Sep 6, 2010
जाति, जन और गणना
आज तोताराम ने आते ही हाथ में अखबार फड़फड़ाते हुए घोषणा की- ले भई मास्टर, हो गया फैसला । हम आश्चर्यचकित हो गए । फैसला और अपने महान गणतंत्र में ! क्या कह रहा है तोताराम ?
हमने उसी पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी- क्या रामजन्म भूमि का फैसला हो गया ? क्या एंडरसन को फाँसी सजा हो गई ? क्या राष्ट्रपति ने अफ़ज़ल की याचिका पर विचार कर कोई निर्णय ले लिया ? क्या क्वात्रोची के मामले का सस्पेंस खत्म हो गया ? क्या सरकार ने भोपाल के गैस पीड़ितों के उचित मुआवजे पर कोई निर्णय ले लिया है ? क्या कश्मीर के अलगाव-वादियों ने मनमोहन जी से बातचीत का फैसला ले लिया ? क्या राहुल गाँधी ने शादी करने का फैसला कर लिया है ?
तोताराम ने हमारी जिज्ञासा तो तत्काल शांत करने की बजाय थोड़ा घुमाने की कोशिश की । कहने लगा- ये सब तो छोटी-मोटी बातें हैं । इनसे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला । इनसे भी महत्वपूर्ण मामले पर फैसला हुआ है । अंग्रेज़ समझदार थे जिन्होंने इसका महत्व समझा । हमारी सरकार को तो अब कहीं अस्सी बरस में जाकर समझ में आया है कि अंग्रेज़ ही ठीक थे । सो अब अंग्रेज़ों की नीति का अनुसरण कर रही है । अब सरकार ने फैसला किया है कि जैसे अंग्रेजों ने १९३१ में जाति आधारित जनगणना करवाई थी उसी प्रकार अब हमारी सरकार भी जाति आधारित जनगणना करवाएगी । प्रणव दा ने कह दिया है कि फैसला हो गया है बस, औपचारिक घोषणा करनी बाकी है ।
हमने कहा- तोताराम, महात्मा गाँधी, नेहरूजी, लोहिया जी, अंबेडकर सभी तो जाति को मिटाना चाहते थे तो अब यह सरकार, मुलायम और लालू क्यों पीछे लौटने की बात कर रहे हैं?
तोताराम ने कहा- मास्टर, लिखने-पढ़ने में ये बातें अच्छी लगती हैं पर वास्तव में जाति, धर्म, प्रान्त, भाषा, रंग के भेद मनुष्य के मन में इतने ठोंक-ठोंक कर फिक्स कर दिए गए हैं कि इन्हें निकालना संभव नहीं है । पहले शादी-विवाह , खान-पान, लेन-देन और व्यवहार में जाति-धर्म जानने की जरूरत पड़ती थी । उसी तरह आज चुनाव का टिकट, नौकरी, छात्रवृत्ति, स्कूल-कालेज में एडमीशन आदि सभी छोटे-बड़े कामों में जाति-धर्म ही देखे जाते हैं । मुसलमानों को हज के लिए सब्सीडी दी जाती है, हिंदुओं को चार धाम करने के लिए नहीं, चर्चों के खर्चे का आडिट नहीं होता जबकि बड़े-बड़े मंदिरों का चढ़ावा तक सरकार में जमा होता है । सभी नेता मुसलमानों को इफ़्तार की दावत देते हैं मगर किसी हिंदू को कोई एकादशी पर फलाहार नहीं करवाता । एक ऊँची जाति के गरीब को भी किसी प्रकार की आर्थिक सहायता सरकार की तरफ़ से नहीं मिलती जबकि एक धनवान किन्तु अनुसूचित जाति, जन जाति या मुसलमान होने मात्र से सरकार की तरफ से तरह-तरह की आर्थिक सहायता मिलती है ।
इस देश में आदमी वोट देते और रिश्ता करते समय ही नहीं, बल्कि खरीददारी करते, वकील करते, इलाज कराते समय तक अपनी जाति वाले को ढूँढता है । एक बार संविधान ने जिसे नीची जाति का मान लिया वह कभी उससे मुक्त हो ही नहीं सकता बल्कि होना भी नहीं चाहता क्योंकि उस आधार पर सारे मजे जो मिलते हैं । बल्कि लोग अपने को नीची या पिछड़ी जाति में शामिल करवाने के लिए आन्दोलन करते हैं । मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने पर भी इस देश में आदमी दलित, पिछड़ा, सवर्ण, अल्पसंखयक आदि रहता ही है । मैं तो कहता हूँ कि भारत के किसी भी जाति वाले को अमरीका का राष्ट्रपति बना दो या बिल गेट्स के सारे साम्राज्य का स्वामी बना दो तब भी वह दलित है तो दलित, और पिछड़ा है तो पिछड़ा ही रहेगा । जब इतना मजबूत है जाति का यह बंधन, तो फिर उसे मिटाने की नाकाम कोशिश करने की बजाय क्यों न उसे सब जगह पक्का कर दिया जाए । मैं तो कहता हूँ कि जनगणना में ही नहीं, जाति को तो इस देश में हर आदमी के माथे पर स्थाई रूप से गोद देना चाहिए जिससे सब को अपने वाले, अपने सच्चे हितचिन्तक और विश्वसनीय व्यक्ति को पहचानने में सरलता हो जाए । यदि दंगा हो तो अपने सही दुश्मन को पहचानने में भी इससे सुविधा रहेगी वरना कभी मारना हो किसी शिया को और मार बैठे सुन्नी को, मारना हो किसी मुसलमान को और मार बैठे किसी सिख को, पीटना हो किसी ब्राह्मण को पीट दें किसी यादव को । सभी तरह की एक्यूरेसी के लिए भी जाति का स्पष्ट अंकित होना ठीक ही रहेगा ।
हमने कहा- तोताराम, भले ही राजनीति जाति धर्म के खेल खेलती हो मगर हमने तो कभी बच्चों से उनकी जाति नहीं पूछी । और अब इतने बरस हो गए जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण और अन्य सुविधाओं को भी कि लोगों ने इन्हें सहज भाव से स्वीकार कर लिया है । फिर इस मुद्दे को अब उछालने से क्या फायदा ? बिना बात भर रहे घाव को कुरेदना है ।
तोताराम ने कहा- तुम्हारी बात से सहमत हुआ जा सकता है मगर जाति का स्पष्ट उल्लेख बहुत जरूरी है । यदि जाति का उल्लेख न हो तो सोच कितना घपला हो जाएगा । प्रचार किया जाए कि आज अपने शहर में राहुल जी पधार रहे हैं । उनके स्वागत में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचें । लोग राहुल गाँधी के भरोसे पहुँच जाएँ और वहाँ जाकर देखें कि राखी सावंत के साथ राहुल महाजन पधारे हैं । मल्लिका साराभाई के भरोसे जाएँ और वहाँ मिले चड्डी पहने हुए मल्लिका सेरावत । जय प्रकाश जायसवाल और जयप्रकाश नारायण में जातिसूचक शब्द के बिना कैसे फर्क करेंगे ? बहुत से लोग तो सानिया, सायना और सोनिया में ही कन्फ्यूज़ हो जाएँगे । जाति सूचक के बिना अप्सरा और सांसद मेनका में फर्क कैसे करेंगे ? जया जेटली और जया बच्चन में जाति सूचक शब्द से ही तो फर्क किया जा सकता है । बिना जाति के तो अरुण जेटली और अरुण गाँधी एक हो जाएँगे । जाति सूचक शब्द के बिना इंदिरा गाँधी और इंदिरा नूई को एक समझे जाने का खतरा बना रहेगा ।
हमारी तो खोपड़ी चकराने लगी । हमने कहा- तोताराम, वाकई जाति के बिना तो बात बहुत बड़े चक्कर वाली हो जाएगी । चाहे किसी भी कारण से हो मगर लालू, मुलायम, प्रणव दा और तेरी- सभी की बात ठीक है । गणना ही क्या सब कुछ जाति के अनुसार ही होना चाहिए ।
हमने पत्नी को आवाज़ लगाईं- आज खाली चाय से काम नहीं चलेगा । कोई सर दर्द की गोली भी साथ में लाना ।
२-९-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach
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