाथ लम्बे हैं, किसी भी तरह से भरपाई कर देगी. 

हमने कहा- तोताराम, केवल फ्री से काम नहीं चलेगा.आजकल जुलूस और रैली में जाने वाले कम से कम तीन-चार  सौ रुपए लेते हैं. हम क्या उनसे भी सस्ते हैं ? कम से कम दो सौ रुपए लिए बिना हम जाने वाले नहीं. 

बोला- ज्यादा भाव खाने की ज़रूरत नहीं है. अभी तो देशभक्त लोग शांत हैं. प्रेरित कर रहे हैं. कल को जब घर-घर जाकर जांच करेंगे कि किसने फिल्म देखी और किसने नहीं देखी तब बहुत चक्कर पड़ जाएगा. अगर सरकार ने कह दिया कि जब तक फिल्म देखने के टिकट को आधार कार्ड से नहीं जोड़ोगे तब तक पेंशन नहीं मिलेगी, तब ? 

हमने कहा- कह देंगे देखी है. 

बोला- केवल इतने से काम नहीं चलेगा.  वे पूछेंगे- जोश आया या नहीं ? आँखों में खून उतरा या नहीं ? नारे लगाए या नहीं ? मरने-मारने का मन हुआ या नहीं ? तब क्या कहेगा ? 

हमने कहा- कह देंगे सब कुछ किया. कहें तो अब दीवार से सिर भिड़ा लें. कहें तो किसी आतंकवादी से लगने वाले मुसलमान का खून पी जाएँ. 

बोला- अब ठीक है ? 

हमने कहा- पता नहीं, इस फिल्म में क्या है लेकिन यह पहला मौका है जब सरकार किसी फिल्म का इस तरह प्रमोशन कर रही है. हो सकता है, भाजपा समर्थित वी पी सिंह के कार्यकाल में, उसके बाद अटल जी के छह साल और तत्पश्चात मोदी जी के आठ साल में विस्थापित और पीड़ित कश्मीरी पंडितों के लिए किये गए बहुत से राहत कार्य भी दिखाए गए होंगे. 

बोला- इसमें राहत कार्यों का कोई विवरण नहीं है. भाजपा ने तो खैर, कुछ किया ही नहीं लेकिन मनमोहन सरकार ने जो राहत पॅकेज दिए, मासिक भत्ता और माकन बनाने के लिए दी गई एकमुश्त राशि का भी ज़िक्र नहीं है. 

हमने कहा- तो फिर क्या केवल खून खच्चर दिखाने के लिए ही फिल्म बनाई है ? जब कोई मरहम ही नहीं लगाना है तो बिना बात घाव को कुरेदने से क्या फायदा ? अब उस पर केवल चुनावी ध्रुवीकरण की राजनीति की मक्खियाँ बैठेंगी. हमें तो ऐसी फिल्म बनाने, उसकी सिफारिश करने में कोई कुटिल मंतव्य ही नज़र आता है. ऐसी फिल्म का क्या उद्देश्य हो सकता है ? कश्मीर से विस्थापित कार्यकर्ता सुनील पंडित ने भी इस फिल्म को इकतरफा बताया  तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका उत्पीडन किया. उनके घर के बाहर अपमानजनक नारे लगाए जिससे भयभीत उनकी पत्नी बेहोश भी हो गई. 

यह तो वैसे ही है जैसे 'विभाजन विभीषिका दिवस' मनाना.   


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment