Dec 24, 2008

संता क्लाज़ थप्पड़ मारकर चला गया


कोई आधी रात ही बीती होगी कि हमारी तो तीन चौथाई नींद पूरी हो गई । लघु शंका के लिए उठे तो लगा जैसे दरवाजे के पास कुछ खट-पट हो रही है । दरवाजा खोलकर देता तो लाल कपडे पहने, सफ़ेद दाढ़ी वाले कोई सज्जन बड़ी सी गठरी लिए खड़े थे । सर्दी से काँप रहे थे । हमने पूछा- कौन हो बाबा? वेश-भूषा से तो सान्ताक्लाज़ लगते हो । उसने उत्तर दिया- मास्टर जी मैं असली सान्ताक्लाज़ ही हूँ । हमने पूछा- असली मतलब ? क्या सान्ताक्लाज़ नकली भी होते हैं ? वे बोले- आज का युग व्यापार का युग है । इसलिए लाखों लोग क्रिसमस पर दो पैसे कमाने के लिए सान्ताक्लाज़ का वेश बनाकर दुकानों पर सामान बेचते हैं । कुछ सड़कों के किनारे पिज्जा और नूडल्स बेचते हैं । आज के दिन खूब खरीददारी होती है और सान्ताक्लाज़ के रूप में सेल्समैन को देखकर बच्चे बहुत आकर्षित होते हैं । इस प्रकार व्यापार के साथ-साथ संस्कृति की रक्षा भी हो जाती है । आश्चर्य नहीं कि आज की रात तो चोर भी सान्ताक्ल्ज़ के रूप में घूम रहे हों । और कुछ नहीं मिलेगा तो गटर का ढक्कन ही उठा ले जायेंगे या पोल पर से ट्यूब लाइट ही उतार कर ले जायेंगे । वह समय दूर नहीं जब आतंकवादी भी सान्ताक्लाज़ के रूप में आने लग जायेंगे । पर हम असली सान्ताक्लाज़ हैं । देखो, यह है उपहारों की गठरी ।

हमने पूछा- तो बाँट क्यों नहीं आए इनको? इतने सारे ज़रूरतमंद बच्चे हैं इस दुनिया में । उनका ज़वाब था- आजकल बच्चों को खिलौने नहीं चाहिये । उन्हें तो वीडियो गेम, नई फ़िल्म की सी.डी., हीरोइनों की फोटो, मोबाईल फोन आदि चाहियें । कुछ बच्चे तो बीयर की बोतल भी माँग लेते हैं पर मेरे पास तो मुलायम खिलौने, फूल और टाफी हैं । इनकी आजकल के बच्चों को ज़रूरत नहीं है । खिलौने भी चाहियें तो चिनगारी निकालने वाली पिस्तौल, डाकू, आतंकवादी या कमांडो की ड्रेस । ये मेरे पास नहीं हैं । इस गठरी में प्यार, संवेदना, वात्सल्य करुणा आदि हैं । बरसों से लिए फिर रहा हूँ पर कोई लेने वाला ही नहीं मिलता । सब दूसरों से अपने लिए ये अच्छे भाव चाहते हैं पर कोई दूसरों में ये भाव नहीं बाँटना चाहता । ये चीजें तो बाँटने से ही मिलती हैं । कुछ लोग प्यार, संवेदना, करुणा बाँटने का नाटक करते हैं तो केवल अपने नाम के लिए । फिर इस नाम को चुनाव में सत्ता प्राप्त करने किए भुनाते हैं जिससे और मनमानी करने के अधिकार प्राप्त हो सकें । मेरी तो इस गठरी को ढोते-ढोते कमर टूट गयी । आप कहें तो मैं इस गठरी को लेकर अन्दर आ जाऊँ ?

हमने सान्ताक्लाज़ को अन्दर ले लिया । चाय पिलाई । रजाई का एक कोना उसके भी पैरों पर डाल दिया । कुछ देर बाद उसकी जान में जान आयी । पर ठण्ड में घूमते-घूमते जुकाम खा गया और आख़िर उसे बुखार हो ही गया । बुखार की हालत में कैसे विदा करते । ऐसे ही चार-पाँच दिन निकल गए और ३१ दिसम्बर का दिन आ गया ।

रात को खाना खाकर बतिया रहे थे, खबरें सुन रहे थे । बस यूँ ही ग्यारह बज गए । सान्ताक्लाज़ बोला- मास्टर जी दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लो । अभी नया साल दारू पी रहा है, डांस कर रहा है । ठीक बारह बजे पटाखे छोड़ेगा, चिल्लाएगा और बाहर निकल भागेगा, जिसका भी दरवाजा खुला मिलेगा, घुस जाएगा । अब पहले वाली बात नहीं रही, अब तो माँस, मदिरा और मनचलेपन के बिना नया साल आता ही नहीं । दारू न पीने वालों का तो समझ लो दिसम्बर ही बना रहता है ।

हमने पूछा- बन्धु, यह नया साल इतनी सर्दी में और वह भी रात के बारह बजे ही क्यों आता है? होली के बाद चैत्र के महीने में क्यों नहीं आता ? तब लोग सवेरे-सवेरे उठ जाते हैं । ब्रह्म मुहूर्त में आए तो हम सब उसका स्वागत कर सकेंगे । सूर्य की पहली किरण, बसंत के पहले झोंके, आम के नए पत्ते और हरसिंगार की खुशबू के साथ नए वर्ष का स्वागत- कितना बढ़िया आइडिया है ।

सान्ताक्लाज़ ने एक लम्बी साँस छोडी और बोला- मास्टर जी, पहले योरप ही क्या सारे संसार में ही नया वर्ष बसंत ऋतु के साथ शुरू होता था । एक अप्रेल को वित्तीय वर्ष शुरू होता है, यह उसी का अवशेष है । विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ प्रकृति और प्रकृति पूजन से जुड़ी थीं । उनमें वृक्षों, पञ्चतत्वों व प्रकृति के उपादानों की पूजा का ही विधान था । पर बाद में लोगों ने अपने साम्राज्य फैलाने के लिए धर्मों का सहारा लिया और संसार की सभी प्रकृति से जुड़ी हुई सभ्यताओं का विनाश कर दिया । बस अब तो जब उनकी आज्ञा होती है तभी नया वर्ष आता है । कैसा भी मौसम हो, कितनी भी सर्दी हो- नव वर्ष को उनकी आज्ञा माननी पड़ती है ।

हमने जिज्ञासा की- पर अब भी बहुत से समाज और देश हैं -एक जनवरी वाले नव वर्ष से भी पहले के- वे तो अपना नव वर्ष अपने हिसाब से, प्रकृति के अनुसार बसंत पंचमी या चैत्र की प्रतिपदा को मना सकते हैं ।

कौन करे साहस ? सांता बोले- एक महाद्वीप उपनिवेशवादियों की जन्म-भूमि, तीन महाद्वीप इन्होंने खोजे, और वहाँ के मूल निवासियों को लगभग ख़त्म करके उन पर कब्ज़ा कर लिया, बाकी दो पर उनका शासन रहा । अब कौन करे साहस लम्बी गुलामी साहस को खा जाती है । जन्म से पिंजड़े में रहा पक्षी उड़ना भूल जाता है ।

हमने उत्तर दिया- अमरीका को देखिये । मात्र पाँच सौ साल पुराना है पर अपनी संस्कृति बनाने के लिए, पहचान स्थापित कराने के लिए उल्टे-सीधे काम ही सही, पर कुछ किया तो ? वहाँ ब्रिटेन की गुलामीवाला क्रिकेट नहीं बेसबाल चलता है, स्विच ऊपर की ओर चालू होते हैं, वाहन दाहिनी तरफ़ चलते हैं । सारे संसार में लीटर, मीटर, ग्राम चलते हैं पर वहाँ गज, फुट, इंच, गेलन, पाइंट, औंस और पौंड चलते हैं । और तो और, बिजली के उपकरण भी अमरीका के लिए विशेष रूप से बनवाए जाते हैं जो अन्यत्र काम नहीं करते । दुनिया अपनी मातृभाषा छोड़ने के लिए फिर रही है पर उन्होंने अपनी 'अमरीकन इंगलिश' बना ली ।

सान्ताक्लाज़ बोर हो गए, बोले- केवल बातें बनाते हो । इकसठ साल हो गए आजाद हुए पर स्वतंत्र सोच बनाने की बजाय और गुलाम होते जा रहे हो । इतने पिछलग्गू और कायर तो तुम आज़ादी से पहले भी नहीं थे । लगता है तुमने गुलाम बने रहने के लिए आज़ादी हासिल की है । कौन मना करता है ? करो न कुछ, अपनी अस्मिता के लिए, पहचान बनाने के लिए । तब मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा सा 'गिफ़्ट' नहीं, उपहार लाऊँगा । और हमारे गाल पर एक हलकी सी थपकी देकर सान्ताक्लाज़ चला गया उस ठिठुरती रात में ।

हम सोचते ही रह गए कि यह थपकी थी या थप्पड़ ?

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२३ दिसम्बर २००८



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया व्यंग। बधाई

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  2. स्वागत है आपका, अपने लेखन से जग को रौशन करें

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  3. और कुछ नहीं मिलेगा तो गटर का ढक्कन ही उठा ले जायेंगे या पोल पर से ट्यूब लाइट ही उतार कर ले जायेंगे । वह समय दूर नहीं जब आतंकवादी भी सान्ताक्लाज़ के रूप में आने लग जायेंगे । पर हम असली सान्ताक्लाज़ हैं । देखो, यह है उपहारों की गठरी ।



    हमने पूछा- तो बाँट क्यों नहीं आए इनको? इतने सारे ज़रूरतमंद बच्चे हैं इस दुनिया में । उनका ज़वाब था- आजकल बच्चों को खिलौने नहीं चाहिये । उन्हें तो वीडियो गेम, नई फ़िल्म की सी.डी., हीरोइनों की फोटो, मोबाईल फोन आदि चाहियें । कुछ बच्चे तो बीयर की बोतल भी माँग लेते हैं पर मेरे पास तो मुलायम खिलौने, फूल और टाफी हैं । इनकी आजकल के बच्चों को ज़रूरत नहीं है । खिलौने भी चाहियें तो चिनगारी निकालने वाली पिस्तौल, डाकू, आतंकवादी या कमांडो की ड्रेस । ये मेरे पास नहीं हैं । इस गठरी में प्यार, संवेदना, वात्सल्य करुणा आदि हैं ।

    वाह बाह भाई वाह स्वागत है और आपको क्रिस्मिस मुबारक।

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  4. यह थप्पड़ था, ऐसे थप्पड़ अक्सर लगते हैं लोगों को, पर सब उसे प्यार की थपकी समझ कर फ़िर सो जाते हैं. सुबह उठ कर फ़िर वही रोज का चक्कर.

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  5. हम भी सांता की इंतजार छॊड अपने eपैसे की बियर पी सोने जा रहे है . सारा मूडवा ही खराब कर दिये हो भईये अब का त्योहार मनाये जी :)

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  6. संता का नया रूप

    "Community reels after grisly 'Santa' massacre kills 9

    LOS ANGELES (AFP) — A gunman dressed as Santa Claus who opened fire on a Christmas Eve party at the home of his ex-wife's family was planning to flee to Canada, police say, as a ninth body was recovered from the charred wreckage of the massacre."

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