Sep 9, 2010

चेलसी की शादी और ओबामा


ओबामा जी,
नमस्ते । ये मीडिया वाले भी बड़े फालतू लोग होते हैं । कहीं तो मरने जीने जैसी ज़रूरी बातों पर ध्यान नहीं देते और कहीं कुछ नेकनाम या बदनाम लोगों के गू-मूत तक के चर्चों से अखबार के फ्रंट पेज और टी.वी. के प्राइम टाइम को इतना भर देते हैं कि सारे घर में बदबू आने लगती है । पर क्या किया जाए । आदमी स्वाइन फ्लू और एड्स से बच सकता है मगर इनसे बचना मुश्किल है । हम यहाँ ऐसी बदबू फैलाने वाली चर्चा नहीं करने जा रहे हैं । हम तो आपको बताना चाहते हैं कि लोगों ने इसी बात का बतंगड़ बना दिया कि क्लिंटन दंपत्ति ने अपनी बेटी की शादी में ओबामा को नहीं बुलाया ।

हम तो कहते हैं कि अच्छा किया । अब एक महाशक्ति देश के राष्ट्रपति के पास यही काम है क्या कि शादियाँ अटेंड करता फिरे । छोटे-मोटे नेताओं की बात और है कि उन्हें कोई पूछता नहीं और न ही उनके पास कोई काम होता है सो वे तो इंतज़ार ही करते रहते हैं । कोई बुलाए या न बुलाए वे पहुँच ही जाते हैं । जैसे कि चंदा और वोट माँगने वाले शवयात्रा के साथ, कोई न कोई ग्राहक पकड़ने के लालच में, श्मशान घाट भी पहुँच जाते हैं । लोगों ने इस बात को इस तरह प्रोजेक्ट किया जैसे कि यह आपका अपमान है । अरे भई, ऐसी बातों में क्या अपमान और क्या मान । यह तो सबका निजी मामला होता है ।

हमारे यहाँ प्रियंका गाँधी की शादी हुई तो उसमें नरसिंह राव और नारायण दत्त तिवारी जैसे लोगों को भी नहीं बुलाया । मगर उन्होंने कोई बुरा नहीं माना । और घर के बाहर ही नाच कर लड्डू बाँटकर अपनी खुशी जाहिर कर ली । संवेदनशील और उत्साही लोगों को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता उन्हें तो खुश होना है सो हो लेते हैं । लोग तो कम्प्यूटर में देख कर काम चला लेते हैं । यहाँ तो शादी की मिठाइयों की खुशबू सात समंदर पार से भारत तक आ रही थी ।

हमारे यहाँ शवयात्रा और लड़की की शादी में जाना दोनों पुण्य के काम माने जाते हैं और इनमें निमंत्रण का इंतज़ार नहीं किया जाता । ये अवसर तो किसी की मदद करने के होते हैं । मगर आजकल तो शादी ही क्या अंतिम संस्कार तक के काम भी ठेके पर होने लगे इसलिए घरवाले भी पेंट की जेबों में हाथ डाले घूमते रहते हैं । पता ही नहीं चलता कि बन्दा घराती है या बराती । पहले उक्त दोनों ही कामों में लोगों की मदद की जरूरत पड़ती थी । और लोग लड़की की शादी में केवल काम करवाने जाते थे । खाने के समय जानबूझ कर खिसक लेते थे । पर आजकल तो लोग केवल खाने के लिए ही शादी में जाते हैं । आपने जब मनमोहन जी को पार्टी दी थी तब 'सलाही दंपत्ति' केवल दारू पीने ही चले आए, सारे सुरक्षा इंतजामों को धता बताकर ।

वैसे हम सोचते हैं कि आजकल आपके पास इतने काम हैं कि यदि निमंत्रण आता भी तो आपके लिए जाना कहाँ संभव हो पाता ? बड़े और राजनीतिक लोगों में बात आने-जाने की नहीं होती, बात होती है पालिसी की । सो आपको न बुलाने का फैसला किसी न किसी नीति के तहत ही लिया गया होगा । हम तो क्लिंटन साहब की जगह होते तो ऐसा पत्र लिखते कि आने वाला न तो आ ही सकता था और न ही यह कह सकता कि उसे बुलाया नहीं गया । जैसे कि लिख देते- “निमंत्रण भेज रहे हैं । आप आते तो हमें बहुत खुशी होती मगर आपके समय के महत्व और वर्तमान ज़रूरी कामों को देखते हुए बहुत ज्यादा आग्रह भी तो नहीं कर सकते । बड़े लोगों का तो आशीर्वाद ही बहुत होता है । शारीरिक उपस्थिति का क्या है, भाव महत्त्वपूर्ण होता है वैसे आप आ पाते तो वास्तव में बहुत खुशी होती” । आने लायक भी नहीं छोड़ा और शिकायत करने लायक भी नहीं छोड़ा ।

आपको भी निमंत्रण न मिलने से कोई शिकायत नहीं हुई होगी । हमें भी जब प्रियंका की शादी में नहीं बुलाया गया तो कोई शिकायत नहीं हुई । जमाना बदल गया है । अरुण नायर ने लिज़ हर्ले के साथ अपनी शादी में आपने बाप को भी नहीं बुलाया । उनकी पहले वाली शादियों के बारे में हमें पता नहीं । अमिताभ बच्चन ने भी अभिषेक की शादी में अपने गाँव के नजदीकी रिश्तेदारों को भी नहीं बुलाया और बहाना क्या बनाया कि बच्चे नहीं चाहते कि ज्यादा भीड़ हो । क्या मासूम बहाना है ? सुना है कि क्लिंटन दंपत्ति भी नहीं चाहते थे कि दूल्हा-दुल्हन के अलावा कोई और आकर्षण का केन्द्र बने । वैसे ठीक भी है । हमने कई बार देखा है कि जब गाँव में किसी की शादी में कोई छोटा-मोटा एम.एल.ए. भी आ जाता है तो लोग वर-वधू की बजाय नेता जी के साथ फोटो खिंचाने लग जाते हैं । पर चेल्सी के मामले में यह नहीं होता क्योंकि वहाँ आने वाले सभी बड़े लोग ही होते ।

खैर, जी न बुलाया न सही आपको और बहुत से काम हैं । अपन तो सभी को आशीर्वाद दें कि दूधों नहाओ, पूतों फलो । पर हमें इसमें कुछ और ही गंध आ रही है । इसे आप राजनीति की दृष्टि से समझ कर आगे की रणनीति बनाइएगा । भले ही आप अपने को मुसलमान नहीं मानते पर लोग तो एक कूटनीति के तहत आपको मुसलमान ही प्रचारित करते हैं । वैसे हमारे यहाँ पुत्र का धर्म पिता के धर्म के अनुसार होता है और फिर आपके नाम में हुसैन भी तो लगा हुआ है और फिर आप इफ्तार की दावत भी देने लगे हैं और अब तो ग्राउंड ज़ीरो के पास एक मस्जिद का भी विरोध नहीं कर रहे हैं । और फिर दूल्हा भी यहूदी है । यहूदियों और मुसलमानों का तो सदा से साँप और नेवले का सम्बन्ध है । और आपको याद होगा कि आपके सामने हिलेरी जी ने पार्टी केंडीडेट का चुनाव भी लड़ा था जिसमें आपके कीनियाई ड्रेस वाले फोटो को भी चुनावी लाभ के लिए काम में लिया था । और फिर भले ही लाख रंगभेद का पक्ष न लेने की बात करें, मगर गोरे लोगों में आज भी काले लोगों को लेकर एक ‘कोम्प्लेक्स’ है । हमने तो वैसे ही बता दिया । जानते तो आप भी सब कुछ हैं । हमारे देश ने भी अंग्रेजों के राज में इस भेदभाव को बहुत झेला है । और आज भी कौन सा यह भेद-भाव खत्म हो गया ?

आप भी भारतीय राजनीति की तरह सर्व-धर्म-समभाव के रास्ते पर चल रहे हैं पर यह रास्ता बहुत कठिन है । जोड़ने का हर रास्ता कठिन होता है । तोड़ने का क्या है । तोड़ने के तो हजार बहाने हैं ।

१०-८-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

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