Sep 30, 2010

तोताराम का आइ.आइ.पी.एफ.टी. (IIPFT)



आज सवेरे-सवेरे अखबार और दूध वाले के आने से पहले ही एक अजीब घटना हो गई । दरवाजे पर बड़े जोर का धमाका हुआ जब कि अमरीका या अन्य किसी देश ने कोई सूचना नहीं दी थी कि कोई आतंकवादी हमला होने वाला है । बाहर निकल कर देखा तो तोताराम दोनों हाथों में पत्थर लिए खड़ा था । दोनों हाथों में लड्डू होने का तो प्रश्न ही नहीं, क्योंकि वे तो नेताओं के लिए सुरक्षित हैं । हमने पूछा- तोताराम, क्या तूने किसी को पत्थर फेंक कर भागते हुए देखा ? किस बदमाश ने फेंका पत्थर ?

तोताराम बोला- कौन फेंकेगा, हमने ही फेंका है । देखा कैसा फिट लगा निशाना ? यह हमारी आइ.आइ.पी.एफ.टी. की लांचिंग सेरेमनी का शुभारंभ है । हमने कहा- तोताराम, यदि कोई और होता तो हम अभी पुलिस को फोन करके तुझे अंदर करवा देते ।

तोताराम उपेक्षा की एक हँसी हँसा । अरे, अंदर करवा देता तो क्या, चार दिन बाद ससम्मान छूट कर आ जाते । देखा नहीं, कश्मीर में चिदंबरम ने सभी पत्थर फेंकने वालों को रिहा करने के आदेश दे दिए हैं । और अगले आदेश में यह भी आ जाएगा कि इन युवकों को तय की गई दो सौ रुपए रोजाना की दिहाड़ी यदि नहीं मिली हो तो वह भी महा-नरेगा के फंड से शीघ्र दिलवा दी जाएगी । आखिर कश्मीर में सद्भाव स्थापित जो करना है ?

मैंने इंडियन इस्टीट्यूट आफ टेक्नोलोजी, मनेजमेंट, फैशन टेक्नोलोजी की तर्ज़ पर एक 'इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पत्थर फेंक टेक्नोलोजी' खोल ली है । एक सौ रुपए रोज में स्वयंसेवकों की भर्ती करेंगे और फिर जब कभी सरकार घुटने टेक कर समझौता करेगी तब दो सौ रुपए रोज के हिसाब से बकाया हिसाब कर लेंगे । प्रति स्वयंसेवक एक सौ रुपए रोज का फायदा होगा । युवकों के भी मजे । न फावड़ा चलाना, न गेंती से मशक्कत करनी । बस दो घंटे पत्थरों से निशानेबाजी की और दिहाड़ी खरी और जेल का कोई डर नहीं । जेल तो होती है किसी भले आदमी को और फिर उसकी कोई जमानत देने वाला भी नहीं मिलता । लफंगों को न कोई डर होता, न कोई इज्जत का ख्याल । ऐसों से ही यह सरकार डरती है और उन्हें जेल में डालना तो दूर, विशेष पैकेज और देती है । देखना, एक बार अपनी इस 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पत्थर फेंक टेक्नोलोजी' घोषणा करने भर की देर है, युवक नरेगा और कालेज छोड़ कर न आ जाएँ तो मेरा नाम बदल देना । और फिर जब धंधा चल निकलेगा तो कोई न कोई राजनीतिक पार्टी बना लेंगे ।

तभी एक छोटा सा पत्थर तोताराम के सर पर आकर लगा । वह सर पकड़ कर बैठ गया ।

हमने कहा- तोताराम, तू तो इंस्टीट्यूट खोल रहा है पर यहाँ तो लगता है किसी ने पहले ही यह धंधा शुरु कर दिया है । हो सकता है यह उसी के दीक्षांत समारोह का निमंत्रण हो ।

२६-९-२०१०

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

1 comment:

  1. हर बार की तरह एक करारा व्यंगय. वैसे मेरे विचार से आप तोताराम से कहिये कि आगे की सोचे. इंडियन इंस्टीट्यूट आफ पत्थर फेंक टेक्नोलोजी में पिछड़ गए तो क्या अब अभी से बम और हथगोले का इंस्टिट्यूट खोल ले, क्योंकि हो सकता है कि आने वाले दिनों में सरकार अपने उन आतंकी दामादों को भी इसी तरह जेल से छुडवा कर दूध मलाई खिलाये और अन्य लोगो को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करे.

    ReplyDelete