Sep 14, 2010

तोताराम के जूते-चप्पल

आज हमने तोताराम के आने से पहले ही घर की बाउंड्री पर से रास्ते पर निगाह रखना शुरु कर दिया जैसे कि दिल्ली में २६ जनवरी के उत्सव पर उत्सव-स्थल के ऊपर हेलीकोप्टर मँडराने लगते हैं । जैसे ही तोताराम आया, हमने दूर से ही कहा- तोताराम, चप्पल पहन कर अंदर मत आना । या तो जूते पहनकर आना या फिर नंगे पाँव । तोताराम हँस कर कहने लगा- तू क्या आपने आप को राहुल गाँधी समझता है या उससे भी बड़ा कोई नेता ?

हमने कहा- ऐसी बात नहीं है फिर भी भैया, 'बेटर लेट देन नेवर' । पथ्य से परहेज भला । रोजाना दुर्घटनाएँ नहीं होती हैं फिर भी लोग भारी गरमी में भी हेलमेट लगाते ही हैं । बहुत से लोग बीमा करवाते हैं मगर उनमें से कोई इने-गिने भाग्यशाली ही दुर्घटनाग्रस्त होकर बीमा कंपनी को चूना लगा पाते हैं । शहर में स्वाइन फ्लू होता एक को है मगर मास्क लाखों बिक जाते हैं । और फिर जमाना खराब है । जब हुड्डा जैसों तक पर जूता चल गया तो हम तो राष्ट्र-निर्माता हैं ।

तोताराम ने प्रतिवाद किया, कहने लगा- क्या तू समझता है कि मैं अपने बड़े भाई पर जूता चलाऊँगा । हमने कहा- बंधु, जमाना खराब है । जब इंदिरा जी को उन्हीं के एक रक्षक ने मार डाला, कश्मीर में मात्र दो सौ रुपए के लिए काम करने की बजाय युवा पत्थर फेंकने के गृह-उधोग में किस्मत आजमा रहे है, तीन हजार रुपए महीने में लोग नक्सलवादी बन रहे हैं तो कुछ पता नहीं; कब, कोई अपना ही हमें जूता फेंक कर बुश बनाने पर उतर आए? वैसे हम मान-अपमान से ऊपर उठ चुके हैं और आज तक कोई भी जूता अपने सही निशाने पर भी नहीं पहुँचा फिर भी क्या पता हम पर ही निशाना ठीक बैठ जाए तो यह बिना बालों की खोपड़ी फूटते देर नहीं लगेगी । सो यदि आना है तो चप्पल निकाल कर ही आ ।

तोताराम ने अंदर घुसते हुए कहा- क्यों ज्यादा अपने भाव बढ़ा रहा है । क्या तू ही अखबार पढ़ता है ? मुझे भी सब खबर है । मैनें तो, जब से राहुल जी की मीटिंग में चप्पल पर प्रतिबन्ध लगा है, तभी से सारी चप्पलें भिखारी को दान में दे दी हैं और देख नए, हलके और कीमती जूते खरीद कर ले आया हूँ । क्या पता, राहुल जी कब, कहाँ पँहुच जाएँ और हम जूतों के अभाव में उनकी मीटिंग में ही न जा पाएँ । और देख, यह एक जोड़ी तेरे लिए भी ।

हमने कहा- मगर क्या राहुल जी यहाँ आने वाले हैं ? वे तो वहीं जा रहे हैं जहाँ चुनाव होने वाले हैं या जहाँ बरसों से कांग्रेस, सत्ता से बाहर है और खराब हालत में है । तोताराम बोला- तो क्या हुआ, जब यहाँ चुनाव होंगे तब आएँगे । और जब उन्होंने मीटिंग में आने के लिए जूतों में आने की शर्त लगा दी है तो क्या जूतों के भाव नहीं बढ़ेंगे ? अच्छा ही तो किया जो भाव बढ़ने से पहले ही खरीद लिए ।

हमने कहा- तोताराम, अपमान क्या जूते मारने से ही होता है ? एक राजा ने एक सैनिक को युद्ध में बंदी बना लिया । राजा ने उससे कहा- अब तू मेरा गुलाम है ? अब तू मेरा क्या कर सकता है ? मैं चाहूँ तो अभी तेरा सर काट सकता हूँ । सैनिक ने कहा- आप मेरा सर काट सकते हैं पर मेरी आत्मा अभी भी स्वतंत्र है । मैं अब भी आपका अपमान कर सकता हूँ । और उसने राजा के मुँह पर थूक दिया । अपमान करने वाला तो किसी भी तरह से अपमान कर सकता है । वैसे जहाँ तक हमारी बात है तो तोताराम, सच बताएँ, बड़े नेताओं की तो छोड़, हमारा थूक तो किसी छुटभैये नेता को देखकर ही सूख जाता है क्योंकि नियम तो भले आदमियों पर लागू होता है । इन पर कोई नियम लागू नहीं होता । फिर भी तू कहता है तो भावी प्रधानमंत्री की इच्छा का आदर करते हुए इन जूतों का खर्चा भी बर्दाश्त करेंगे ।

तोताराम बोया- तो निकाल पाँच हजार ।

हमारा मुँह खुला का खुला रह गया । यह रकम हमारी आधी पेंशन के बराबर थी ।

९-९-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

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