Dec 18, 2008
चौथा जूता - भाग १
(बुश पर जूता प्रक्षेपण प्रकरण के बाद से सर्वत्र जूते ही जूते चलते दिखाई दे रहे हैं । जूतों की इस हवा में हमारा २२ दिसम्बर २००६ को सृजित यह चौथा जूता आपकी सेवा में प्रस्तुत है । )
परम आदरणीया मायावती बहिन जी,
जय भीम, जय दलित । इस संसार में जूते का बड़ा महत्त्व है । जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में जूता हाथ में लेकर इस धरा पर अवतरित होते हैं और अधर्मियों को जूता मार-मार कर ठीक कर देते हैं । वैसे हमने देवताओं को प्रायः नंगे पैरों ही देखा है । इसके कई कारण हो सकते हैं । एक तो यह कि उनको धरती पर पाँव नहीं रखने पड़ते । आप जैसे जनसेवकों की तरह वे भी अपने-अपने वाहनों में उड़ते रहते हैं । साधारण आदमी की तरह यदि बस या ट्रेन की सवारी करनी पड़े तो धूल कीचड़ से गुजरना पड़ता है । भीड़ में पैरों का स्वरूप बनाये रखने के लिए भी पैरों में जूतों का होना ज़रूरी है । पर विडंबना देखिये कि उनके पास ही जूते नहीं होते । टूटी-फूटी हवाई चप्पलों से काम चलाते हैं । देवताओं के जूते न पहनने का एक कारण यह भी हो सकता है कि जूते मौजे पहने-पहने पैरों में बदबू आने लगती है और उस बदबू से भक्तों के भाग जाने का खतरा रहता है । वैसे तो सच्चे भक्त को अपने आराध्य के पैरों ही क्या पाद में भी चंदन की गंध आती है ।
भगवान जब-जब मानव के रूप में अवतार लेते हैं तो जूते भी पहनते हैं । पहले जूतों की जगह पादुकाओं का फैशन था । वन में राम-भरत मिलन के समय भरत ने भगवान राम से और कुछ न माँगकर पादुकाएँ ही माँगीं । इससे जूतों के महत्त्व का पता चलता है । कभी-कभी छोटे आदमी बड़े आदमी के जूतों में पैर डालने की कोशिश करते हैं । बड़े आदमियों के जूते बड़े मँहगे होते हैं इसलिए बड़े आदमियों के जूतों में पैर डालने के चक्कर में छोटे आदमियों के कपड़े तक उतर जाते हैं । विकासशील देशों के कपड़े उतरने का कारण अमरीका की नक़ल ही है । अभी भगवान का कल्कि अवतार होना बाकी बताया जाता है । हमें लगता है कि वह हो चुका । भगवान ने मछली, कछुआ, सूअर, नृसिंह अदि रूपों में अवतार लिया- अबकी बार वे जूते के रूप में अवतरित हुए हैं, तभी आजकल चाँदी का जूता, सिफारिश का जूता, सत्ता का जूता, जाति का जूता, भाषा का जूता, रंग का जूता आदि खूब चल रहे हैं । पुलिस, प्रशासन, पर्यटन आदि सभी इन जूतों को नत मस्तक होकर स्वीकार कर रहे हैं । यदि जूता चाँदी का हो तो पूरी पार्टी की पार्टी ही सरेंडर होने को तैयार हो जाती है जैसे भजन लाल जी की पार्टी, फिर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सांसदों का हृदय परिवर्तन । पर हम तो साक्षात् देशी चमरौधे जूतों के उपासक हैं । ठीक है कि गाँधीजी ने जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध जागृत किया पर इसमें क्रांतिकारियों के सीधे सादे जूतों का योगदान भी कम नहीं है । चीन, वियतनाम, क्यूबा आदि ने जूतों के बल पर ही आजादी प्राप्त की । आज भी सब तालिबान, लश्करे तैयबा, नक्सली, ईरान आदि की तरफ़ जूते की ताक़त के कारण ही ध्यान दे रहे हैं ।
... अभी शेष है ...
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Jhootha Sach
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बहुत ही अच्छा, धनाड्य वर्ग पर जिस प्रकार कद पर पद भारी पढ़ रहा है उसकी सही तस्वीर प्रस्तुत की है।
ReplyDeleteधन्यवाद !
ReplyDeleteआपकी जूता पुराण बहुत पंसद आई।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा । बधाई स्वीकारें।