Apr 6, 2022

लगा दिया धंधे से


लगा दिया धंधे से 


वैसे तो महानायक अब भी धड़ल्ले से चल रहे हैं लेकिन हमारी हालत उनकी एक फिल्म नटवरलाल के एक गीत की अंतिम पंक्ति जैसी हो रही है- यह जीना भी कोई जीना है लल्लू. 

जीना कैसा भी हो लेकिन पेंशन पाने वाले को अपने जीवित होने का प्रमाण हर वर्ष नवम्बर में सरकार को देना होता है. हो सकता है कि सरकार यह समझती हो कि विकास की इस आँधी में एक पेंशनयाफ्ता का जीवित रहना आसान नहीं है इसलिए बार बार पता करते रहना चाहिए कि डोकरा लुढ़क गया हो और घर वाले पेंशन पेले जा रहे हों. 

हम इस मामले में बहुत नियमित हैं और बड़ी श्रद्धा और तत्परता से एक या दो नवम्बर को अपने जीवित होने का प्रमाण सरकार को दे आते हैं. कल हुआ यूं कि संबंधित क्लर्क ने कहा- मास्टर जी, फोटो लगाकर यह फॉर्म एक दो दिन में भरकर दे जाएँ. 

हमने कहा- तो क्या अब तक बिना किसी रिकार्ड और जानकारी के ही हमें पेंशन देते रहे ? पेंशन शुरू होने से पहले हमने सब जानकारी दे दी थी. उसके बाद में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. बिना बात हमें दौड़ाने की ज़रूरत नहीं है. 

मैनेजर भला लड़का था, बोला- गुरूजी, हम आपको क्यों परेशान करेंगे ? अब ऊपर से आदेश हैं तो हम क्या करें ? 

हमने कहा- ऊपर तो अब मोदी जी ही हैं. भगवान के लिए तो अब उन्होंने कुछ छोड़ा है नहीं. हर मर्ज़ की दवा, हर समस्या का हल उनकी 'लाल किताब' में है. लेकिन उनका हल बहुत संश्लिष्ट और इतना तकनीकी है कि फरियादी के लिए पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाए.  प्रवेश भले ही फ्री हो लेकिन बाहर निकलने की भारी फीस लगती है. अगर कोई उन्हें नमस्ते भी कर ले तो वे उसे नेहरू जी की कमियाँ बताते हुए एक नई योजना बता देंगे, जिसमें दस फॉर्म भरने का विधान होगा और आपकी छींक तथा उबासी को भी आधार कार्ड से लिंक करने की बाध्यता लाद देंगे. नहीं तो नागरिकता और नौकरी पर संकट की धमकी, विकास में रुकावट का तमगा. 

रो-झींक कर फॉर्म भरने बैठे ही थे कि तोताराम आ गया, बोला- पहले चाय बनवा ले. मुझे भी जीवित होने का नया फॉर्म सभी जानकारियों के साथ भरना है. 

हमने कहा- क्या ख़ाक भरेंगे. फॉर्म इतना धुंधला छपा है कि कुछ समझ में ही नहीं आता. 

बोला- ये सब कागजी कार्यवाहियां हैं जिन्हें कोई देखता-पढ़ता नहीं. बस, लोगों को धंधे से लगाकर रखना है जिससे जनता समझे कि सरकार है और कुछ न कुछ कर रही है.

हमने कहा- लगता है मोदी जी ने हमें ही नहीं, सारी दुनिया को धंधे से लगाने का इंतज़ाम कर दिया है. 

बोला- कैसे ?

हमने कहा- मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक नया मन्त्र दिया है- एक सूर्य : एक विश्व : एक ग्रिड. कहा है-‘'जब से धरती पर जीवन है, सभी जीवों का जीवन चक्र, प्रतिदिन की दिनचर्या सूर्योदय और सूर्यास्त से जुड़े हुए हैं. जब तक प्रकृति के साथ इस संबंध को कायम रखा जाएगा, धरती सुरक्षित और स्वस्थ रहेगी'. 

इसी क्रम में उन्होंने 'सूर्योपनिषद' का भी ज़िक्र किया. 

बोला- यह सूर्योपनिषद कौन सा उपनिषद है ?

हमने कहा- जिस प्रकार भारत में राजनीतिक पार्टियों और मोदी जी के जैकेट-कुर्तों की संख्या अनगिनत है वैसे ही उपनिषदों की संख्या भी सीमित नहीं है. कल को कोई नरेंद्रोपनिषद भी लिख मार सकता है.

बोला- फिर भी जिस तरह मोदी जी ने भारत की जनता को तरह-तरह की योजनाओं और फॉर्म्स  में उलझा रखा है वैसे अब दूसरे देशों को भी धंधे से लगा दिया है. देखना अब सूर्योपनिषद के लिए विदेशी विद्वान भारत के चक्कर लगाते नज़र आयेंगे.

भारतीय युवाओं के लिए भी संस्कृत सीख कर उपनिषदों से सौर ऊर्जा निकालकर रोजगार के अवसरों के लिए एक नया मंत्रालय और योजना घोषित होने ही वाली है.  

 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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