Sep 26, 2010

तोताराम और सरकारी नाक


पहले राजा लोग नाक के लिए लड़ते थे । कभी अपनी नाक बचाने के लिए तो कभी दूसरे की नाक काटने के लिए । इस चक्कर में ज़्यादातर दोनों की ही नाक कट जाती थी । मुगलों के आने के बाद अधिकतर राजाओं ने तो अपनी नाक बचाने के लिए उसे छोटा करवा लिया । महाराणा प्रताप, शिवाजी, छत्रसाल, दुर्गादास, और अमर सिंह जैसों ने अपनी नाक के लिए सर कटवाना ज्यादा ठीक समझा । इसके बाद जब अंग्रेज़ आए तो सभी राजाओं और नवाबों ने अपनी नाक को सुरक्षित रखने के लिए उसे अंग्रेजों के पास ही जमा करवा दिया । जब अपने दरबार में जाना होता या अपनी प्रजा पर रोब ज़माना होता तो लॉकर में से निकल कर ले आते थे और काम करने के बाद फिर लॉकर में जमा कर आते थे । आम आदमी की नाक तो अपने छोटे-छोटे कामों के लिए दफ्तरों में घिसने में ही खत्म हो जाती है । पर अब तो न मुगलों का शासन है और न अंग्रेजों का । अब तो नाक कटने, काटने और कटवाने का झंझट ही नहीं है । फिर भी जब बी.बी.सी. से खबर सुनी और कॉमनवेल्थ गेम्स के मकानों की लेट्रीनों की तस्वीरें देखीं तो लगा वास्तव में ही नाक कट गई है क्योंकि वाशबेसिनों में लाल-लाल सा कुछ बिखरा हुआ था । कुछ लोग उसे पान की पीक बताते हैं पर हमें तो लगता है कि यह उसी कटी हुई नाक का खून है ।

हम नाक के बारे में सोच ही रहे थे कि तोताराम आ गया । हमने कहा- तोताराम, यदि इनके बस का नहीं था तो नहीं करवाते खेल, मगर अब कटवा ली ना नाक ? तोताराम ने कहा- मास्टर, जब देश में लोकतंत्र होता है तो कटने वाली नाक, नेताओं को चुनने वाली जनता की होती है और जो नोट आते हैं वे नेताओं और अधिकारियों की जेब में जाते हैं । सो अगर तुझे लगता है कि नाक कटी है तो वह तेरी ही है । जा, ड्रेसिंग करवा और भविष्य में ध्यान रखना । सँभाल कर नहीं रखेगा तो फिर यही होगा । नेताओं और अधिकारियों की नाक तो सलामत है । किसी के चेहरे पर शिकन देखी क्या ? और अपने ही क्या किसी भी देश के नेता की नाक ऐसे ही कटने लगी तो फिर तो हो ली देश-सेवा । अमरीका वियतनाम में पिट कर भागा पर क्या उसकी नाक कटी ? अब अफ़गानिस्तान से निकल पाने का कोई बहाना नहीं मिल रहा पर नाक तो सब की सलामत है । पड़ोस में मिस्टर दस परसेंट की नाक पर क्या तुझे कहीं से भी खरोंच लगी दिखाई दी ? नाक शर्मादारों की होती है और उन्हीं की कटती है । ये लोग तो नाक कटाकर स्वर्ग देखने वाले लोग हैं ।

हमने कहा- तोताराम, अबकी बार मामला वास्तव में गंभीर है । बड़े-बड़े नेताओं ने कह दिया है कि खेल समाप्त होने पर कठोर कार्यवाही होगी और किसी भी अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा ।

तोताराम बोला- यह तो पुराना मुहावरा है । आज तक किसे सजा मिली है, कौन-घपला पकड़ा जाकर अपने अंजाम पर पहुँचा है जो यह पहुँचेगा । बाद में तो जो होता है, वही होगा- 'खेल खतम और पैसा हज़म' । बिल तो पहले ही पास हो गए और कम्पलीशन सर्टिफिकेट भी ले लिए गया होगा । अब खँगालते रहो कागज । पहले ज़माने में जब पहाड़ खोदा जाता था तो कम से कम साला कोई चूहा तो निकलता था अब तो देख लेना चूहा भी नहीं निकलने वाला । इसके बाद तो जैसे कनाडा को एक मिलियन डालर खिला कर कामनवेल्थ गेम्स लाए थे वैसे की किसी न किसी को एक बिलियन खिला कर ओलम्पिक की परमीशन ले आएँगे । अब की बार सत्तर हजार करोड़ को बत्ती दिखाई है, ओलम्पिक में दो लाख करोड़ का चपड़ा कर देंगे । किसी के बाप का क्या जाता है ? माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम । छोड़ ये सब बातें । यह बता केबल कब लगवा रहा है ?

हमें तोताराम का यह असमय मज़ाक बुरा लगा । हमने ज़रा नाराज़ होकर कहा- तोताराम, तुझे मज़ाक सूझ रहा है और कई देश हैं जो यहाँ खेलने आने से मना कर रहे हैं । जब लोग खेलने ही नहीं आयेंगे तो और भी भद्द पिटेगी ।

तोताराम बोला- अच्छा है, कम देश खेलने आयेंगे तो अपने को ज्यादा पदक मिलने के चांस रहेंगे । अच्छा हो, एक भी नहीं आये और अपन ही सारे पदक जीत जाएँ । जब १९८० में मास्को ओलम्पिक में अमरीका ने बहिष्कार किया था तो क्या खेल नहीं हुए थे ? वैसे ये देश फालतू का नाटक कर रहे हैं कि ‘पलंगों पर मिट्टी के पैर लेकर चढ़े कुत्तों के पैरों के निशान देखे गए हैं’ । गोरे लोग तो सुना है अपने कुत्तों को साथ लेकर सो जाते हैं । और यह ज्यादा ही बड़ी बात लग रही है तो सभी कमरों में पलंगों के पास पैर पोंछने वाला मैट रखवा देंगे जिससे कुत्ते पैर पोंछ कर चढेंगे । और रही बात कमोड और वाशबेसिन की तो उनमें हगना, मूतना और थूकना ही तो है । कौनसा उनमें खाना खाना है । बिना बात की सफाई पसंदगी दिखा रहे हैं । हम जानते हैं, कई देशों के लोग तो ठंडी में महिनों तक नहीं नहाते । ऊपर से पाउडर और इत्र छिड़क कर भभका मारते हैं ।

हमने पूछा- और सुरक्षा व्यवस्था का क्या होगा ?

तोताराम ने कहा- सुरक्षा व्यवस्था में क्या खराबी है ? जिसकी मौत आ गई वह तो सीढ़ियों से गिर कर मर जाएगा और जिसकी नहीं आई उसे कौन मार सकता है ? जीवन-मरण सब विधाता के हाथ है, आदमी के नहीं । और इतना ही डर लगता है तो अपने घर बैठें । हमारे विद्यार्थी सारे खतरे उठाकर आस्ट्रेलिया पढ़ने के लिए जाते हैं कि नहीं ? लगता है जिन देशों की तैयारी अच्छी नहीं है, जिनमें खेल भावना नहीं है वे ही ऐसे बहाने बना रहे हैं । जयपाल रेड्डी ने कह तो दिया कि खेल होंगे और शानदार ढंग से होंगे और प्रधान मंत्री जी ने भी तो काम फटाफट करने का अल्टीमेटम दे दिया है ।

अब भी किसी को विश्वास नहीं हो तो कोई क्या कर सकता है ? जिन्हें 'जूँओं के बहाने घाघरा खोलना' है, वे खोलें ।

२४-९-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

3 comments:

  1. जोशीजी, ई नाक तौ वही दिना कटि गै रहै,जब तोताराम सर उठाकै जियै का फैसला कइ लेहेन रहै....

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  2. जिन्हें 'जूँओं के बहाने घाघरा खोलना' है, वे खोलें ।


    बहुत खूब साहिब, हम तो कायल हो गए.

    लिंक आँखे खोलने वाला दिया आपने.

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  3. एक एक वाक्य की बलैयाँ ले ली है हमने...और क्या कहें....
    लाजवाब मारक लिखा है....बेहतरीन !!!!

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