Dec 10, 2008

वसुंधरा-किंकर



( यूँ तो भारत की राजनीति में चारण-काल कभी समाप्त नहीं हुआ पर लोकतंत्र में इसके नए नए रूप मिलते हैं । अटल चालीसा से लेकर राबड़ी चालीसा तक आ चुके हैं । राजस्थान में वसुंधरा राजे को चमचों ने महारानी ही नहीं बल्कि देवी, दुर्गा तक के रूप में चित्रित किया । एक मंत्री तो बाकायदा दुर्गा रूप में फोटो रखकर धूप बत्ती और पूजा आरती किया करते थे । वसुंधरा ने कभी इस नाटक को नकारना तो दूर वरन उसका आनंद लिया । एक महंत हनुमान दास जी ने तो एक सौ दोहों की एक पुस्तक ही जून २००४ वसुंधरा की स्तुति में लिख मारी । उसीकी प्रतिक्रिया में हमारा जून २००४ में ही एक लेख प्रकाशित हुआ था । पाठकों के कल्याणार्थ उसे फिर से प्रस्तुत कर रहें हैं । )

श्री हनुमानदास वैष्णव उर्फ़ हनुमान किन्करजी महाराज, जय श्रीराम ।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक बार किसी सांसारिक व्यक्ति की प्रशंसा में कुछ लिख दिया था पर इस भूल के लिए वे जीवन भर पछताते रहे और इसीलिए रामचरित मानस में लिखा है-
कीन्हे प्राकृत जन गुन गाना ।
सिर धुनि गिरा लागि पछिताना ।


आपने तो एक सौ दोहों का एक संकलन ही राजस्थान की मुख्य-मंत्री वसुंधरा राजे की स्तुति में लिख डाला । यदि आपने नाम के अनुरूप सच्चे हनुमान भक्त हैं, और सच्चे कवि भी तो अगर कभी आत्मा जग गई तो वास्तव में बहुत पछताना पड़ेगा । एक और संत थे । अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी के पास रहते थे । अकबर ने सुना कि वे अच्छा गाते हैं तो बुला लिया, दरबार में गाना गाने के लिए । संतजी दुखी । रास्ते भर सोचते जा रहे थे । अच्छे कवि भी थे । दरबार में सुनाया :-
संतन को सीकरी सों का काम ।
आवत जात पनहियाँ टूटें, बिसर जात हरि नाम ।


अकबर की अक्ल ठिकाने आगयी । क्षमा माँग कर विदा लिया । आपके नाम के साथ संत लगा हुआ है । यदि आप महंत होते तो कोई बात नहीं थी । महंतों की बड़ी लम्बी चौड़ी जागीर होती है । बंदूक भी रखते हैं । हाथी-घोड़े - पूरा ठाठ होता है । उन्हें यदि सत्ता का सरंक्षण चाहिए तो कोई बात नहीं । उनका सत्ता गुण-गान उचित है । पर आप तो संत हैं । संत तो भगवान के संरक्षण में रहते हैं । उन्हें कुर्सी- अर्चना की क्या आवश्यकता ? वैसे आप की उम्र भी वानप्रस्थ के करीब होगी फिर क्यों अगले लोक की फिक्र नहीं करते ?

आप कहेंगें कि हम परेशान क्यों हो रहे हैं । और लोग भी तो नेताओं की प्रशंसा और स्तुति करते हैं । ग्वालियर के एक वकीलजी ने तो अटलजी का मन्दिर बनाने का ही प्रचार कर दिया । तेरह मई को अटलजी के शपथ ग्रहण की तिथि से एक दो दिन पहले अटलजी की प्रतिमा को नदी में स्नान करवाते हुए लोगों का फोटो भी हमने अखबार में देखा था । इसके बाद फील गुड उल्टा हो गया तो पता नहीं वकीलजी की मन्दिर की योजना चालू है या बंद हो गई ? उधर बिहार में भी लालू चालीसा लिखा गया । दिल्ली के एक मुसलमान कवि हैं जो अटल जी के प्रधानमन्त्रित्व काल में रोज़ अटलजी पर एक कविता लिखा करते थे । अब पता नहीं बंद कर दी या मनमोहन जी पर लिखने लगे क्या ?

राजाओं के दरबार में भी ऐसे कवि हुआ करते थे जो राजाओं से बख्शीश पाने के लिए उनकी झूठी प्रशंसा किया करते थे । गधे को बाप और मतलब न होने पर बाप को भी गधा मानने वाली महान संवेदनशील संस्कृति से तो आप परिचित होंगे ही ? वैसे आपको कब पता चला कि वसुंधरा राजे के रूप में अम्बा और चंडी का अवतार हो चुका है ? वैसे उनका जन्म तो आधी सदी पूर्व ही हो चुका था पर उनके अम्बा रूप का पता आपको शायद उनके मुख्य मंत्री बनने के बाद लगा ? शिवजी को तो राम का अवतार होते ही पता चल गया था और वे उनके दर्शन करने अयोध्या भी पहुँच गए । महान प्रगतिवादी लेखक राजेंद्र यादव को भी अपने यादव होने का पता तब चला जब लालू यादव और मुलायम सिंह यादव भारत की राजनीति में स्थापित हो गए ।

मैं किसी साधारण व्यक्ति द्वारा फायदेवाले व्यक्ति का गुणगान करने के खिलाफ नहीं हूँ । पर आपके लिए मैं विशेष रूप से इसलिए सोच रहा हूँ कि हम भी हनुमान जी के भक्त हैं और आप भी हनुमान किंकर अर्थात हनुमान जी के चाकर हैं अतः हम धर्म भाई हो गए और एक भाई के पतन पर दूसरे भाई का दुखी होना उचित ही है ।

राजतिलक के समय हनुमान जी को सीता जी ने मोतियों की एक माला दी । हनुमान जी उन मोतियों को तोड़ कर उनमें राम और सीता की छवि तलाशने लगे पर आप तो भक्ति में भगवान के स्थान पर मोतियों की माला तलाशने लगे । यह क्या कर रहे हैं भक्तराज ! वैसे वसुंधरा का अर्थ पृथ्वी भी होता है । तभी ऋषि ने कहा है- माता पृथिव्या, पुत्रोहम । पृथ्वी से हम सबका माता और पुत्र का नाता है । इस सम्बन्ध को और दृढ़ करें और इस पृथ्वी को और अधिक सुंदर बनने का प्रयत्न करें । आपके नाम के साथ वैष्णव भी जुड़ा हुआ है । 'वैष्णव जन' पद के रचयिता भक्त कवि नरसी मेहता गुजरात के थे । उन्होंने घोर दरिद्रता में भी भगवान से कुछ नहीं माँगा । भगवान तो स्वयं उनका भात भरने आए थे । सो भगवान पर भरोसा रखिये । वे आवश्यकता होने पर अवश्य आपकी सहायता करेंगे ।

आपने पुस्तक का प्रकाशन स्वयं किया । अच्छी बात है । वरना आपकी इस महान और कमाऊ कृति को कोई भी प्रकाशक आराम से मिल सकता था । संसद और विधायकों के शुभकामना संदेश तो मिलने ही थे वे तो तैयार रहते हैं कि कोई संदेश माँगे और वे भेजें । वैसे आपकी यह कृति बिकेगी अवश्य, हो सकता है सरकारी खरीद भी हो जाए ।

यदि आप हमें समीक्षा लिखने के योग्य समझते हैं तो कृपया दो प्रतियाँ भिजवादें । वो धाँसू समीक्षा लिखेंगें कि क्या बात है । हमारे देश में सरकारें बदलते ही सड़क, जिला, और पाठ्य पुस्तकें तक बदलने लग जाते हैं क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है । सरकार बदलने से पहले ही इस महान, लोक कल्याणकारी, शिक्षाप्रद और जन्म सुधारने वाली कृति को किसी बी.ए., एम.ए. के कोर्स में लगवा लीजिये ।

आपका धर्मभाई,
रमेश जोशी

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

१० दिसम्बर २००८



-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

1 comment:

  1. ज़माना बदल गया है । अब तो---
    चारण करे न शायरी, राजा देत न भीख
    धनबल से मिले न राज री, राजनीति सीख॥

    ReplyDelete